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Monday 13 June 2016

प्रेम जो मृत्यु से परे है ...

प्रेम ...

मानव हृदय प्रेम का अथाह सागर है 
और अनहद प्रेम जब थमता नहीं मन में
तो छलक छलक जाता है 
विवश होकर आकार लेता है 
जटाजूटधारी कभी धनुर्धारी
कभी मोरपंख लगाकर बस 
बाँसुरी बजाता है ... 
कभी घुंगरू पहनकर
कभी चुनरी पहनकर
चार हाथ कभी आठ हाथ 
वीणा मृदंग करताल 
कभी तो बस इकतारा बजाता है 
ईश्वर तो निराकार है 
ये प्रेम ही तो है जो 
सबकुछ साकार कर देता है ..
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