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Monday, 13 June 2016

मैं और सागर ...

मैं सागर के भीतर हूँ।
गहरे बहुत नीचे कहीं
तैर नहीं रही
चुपचाप लेटी हूँ
और ये पानी कितना अजीब है !
चढ़ता है नाक पर
दिमाग सुन्न करता है
फसता है साँसों में
बेचैन ही करता है
कोई बुलबुला कहीं नहीं
हलचल भी नही
मेरा दम भी नहीं घुटता
जबकि मैं पूरी इसके भीतर हूँ
और इसका पानी...
इसका पानी कितना अजीब है !

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