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Monday 7 October 2013

chilbill, mere khyalo ki....

चुनती चलती हू, यहाँ वहाँ से
चिलबिल ,....हसीं खयालो की
मिल जाती है कभी कभी ,
बंद चिट्ठियो में , खुले आसमानों में  
इजिप्ट के चित्रों ,वैनगोग के जूतों
गुलमरगी गाँवों या सुंदरबन की नावों में  
ख़यालो का ख़याल कर , प्यार से संभाल कर
पाल पोसकर लाड़ से ,साज़ करती रहती हू
ज़वा जब हो जाते  ,बजते फिर ये ढपली जैसे
सुनती रहती दिन रात इन्हें , ख्याल कहा एहसास है ये
दे इशारा मुझसे कहते ,उतार लो डायरी में अपनी
उन खाली , खाली  शामों में ........
 














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