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Friday 20 December 2013

मजलिस

                               

हुआ कुछ यूं की, एक ऐलान किया गया , यहाँ ज़मीन पर नहीं कहीं और , की फलां दिन फलां वक़्त पर एक मजलिस का इंतज़ाम है तमाम दुआओं से शिरकत की गुज़ारिश की है , फिर दुआओं की चली मजलिस आसमान में ,जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी कायनात के कंधों पर थी , कायनात खासा परेशान थी, वजह साफ़ थी , दुआओं का उमड़ता हुजूम देखकर उसके तो हाथ पाँव ढीले हो गए , पर हिम्मत ना हारी उसने , इंतज़ाम पुख्ता किये सभी . एक और फिकर भी उसे सताए जा रही थी की आखिरकार इन दुआओं की मज़लिस चलाएगा कौन ? सुनवाई करेगा कौन ? ये तो सिर्फ उपरवाला ही कर सकता है , ये तो भेजी ही गयी थी उसके लिए  , मतलब खुदा के लिए , ईश्वर के लिए , मसीहा के लिए और भी बहुत सारे नाम होते है , ज़मीनो पर तरह तरह के अपने मन से लोग बाग़ रख लेते है , पर ऊपर जाकर सब एक हो जाते है, अल्लाह मौला राम कृष्णा एक हो जाते है  “ऊपर वाला “ बन जाते है . तो फिर बात आगे बढ़ी , कायनात ने भेजा तार ऊपरवाले  को,  और बताया की माजरा क्या है , तार पढ़कर ऊपरवाले ने कहा उस फ़रिश्ते से जो लेकर आया था तार “ कमाल है ! ये कायनात भी अजीब चीज़ है ,जानती है उलझा हूँ मै , और भी कामों में और इसी के तो काम कर रहा हूँ , कितनी रूहों को जिस्म देना बाकी है , कितने सय्यारों पर नज़र रखनी है , बादलो के शहर जाना है, बारिशों का हिसाब किताब देखना है, नयी ज़मीनों की तलाश करनी है , भीड़ बहुत हो गयी मौजौद जगहों पर , दरख्तों की नयी किस्में बनानी है , और इस कायनात ने बिना मुझसे पूछे ही दुआओं की मजलिस लगा दी , बता देना उससे , वक़्त मिला गर तो कल दोपहर तक आता हूँ वरना फिर और कभी “
   बड़े बड़े ज़ोर ज़ोर की आवाजें आ रही थी , धक्का मुक्की मची पड़ी थी , कदम रखने को भी जगह  न थी, कुर्सी की जंग यहाँ भी मौजूद थी , एक के ऊपर एक चढ़ी पड़ी थी दुआएं , कोहनियाँ  रगड़ रगड़ कर जगह बना रही थी , जाने कहाँ कहां से आई थी , हिन्दुस्तान से , पाकिस्तान से , ढाका से , इरान से , फीजी  से , तुर्क से , अमरीका से , रोम से  और भी बहुत जगहों से, दुनिया की सभी जगहों से , जहां जहां भी जिंदगी बसर है वहाँ वहाँ से आई थी ये बेशुमार दुआएं . सब की  सब बैठी थी , आँखों में उसी का इंतज़ार लिए , वो कब आयेगा , कब आएगा , मन्नते , मुरादें दुआएं सब एक दुसरे का मुह देखती तो कभी घड़ी , तभी संदेसा आता है, की ऊपरवाला नूर के पर्दों से निकल चूका है रास्तें मे है साथ में कुछ तारें और प्लूटो भी आ रहे है . तब तक शांती बरकरार रखी जाए ...
कुछ ही देर में ऊपरवाला आ पहुँचता है, बैठ जाता है अपने तख्त पर जलवा नशीं होता है . किसी अज़ीमोशान शेहेंशाह की तरह , नूर की बरसात करने वाला , खुद भी लबरेज़ था ,नूर से , मोहब्बत से, रहम से .
 “गुफ्तगू शुरू की जाए “ फ़रिश्ते सभी दुआओं को एक एक करके भेजने लगते है ,
सबसे पहले , पहली दुआ पेश की जाती है , वो खड़ी हो जाती है “ हुज़ूर मै अमरीका की सर ज़मीन से भेजी गयी हूँ , एक माँ की दुआं हूँ , जिसका बेटा वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के धमाकों में मारा गया था , उसकी रूह को सुकून मिले बस इसीलिए भेजी गयी हूँ ,पिछले कई सालों से यही भटक रही हूँ ,हर रोज़ भेजी जाती हूँ “
ह्म्म्मम्म , तो यह बात है , फ़रिश्ते , “इस दुआ को भेजने वाले के पास हमारा संदेसा भिजवाओ कहो इस माँ से , की बेटे की रूह की फिकर ना करे , रूह तो हमेशा ही सुकून से रहती है , बेचैन तो जिस्म हुआ करते है रूहे नहीं , एक बार जिस्म के कुण्डी तालें तोड़कर बाहर निकली रूह , तो फिर  सुकून ही सुकून है , जिंदगी मौत के इल्म को नहीं जानती है वो , फिकरमंद न होए, सेहत का ध्यान रखे और ख़ुश रहें  “ जी हुज़ूर “
तभी एक दुआं बिना नंबर के ही आगे आ गयी , और कहने लगी हुज़ूर मै नंबर का इंतज़ार नहीं कर सकती , नवा महीना चल रहा है उसका, जिसकी मै मन्नत हूँ , दो बेटियाँ पहले ही है अब कुछ तो दया दिखाइए एक बेटे की तमन्ना है , पूरा खानदान एक ही उम्मीद लगाकर दिन रात मुझे भेजा करता है . ऊपरवाला ने पूरी बात सुनी और कहा “ ऐ फ़रिश्ते , इस दुआ को दुआओं के कब्रिस्तान में दफ़न किया जाए अभी इसी वक़्त और ये भी ध्यान रखा जाये आगे से ये खानदान बिना औलादों के ही रहें , ये इस लायक ही नहीं की इन्हें बेटियाँ दी जाये , उस दुआ को लेकर फ़रिश्ते कब्रिस्तान की तरफ चल पड़ते है  
अब दूसरी दुआं को पेश किया जाए , तभी दूसरी दुआ सकुचाई सी खड़ी हो जाती है  “ हुज़ूर , फिलिस्तीन की सरज़मीन से आई हूँ, मै एक पत्नी की मुराद हूँ , नहीं चाहती की मेरा पति सेना में जाए और मारा जाए , आजादी मिले की न मिले पर वो जिंदा रहने चाहिए ज़रूर ,” अच्छा ! सब दुआये चुप  हो जाती है जब वो बोलता है “ बात यहाँ पर ना तो सेना में जाने की है ना ही आज़ादी की , बात है जज़्बे को जीने की , और ऐसा ही होना चाहिए  , बिना जज़्बे के जीना भी कोई जीना है जाओ कह दो उस पत्नी से क्या चाहती है वो , हमेशा अपने पास रखकर जिंदा  मारेगी अपने पति को  या जीने देगी उसे अपनी मौत तक , और फिर कल किसने देखा है की जोशीला कडियल सही सलामत वापिस आ जाए जंग के मैदान से  “पर उफ़ ये जंग , आखिर क्यूँ ,  ऊपरवाला दुखी  दिख रहा था.
वक़्त कम है दुआएं ज़रा जल्दी जल्दी भेजी जाए तुरंत ही तीसरी दुआ को पेश किया जाता है ,” साहेब, मै हिन्दुस्तान के जबलपुर से आई हूँ , एक प्रेमी  की मन्नत  हूँ, तड़पता है जो दिन रात अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए पर ये ज़ालिम ज़माना दोनों के प्यार का विरोधी है  , रो रो के रोज़ भेजता है मुझे इधर से ये उधर से वो उसकी प्रेमिका  , दोनों की एक ही दुआ है मिलन की दोनों की तरफ से मै अकेली ही आई हूँ “
“ ये प्रेमी कहा हुए , किसने इन्हें प्रेमी का दर्ज़ा दे दिया , प्रेमी वो नहीं होते जो मिलन के लिए तड़पते हुए रो रो कर अपनी जान दे दे , और किस मिलन की बात कर रहे है ये , मिलन तो प्रेम होते ही हो जाता है , प्रेम का तो पूरा मतलब ही मिलना है , दो आत्माओं का मिलन , दो दिलो का भी , दो सपनो का , भावनाओं का , और कौन सा मिलन बचता है , गर बचता है तो वो सिर्फ एक हिस्सा है प्रेम का , पूरा प्रेम नहीं , और जिसके बगैर भी प्रेम जीता है और फलता ,फूलता है , और फिर बिना दर्द के भी कोई प्रेम होता है क्या ? जुदाई का मज़ा नहीं लिया क्या दोनों ने , कह देना दोनों से , गर प्रेम होगा , खुद बा खुद अपनी जगह बना लेगा, महफूज़ कर लेगा खुद को इनके  आसुओं में या हँसी में “    
मज़लिस चलती जा रही थी , फ़रिश्ते दौड़ दौड़ कर एक के बाद एक दुआओं को पेश किये जा रहे थे और ऊपरवाला बिना रोक टोक अपने फैसले सुनाये जा रहा था . अगली फ़रियाद सामने आ चुकी थी , हुज़ूर मै भी हिन्दुस्तान से हूँ और एक बेटे की दुआ हूँ जो चाहता है की उसके बाप की पूरी संपत्ति उसी को मिले जबकि  बाकी तीन भाइयों के हाथ कुछ भी ना लगे , “ह्म्म्म ये माजरा है, औरगज़ेब के खानदान से है क्या ? ,वो थोडा गुस्से में बोलता है  ये दुआ  कतई काबिले क़ुबूल नहीं है इसे भी दफ़न किया जाए और हैरान हूँ मै इस बात पर भी सूरज की आग से ये दुआएं भसम क्यू नहीं हो रही है बीच में ही , ये यहाँ तक पहुची कैसे ? हम सूरज से भी बात करना चाहते है उसे बुल्वालिये दो एक दिन में , कितने अफ़सोस की बात है यहाँ से रूहों को कितने प्यार से नए नए जिस्म पहना कर भेजता हूँ औए नीचे पहुचते ही ये लोग क्या क्या सीख जाते है , खैर... अगली दुआ पेश की जाए ...
अगली दुआ कुछ अजीब थी , एक नहीं थी दो थी एक साथ , हुज़ूर हम दोनों परेशान है मै हिन्दुस्तान से , दूसरी बोली मै पाकिस्तान से , आज दोनों मुल्कों के बीच क्रिकेट मैच चल रहा है , करोड़ो लोग हमे भेज रहे है लगातार दोनों मुल्कों से , शाम तक फ़ैसला होना है , दोनों दुआये बेबस खड़ी थी “ ये तो दुःख की बात है की खेलो को भी जंगे अज़ीम बना दिया गया है , ये कैसा खेल हुआ जिसमे की खेलकूद की भावना ही ना हो इसे भी अहंकार का विषय बना दिया गया है , कमाल है ये ज़मीन के मसले , जाओ जीतेगा तो वही जो अच्छा खेलेगा और वो हारकर भी नहीं हारेगा जो खेलकूद की भावना से खेलेगा ”
एक व्यापारी की दुआ का नंबर था अब , साहेब, धंधा अच्छा चले इसके लिए रोज़ भेजता है मुझे ढाका का साड़ी व्यापारी रोज़ आप पर नारियल वगैरह भी चढ़ाता है,” हद हो गयी अब तो ये धन्धेबाज़ लोग तो मेरे साथ भी धंधा ही करते है , हटाओ इन सबको किनारे “
अचानक ऊपरवाले की नज़र एक नाटी सी दुआ पर पड़ी उसने कहा ये किसकी दुआ है इतनी छोटी सी , दुआ बोलती है ”गॉड , मै एक पांच साल की छोटी बच्ची की दुआं हूँ जो दिन रात अपनी पालतू  बिल्ली के ठीक होने की दुआं करती है क्यूकी वो कई दिन से बीमार है , गॉड ज़ोर से हंसता है फिर कहता है  “ बच्चो की सभी दुयाएँ क़ुबूल है ठीक करो इस बच्ची की बिल्ली को जल्द से जल्द “ 
अगली दुआं पेश की जाए , हुज़ूर मै कोई दुआ नहीं हूँ बस एक शुक्रियां हूँ जो नीचे रहने वाला एक बंदा दिन रात आप से कहता है , की जो भी आप ने दिया उसे, वो बेहद खुश है , आपकी दी हर चीज़ सूख हो की दुःख बस अपनाना जनता है , बस उसका ये शुक्रिया आप भी क़ुबूल कर लीजिये. ऊपरवाला कहता है “ ये शुक्रिया इतना दूर क्यूँ है मुझसे मेरे करीब आ जाए , मेरे गले से लग जाए इसकी जगह इस मजलिस में नहीं मेरे दिल में है ,ऐ फ़रिश्ते इससे पूँछों तो , क्या ये भी मुझे अपने दिल में रहने की जगह देगा “ ऊपरवाला भावुक हो जाता है उसकी आँखें भी भर आती  है और आज की ये मजलिस यही तक चलती है अगली तारीख का ऐलान कुछ दिनों बाद किया जाएगा .... 

                                                 श्रुति त्रिवेदी सिंह 

   

9 comments:

  1. " हुज़ूर मै कोई दुआ नहीं हूँ बस एक शुक्रियां हूँ" I love these lines....Didi you wrote it so nicely...and an ultimate feeling comes after reading "मजलिस" ... ye padhne ke turant baad koi bhi sabse pehele "Shukriya" hi bhejega upervaale ko...aur aapki likhi "मजलिस" najaane kitne "shukriya" bhijvayegi...!! Respect !! Agli "मजलिस" ke intzaar me.........

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  2. It waz 2 gud.......seriously......n suits the motive of the rally at the same time......m waiting 4 the part ll......gud job n gud luck .....keep writing

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  3. thankyou abhishek , thankyou nikita ...

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  4. HHum.mm.mmmm
    Likti Achcha ho....per....
    shabdoon ke chyan mey abhi tumhe aur work karna hoga.....urdu words ka prayog ...is not enough to

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    1. aap mere baaki blogs bhi padhiye .. aur khamiyaan bataiye , i will work on them , anyways thankyou for reading.

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    2. Interesting. ..beautiful expression.

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  5. Yeh jo majlis hai......isme hum bhi apni ek dua dhoondh rahe the...ki shayad humari dua ka bhi number aa hi jaega ab.."ki hamesha har koi muskaan liye rahe apne chehre pe...har koi...saari duniya..."....khair shukriya khuda ke liye toh har waqt jehen me rehna chaiye.....uski di hui har saans se liye........yeh jo aapne likha h bahut hi nek likha hai......ise padhne ke baad khuda aur khud ke bich ka rasta saaf najar aane laga....ki wo sab sunta hai hamari......sab kayde ki duao ko kubul karta h.....thank you didi to share this sacred 'Majlis'.....n yes thank you God!!!!
    Preeti......with respect. ......

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  6. thnx a lott ma'am 4 lettin me knw abt ds MAJLIS ... i'll b thnkin all da tym nw 2 Allah cz many of us actually don hv ds habit of saying thnx !! m nt gonna cry nymore abt wteva hd hppnd ... m gonna try 4 new opportunities which r pssbl 4 me ... aftr meeting u 2day m feelin vry much relaxed !! ... really v all r very selfish alwayz wnt ds n dt ... bt wht v actaully hv v don even hv a tym 2 say thnx ... i hope Allah will accept ma thnx Alhamdulillah (shukr Allah ka) 4 all da thngs he hd blessed me vd !! thnx a lott ma'am 4 lettin me knw abt ds !! love u !! :) :*

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  7. अंदाज-ए-बयां खूब है...वाह

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