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Monday 13 June 2016

सफ़रनामा सुन्दर बंस ...My very first writing ...

  1.               यात्रावृतांत ( मेरी पहली कोशिश ) लिखने का सिलसिला बस यही से शुरू हुआ ... 


घुमक्कड़ो और आवाराओं की  ज़िन्दगी में वो ही पल सबसे हसीन होते है जब किसी नई तैयारी का खुराफात दिल में दस्तक दे चुका हो .... सच...  राहुल संस्क्रितायन बचपन से पसंद है हमें उनका वो यादगार ‘अतिथि घुमक्कड़ जिज्ञासा’ अभी तक हमारे ज़हन में हैं, क्लास 12 में पढ़ा था |
 “यादों को कुछ जवां किया जाये, कुछ इत्र ताज़गी का डाला जाये, बेरंग सी ज़िन्दगी में कुछ रंग भरे जाये , कुछ होश में आया जाये , कुछ ख्यालों को साज़ किया जाये “....... ये सिलसिला, ये मोहब्बत  नयी नहीं हैं , पुराना याराना हैं हमारा घुमने फिरने से   ... लेकिन  आज सिर्फ सुन्दरबंस, जिसका नाम ही इतना सुन्दर हो तो अलफ़ाज़ कहाँ से आयेंगे , काबिल अलफ़ाज़, जो उसके मुकाबिल खड़े हो सके , कोशिश करके देखते है  .....
7 सितम्बर , 2013 स्कूल से काम काज निपटाने के बाद  5:35 कि उड़ान भरने वाले थे हम सीधे कोलकाता के लिए, सिर्फ एक अटैची और एक झोला  , संज्ञा सारा और उनके पापा भी ,हम थे या नहीं कहना थोडा मुश्किल है ,घूमते वक़्त हम पूरे होते नहीं एक जगह  , टुकड़ो-टुकड़ो में बट जाते है,जिस्म जहाज़ पर था, दिल उसके भी ऊपर खुले आसमान में, रूह सुन्दरवन में और आँखें जाने कहाँ-कहाँ, यहाँ वहां कुछ पता नहीं ....थोड़ी ही देर में पटना पहुँच चुके थे हम , ( पटना से भी कुछ यादें जुड़ी हैं बचपन कि अपनी बुआ के घर गर्मियों कि छुट्टियों बिताने आये थे  ) .........कुछ लोग आये कुछ गए , जहाज़ फिर आसमान में, समय से 10 मिनट पहले ही पहुँच चुके थे नेताजी सुभाषचन्द्रबोस हवाई अड्डे पर ... समय तो जहाज़ से भी ज्यादा तेज़ भाग रहा था , आँखों में टैक्सी कि खोज और जुबां पर एक सवाल किसी अनजाने से  भाई साहब यहाँ से कालीघाट कि टैक्सी किधर से मिलेगी ?  “ कहाँ से आये हैं आप लोग? हम लखनऊ से हैं ....  सुन्दरवन घुमने आये हैं” , चलिए हम आपको कालीघाट तक छोड़ देते हैं उनका ये कहना और हम सब उनकी हौंडा सिटी के अन्दर  , जनाब शरीफ लगे,  लखनऊ से पुराना ताल्लुक़ रखते थे इसलिए मेहरबान थे, जनरल मेनेजर इलाहाबाद बैंक , ये तार्रुफ़ है उनका | नये कलकत्ता से पुराना कलकत्ता का वो सफ़र भी गज़ब था  ... पूरे शहर में तीन बत्तियों वाले लैंपपोस्ट, तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के करीब होने का एहसास करा रहे थे  , नयी नयी इमारते , नये ब्रिज , सब ये बता रहे थे पुराना कलकत्ता अभी दूर है, मगर हमारी दिलचस्पी तो उस पुराने 1947 वाले कलकत्ता में थी....पूरे शहर में वो पीली पीली एम्बेसडर खून कि रगों कि तरह दौड़ रही थी, सवा घंटे कि शान कि सवारी के बाद हमसब उनके साथ उनके घर में चाय पीते हुए पाए गए (कड़क चाय थी , लड्डू भी थे वो भी बेसन के ) उनकी पत्नी, उनका बेटा जैसे कब से जानते हो, हम उन सबको बहुत अच्छे लगे, (आज फोन पर बात भी कि हमने ) , कलकत्ता कभी अनजाना नहीं लगा हमें ...... साउथर्न एवेन्यु से अब नयी टैक्सी हावड़ा के लिए .... जहाँ पे बुक था हमारा होटल ! हावड़ा ब्रिज .... हमारे सामने विशालकाय, पर्वर्ताकार , अजीमुशान शेहेंशाह की तरह , लोहे के खम्बो का एक मज़बूत ताना बाना , पसंद आया हमें पहली ही नज़र में , जाने कितनी भीड़ अपने अन्दर समेटे हुए , शान से खड़ा था  , किसी दिग्गज कि तरह  , हुगली का शोर भी कम नहीं था , हावड़ा से जैसे जंग छिड़ी थी उसकी  ,बावली कह रही  ...” हम न होते तो तुम कहा से आते?
 .....यहाँ पर भी अकेले नहीं थे हम , हमारे पुराने मित्र हमसे मिलने हम सबसे पहले होटल पहुँच चुके थे ,खाली हाथ भी नहीं बंगाली रसगुल्लों कि सौगात के साथ ,कुछ तो बात है यहाँ के लोगो में ! साथ में डिनर करके वो तो निकल लिए पर उस सुनहरी सुबह कि तमन्ना ने कब हम सबको नींद के हवाले कर दिया .....जान नहीं पाए .......
जिसका मुझे था इंतज़ार वो घड़ी आने वाली थी .... ऐसा ही कुछ दिल में, फिर क्या एक और गाड़ी होटल के सामने , फिर से एक बार सब गाड़ी के अन्दर, पैकेज टूर (हॉलिडे पैकर्स ) था हमारा  इसलिए इन्तिज़ाम एकदम चुस्त ... प्रवेश करते ही गाड़ी में हमारे टूर गाइड परीमल जी बड़े ही प्रोफेशनल तरीके से हम सब से मिले I शुरू तो बंगला में हुए थे मगर हम सबके चेहरों पर सवालिया निशान देखकर हिंदी पर आ गए बेचारे  .... नाश्ता , पानी सब गाड़ी में ...गाड़ी चल रही थी , मौसम भी थोडा ठंडा था  , रात में हलकी बारिश जो हुई थी  , हम तो पहले ही भीगे थे ख़ुशी कि बारिश से, और क्या पूछना था , नर्म सर्द मिट्टी, उसकी सोंधी सोंधी खुशबु , नयी नयी फिज़ा , ताज़ी आबो हवा सब कुछ मेरे मन मुताबिक चल रहा था  . अरे हाँ ! नाश्ते का वो झोला जो कुछ ही देर पहले इठला रहा था , चोट खाकर पड़ा था किसी किनारे , जीत मेरे बच्चो कि हुई थी , हम खुश क्यों न होते? सर भी तो खुश थे, स्काई ब्लू टी-शर्ट फब रही थी उनपे. रस्ते भर न जाने कैसे कैसे सपने भी चल रहे थे , नज़रे भी तो उन नज़रो का बेसब्री से इंतज़ार कर रही जो हम बहुत जल्द देखने वाले थे, बेकरारी साफ़ झलक रही थी इन आँखों से , लगभग 40 कि.मी. बाद चाय कि ख्वाहिश ने गाड़ी को रुकने पर मजबूर किया, दूसरे शहर कि चाय पीने का अपना अलग ही मज़ा हैं वो सिर्फ चाय कहाँ होती , पूरे बंगाल के जज़्बात थे उस एक प्याली चाय में ,संज्ञा का भी दिल आ गया था उस चाय कि प्याली में , सिर्फ प्याले में, ....चाय ही नहीं कुछ और भी था वहां देखने लायक , वो चाय बनाने वाली लम्बी काया , खूबसूरत , पूरा पूरा ताजमहल ... जैसे कीचड़ में कमल, हमारी ये हालत थी , इनका क्या हाल होगा  ..... खैर बात आगे बढ़ी और घड़ी भी, चाय का नशा और कानो में एयरफोन ( ये वादा रहा)  के गाने , हसरत बढ़ती जा रही थी..... सफ़र रास्ते के ऊंच नीच पार करता आगे बढ़ रहा था जल्द ही हम गोधखली पहुचने वाले थे  (ये गोधखली सज्नेखली सुधायांखली , ये खली खाड़ी का अपभ्रंश है शायद ) , परिमल जी एक किनारे जैसे किसी समाधी में चले गए हो, हम सब ने भी तो छोड़ ही दिया था उनको उनके हाल पर , अपने अपने में मस्त थे सब , थोड़ी थोड़ी धूप थोड़ी थोड़ी छांव पार करते हम आ गए थे अब अपनी मंजिल तक, यहाँ से नौका सवारी , लगभग 30 कि.मी.  ...मगर पानी के जहाज़ में सुन्दरवन तो जैसे शुरू हो चुका था ..... हमारे साथ दो लोग और भी थे , उड़ीसा से आये थे |
एक अंदाज़ से चढ़े थे पानी के जहाज़ पर हम सब ...... जहाज़ भी अब चल चुका था, हम जहाज़ पर  हमारा फोन पर्स से बाहर, सबको बता दिया कि कितने खुश किस्मत है  हम....सुंदरवन में जो है हम, खूबसूरत था सब कुछ, दिलकश किसी सपने कि तरह , पता नहीं कैसा लग रहा था  , पागल होने का मन कर रहा था, जीभर के रोने का मन कर रहा था , ज़माने का दस्तूर है ये कि आप हर वो काम नहीं कर सकते जो आप करना चाहते है , मगर हम भी चुपचाप बैठने वालो में से नहीं थे, टेहेलते रहे पूरे जहाज़ पर , पूरे समंदर को अपने अन्दर समेटे  ......ऐसा क्यों लग रहा था जैसे किसी दूसरी दुनिया में आ गए हो ...
कुछ दूर बाद से सुंदरी के वो बेहद हसीं जंगल रूबरू होने लगा था ...... और बंगाल कि खाड़ी वो जो एक हिस्से में सामने आई थी रंग भरे जा रही थी हमारे ख्वाबो में .......हाई टाइड और लो टाइड वो फैलता सिकुड़ता पानी  ,चिकनी मिट्टी को अपनी बाहों में लिए दूर तलक सैर करता था,  वहाँ के लोग अच्छे से जानते है, हर चार पांच घंटे बाद हाई टाइड और लो टाइड आपसी तालमेल   ....... समझ पाना मुश्किल था कि तस्वीर उतारी जाये , कुछ गाया जाये या बस खामोश हो जाये , इसी उथल पुथल से झूझते रिसोर्ट तक भी पहुँच गए, सज्नेखाली नाम था उस जगह का......
शानदार रिसोर्ट था, शांति ने अपना पूरा कारोबार फैला रखा था , किसी आश्रम के जैसे फीलिंग आ रही थी , बीच में एक तालाब था ,किस्म किस्म के फूल बैंगनी, पीले और गुलाबी भी, लम्बे ऊँचे पेड़, पानी में उनकी छाया जब पड़ रही थी तो जैसे दिन में रात हो गयी हो  ,लकड़ी का एक पुल ,दो तीन झोपड़ियां भी ,एक मंदिर कुछ पुजारी शायद .... कुछ और चंद लोग, भूख ज़ोरो कि लगी थी इसलिए कुछ ज्यादा दिख नहीं रहा था , दोपहर के दो बज चुके थे  , रेस्टोरेंट में भोजन खाया, खाने की हर लज्ज़त अपने बंगाली होने का दावा पेश कर रही थी. साढ़े चार बजे  तक आराम और फिर वोही सब, वही जहाज़ और उसकी हरी हरी कुर्सियां और हम सब.. हमें जाना था सज्नेखाली वॉच टावर पर, पक्की तैयारी थी हमारी  ...जानते थे कुछ नहीं दिखेगा न टाइगर न टाइगर का भूत, टाइगर देखने गया भी कौन था, हमारी आँखें तो कुछ और ही तलाश कर रही थी ... .ये बात और है कि सुंदरवन  मशहूर है अपने रॉयल बंगाल टाइगर और कुछ बहुत ख़ास परिंदों के लिए ,कुछ थोड़े दिखे भी थे , मगर जब दिल खुद परिंदा बन जाये तो बाकि परिंदों कि किसे फ़िक्र ....संज्ञा को बड़ा मज़ा आ रहा था , एक ही सवाल “मम्मी टाइगर कब दिखेगा” और हमारा वही एक जवाब “ बेटा ध्यान से देखो
दिखेगा ज़रूर”  दिखा भी ना ........ पोस्टर्स में होर्डिंग्स पर और हमारा गाइड सिर्फ टाइगर से अपने एनकाउंटर के किस्से सुनाये जा रहा था... पेशे से मजबूर.... इसके बाद एक मैन्ग्रोव इंटरप्रिटेशन सेंटर टारगेट था . हरे रंग कि ईमारत थी . सुंदरवन के कुछ नक़्शे , वहां का इतिहास , कुछ नकली टाइगर शायद कोबरा भी .......बैकवाटर्स का एक टुकड़ा यहाँ पर भी था ..... जिसमे किसी बड़े मगरमच्छ के होने का अंदेशा था , टूरिस्ट सारे दीवाने हुए जा रहे थे उसकी एक झलक पाने को  कोई नहीं देख पाया उस क्रोकोडाइल को ...... सिर्फ मेरी तीन साल कि सारा ने देखा था.......पता नहीं क्या देखा मगर दावा मज़बूत था .....   अब थक गए है बाकी कल ........

फिर से शुरू करते है वहीँ से जहा छोड़ा था कल.... वापस अपने रिसोर्ट आने कि तैयारी थी , शाम भी काफी हो चुकी थी, रिसोर्ट पहुँच कर पता चला , कि रात 8 बजे बंगाली कलाकार अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करनेवाले है ....... महिशासुर का वध दिखाया था बढ़िया था सब कुछ| रात का खाना खाकर , हमारी यात्रा का पहला दिन ख़त्म हुआ  ...मगर अभी एक पूरा दिन बाकी था, बहुत होता है एक दिन . नींद कब आ गयी होश नहीं कुछ  ....
दुसरे दिन सिर्फ घने जंगले देखने थे  , आज जाना था दोबंकी वाच टावर  ,ये जगह दूर थी थोड़ी मतलब ज्यादा नज़ारे ,ज्यादा मस्ती, ज्यादा नशा ..... रास्ता सच में हसीं था सुंदरी के वो वृक्ष बेमिसाल थे  , असली खूबसूरती इनकी जड़ो में होती है  ,धरती कि छाती फाड़कर ये खुली हवा में बाहर सांसे लेने बिना किसी इजाज़त के निकल आई है बेधड़क होकर .......
..... छोटी बड़ी जड़ें एकदम मोटी पतली नसों का असमंजस थी  ... पेड़ ऊपर जड़ें ज़मीन पर  , धरती आसमान का अनोखा संगम जैसा था, कोई बड़े ऊंचे और विशाल वृक्ष नहीं थे वो मगर , असली मज़ा था इतने सारे एक साथ एक नाप के पानी में अगल बगल या फिर पानी के बीचो बीच , दोनों ही रूप रंगीन थे | वॉच टावर फिर एक बार धोखेबाज़ साबित हुआ , चढ़ाई तो कि बस दर्शन नहीं हुए , तो क्या कोई बात नहीं अब तक तो बच्चे भी परिस्थितियों से समझौता कर चुके थे, न कोई सवाल ना ही उसका जवाब ..... मगर वह तस्वीरे खूब उतारी....
जहाज़ वापस हो रहा था , ये सच में घना जंगल था , दो शानदार हिरन दिखे थे जब  जहाज़ तो जैसे हिल गया था सब कूद पड़े एकदम ! टाइगर दिख जाता गर , दो चार तो अल्लाह को ही प्यारे हो जाते, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, यकीन हो गया था इस बात पर . जहाज़ में नाश्ते  पानी का पूरा प्रबंध था , .....  आज शाम को पास के किसी गाँव में घूमने जाना था मगर दोपहर में बारिश हो गयी थी तो बात बन नहीं पाई ...... कोई बात नहीं शाम का टारगेट हमने खुद ही फिक्स कर लिया ,  
खूबसूरत सूर्यास्त को सलाम करने का  ...पूरा परिवार टकटकी लगाये निहार रहा था, आँखों के नशे से बढ़कर कोई और नशा नहीं ...वो नारंगी पीली सुनहरी सांवली छठा जानलेवा थी ... रात में फिर कुछ ख़ास बंगाली गीतों का आयोजन किया गया था , खूब मज़े किये, नाचे भी, गाये भी, ढोल भी बजाया,
वो सब जो पहले कभी नहीं किया  था.
अपने अन्दर मौजूद इस पागल से हमारी भी ये पहली मुलाकात थी अच्छा लगा खुद से मिलकर  , खुद से मोहब्बत हो गयी थी हमें ....और उस पूरी फिज़ा से भी ..... अगले दिन सुबह चार बजे जगना था , वापसी थी हमारी , यात्रा अब अपने खात्मे पर थी , कुछ कुछ घर कि याद सताने लगी थी , रात भी बीत गयी और वो सुबह आ गयी थी . उदास नहीं थे हम पर कुछ अपना सा था जो पीछे छूट रहा था  .....कुछ तो था शायद कोई कशिश ,किरन , कोई सुबह या फिर रात  , कोई बात, कोई साथ , या फिर कुछ और ....... खुद का हौसला बढाकर कह ही दिया जो कहना था...... 
सैर कर दुनिया कि गाफिल ज़िन्दगी फिर कहाँ ,
ज़िन्दगी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ |
पता नहीं मांडू अब कब नसीब होगा , एक ज़माने से अटके है उस पर भी  ! वो जहाज़ महल वो रानी रूपमती, वो राजा और पता नहीं क्या क्या ........ सिर्फ सुना है !                                   


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