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Friday 4 October 2013

दो कविताएं

छः  बजे सुबह को
चाय का प्याला हाथो में  
बैठ गयी कुर्सी पर जब
डाईनिंग टेबल मुझसे बोली...
तेरा मेरा जो रिश्ता है
हर रिश्ते से अच्छा है
पर ...रात से बेचैन हूँ
पल भर नींद न आई
कोशिश पुरज़ोर करी मगर
बेबस और नाकाम रही
रोज़ सुबह का साथ तेरा
बड़ा प्यारा है दिल को  मेरे
रात मगन थी मै , तुम्हे मन से  खाते देख
रोटी ,पालक पनीर , मीठा चावल
तुझमे छिपा तमाम बचपन
मेरी गोद में आ जाता है
नज़रों में तेरी मै , होकर भी नहीं
साबित भी कहा कर पायी कभी 
माफ़ कर देना मुझे तुम ...
तिनका भी हिला न पाई मै
रात जो तूने गिराया था ..
साफ नहीं कर पायी मै




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