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Monday, 13 June 2016

ख्वाज़ा मेरे ख्वाज़ा ...

जैसे बर्फ़ को कोई होश नहीं अब
कोई खबर नहीं फिकर नहीं
घुलने के सिवा
मिटने के सिवा
फ़ना करने के सिवा खुद को
कोई दूसरा रास्ता भी नहीं
वो बुलबुले छोड़ती धुंआ उड़ाती
दाए बाएँ टकराती धीरे धीरे
सरकती जाती है गिलास में
अना को वजूद को पूरा गवाँती
किसी सूफ़ी की तरह
आख़िरकार मिल जाती है व्हिस्की में
ख़ुद व्हिस्की बन जाती है  
कुछ गाने भी होते है व्हिस्की जैसे
बर्फ़ की तरह इंसान बेबस पिघलते जाते है
अल्फाज़ लहू में घुलते चले जाते है
“ख्वाज़ा मेरे ख्वाजा दिल में समा जा “

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