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Monday, 13 June 2016


कविता ...

ईश्वर .. वो तो बस एक इशारा है
एक संकेत
एक शब्द
जिसे मानते है लोग
पर शायद जानते नहीं
कोई अनुभव नहीं मुझको
ईश्वर का
कभी उसने करवाया ही नहीं
ऐसा क्यूँ लगता है
सत्य सिर्फ़ दो है ..
एक प्रेम है
जिसको जाना है बहुतों ने
किया है दिलोजान से
और दूसरी मृत्यु
जिसको सब जानते है
जो सबकी अपनी है
पर डर मुझे दोनो से लगता है
मरना दोनो में पड़ता है
फिर भी मृत्यु पहले आए प्रेम से
तो बहतर हो शायद
कि प्रेम की कुछ सीमायें है
ख़त्म भी हो सकता है कभी
मृत्यु अगाध है अबाध है
अनंत है
वो कभी नहीं मरती ...

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