चुनती चलती हू, यहाँ वहाँ
से
चिलबिल ,....हसीं खयालो की
मिल जाती है कभी कभी ,
बंद चिट्ठियो में , खुले आसमानों
में
इजिप्ट के चित्रों ,वैनगोग
के जूतों
गुलमरगी गाँवों या सुंदरबन
की नावों में
ख़यालो का ख़याल कर , प्यार
से संभाल कर
पाल पोसकर लाड़ से ,साज़ करती
रहती हू
ज़वा जब हो जाते ,बजते फिर ये ढपली जैसे
सुनती रहती दिन रात इन्हें ,
ख्याल कहा एहसास है ये
दे इशारा मुझसे कहते ,उतार
लो डायरी में अपनी
उन खाली , खाली शामों में ........
No comments:
Post a Comment