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Monday 21 October 2013

रौशन है तू बहुत मगर

रौशन है तू बहुत मगर
 यू भी बहकना ठीक नहीं
होश गवां बैठी तू सारे
दीवानों सा बर्ताव करे
कैद कर कमरे में तुझको
रक्स कराऊ, भीतर ही भीतर
पर चमक तेरी, गज़ब पर गज़ब ढाए
दुश्वारिया बढ़ाये , छन छन कर बाहर आये
खिड़की से झांकी जाये , जाली से बहती जाये
रोशनदान को मनाकर तूने
चिलमनो को भी बिगाड़ा  है
किवाड़ो को फुसलाकर
 अब क्या दीवारें भी गिराएगी  
बेसब्री तेरी साफ़ दिखे है
सीएफएल में दमकती रहती तू 
ट्यूबलाइट में चमकी जाये रे 
भूल गयी क्या ,रौशन नहीं तू खुद से है
उधार “चाँद” से लाती रोज़
छुप छुप कर जाती   ‘ तली भर ले आती
सोच कभी ऐसा भी हो
शरमाई सी पहुचें  तू , चाँद के दरबार में
हाथ फैलाये खड़ी रहे ,रौशनी की दरकार में
      “चाँद रहे मूड में “
पिघल जाये ख़ुद बा ख़ुद
सिमट कर , उतर आये 
सुराही में तेरी , पूरा का पूरा
सोच कभी ऐसा भी हो .....
                                                                          श्रुति 


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