रौशन है तू बहुत मगर
यू भी बहकना ठीक नहीं
होश गवां बैठी तू सारे
दीवानों सा बर्ताव करे
कैद कर कमरे में तुझको
रक्स कराऊ, भीतर ही भीतर
पर चमक तेरी, गज़ब पर गज़ब
ढाए
दुश्वारिया बढ़ाये , छन छन कर बाहर आये
खिड़की से झांकी जाये , जाली
से बहती जाये
रोशनदान को मनाकर तूने
चिलमनो को भी बिगाड़ा है
किवाड़ो को फुसलाकर
अब क्या दीवारें भी गिराएगी
बेसब्री तेरी साफ़ दिखे है
सीएफएल में दमकती रहती तू
सीएफएल में दमकती रहती तू
ट्यूबलाइट में चमकी जाये
रे
भूल गयी क्या ,रौशन नहीं तू
खुद से है
उधार “चाँद” से लाती रोज़
छुप छुप कर जाती ‘ तली’ भर ले आती
सोच कभी ऐसा भी हो
शरमाई सी पहुचें तू , चाँद के दरबार में
हाथ फैलाये खड़ी रहे ,रौशनी
की दरकार में
“चाँद रहे मूड में “
पिघल जाये ख़ुद बा ख़ुद
सिमट कर , उतर आये
सुराही में तेरी , पूरा का
पूरा
सोच कभी ऐसा भी हो .....
my favorite line of this poem "chand rahe mood mei " .
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