१-
तारीफ़ करती थीं जब
कहती थीं वो अक्सर
सागर हूँ मैं
शांत और गंभीर
जान नहीं पायी कभी
बवण्डर था बस
हवा का खदेड़ा हुआ
भागता हाँफता
आंधी लिए भीतर
टकराता यहाँ वहाँ
तोड़ फोड़ करता
ग़म का सबब
कुछ देर चलकर
थक जाता था
शांत हो जाता था फिर
पर तारीफ़ के लायक तेरी
मैं कभी नहीं था ..
कहती थीं वो अक्सर
सागर हूँ मैं
शांत और गंभीर
जान नहीं पायी कभी
बवण्डर था बस
हवा का खदेड़ा हुआ
भागता हाँफता
आंधी लिए भीतर
टकराता यहाँ वहाँ
तोड़ फोड़ करता
ग़म का सबब
कुछ देर चलकर
थक जाता था
शांत हो जाता था फिर
पर तारीफ़ के लायक तेरी
मैं कभी नहीं था ..
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