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Wednesday 2 October 2013

एक अधूरी लव स्टोरी .......



कुछ  कहानियाँ  शुरुआत  या  अंत  के  लिए  नहीं  होती  , वोह  बस  होती  है ......अधूरी  कहानियाँ , अधूरी बाते , अधूरी  मुह्हब्बते , अधूरी  यांदे,  पूरी से भी ज्यादा होती है . इतनी  पूरी  होती  है  कि  कभी  अधूरी  लगती  ही  नहीं ......कभी  नहीं ...पूरा  पूरा  संसार  है  इन  अधूरी  दस्स्तानो   का , अपनी  ही दुनिया  है   . ज़िन्दगी में जब  धूप  ज्यादा  तेज़  होने  लगती  है  तो ठंडी  बयार   बन  जाती  है  संभआल  कर  अपनों  को  वापिस   अपनी  दुनिया  में  चली  जाती  है  . ख़तम  नहीं  होती  कभी,  रहती  है  हमेशा  हमेशा  के लिए  दिल के किसी कोने में पड़ी रहती है |इनका केवल  होना ही ,सिर्फ  होना ही काफी होता है . होकर भी नहीं होती. न होकर भी शायद.... होने से ज्यादा और  हर  किसी  के  पास होती  है  .  मेरे  पास  भी है |
लेकिन आज  जो याद आ रही है इतनी पुरानी बात है कि ठीक से याद भी नही , नाइंसाफी न कर बैठे... मगर फिर ये भी सोचते है.... है तो अधूरी  ही  जैसे भी है जितनी भी है चलेगी |
सन १९९९ २७ अगस्त रात ४.२० पर मम्मी हम सब को छोड़कर चली गयी थी .ज्यादा रोना पिटना नहीं हुआ था हमारी तरफ से , वजह बस वोही , पिछली १४ जून से रो ही तो रहे थे |१४ जून मम्मी पापा कि शादी कि २५वी  सल्गिरेह थी रात के खाने कि तैयारिया चल रही थी | पेट में उन्हें दर्द  हुआ ,कि पापा चल दिए डॉक्टर के पास .....वापिस जब आये ज़िन्दगी अपनी सबसे बड़ी करवट ले  चुकी थी | कैंसर अपनी मंजिल से बहुत क़रीब  , और हम सब  मंजिल  से  कोसो दूर | दर्द का दरिया चल  पड़ा था समुन्दर से मिलने | ख़ामोशी ने मम्मी को अपनी गिरफ्त में ले लिया था .उनकी आँखों  में  सिर्फ  सवाल  और हम सब उनसे  नज़रे चुराते रहे ....मिलाते भी कैसे जवाब ही कहा थे देने के लिए .वोह  दिन तो निकल गए.... कैसे ....याद भी नहीं  करना चाहते .....पर एक फैसला दिल में घर कर चूका था , शादी न करने का ....न शादी करेंगे न बच्चे होंगे, न ही  रोएंगे हमारे मरने पर , जैसे हम तीनो  रोते थे मम्मी को  याद  कर  कर  के | उसी दौरान सेना में जाने कि बात सूझी ,सेना इसलिए….. कि मरना तो है ही चलो देश के लिए ही सही | हम और हमारी दोस्त नुपुर दोनों ने कोचिंग ज्वाइन कर ली ...कर्नल भौखंदी ...शानदार व्यक्तित्व जानदार इंसान , अब शायद नहीं इस  दुनिया  में , हमे सिखाना भी शुरू कर दिया , पढाई के साथ  साथ थोड़ी बहुत फिजिकल ट्रेनिंग भी हो जाती थी  वक़्त   बीतने  लगा , कोचिंग फिर यूनिवर्सिटी मगर  घर  वापिस जाने  का  मन ही नहीं  करता था | वोही  कमरे, वोही परदे , वोही बिस्तर , मेज़ कुर्सियआ, सब अपनी जगह पर , कुछ नहीं था  तो.... मम्मी ... खैर .....थकावट  इतनी ज्यादा हो  जाती  थी  कि  यादे पीछे छूट जाती  थी और  वोही  ठीक भी था शायद ..
रोज़ सुबह ४ बजे उठाना दो तीन किलोमीटर दौड़ना फिर वज़न उठाना जाने  क्या  क्या  पागलपन  किया करते थे .८ बजे तक नहा , धोकर तैयार बस नुपुर के हॉर्न का इंतज़ार बालकनी मे  किया करते थे |हम तीनो मतलब हम नुपुर और उसका काइनेटिक हौंडा ,आधे घंटे में कोचिंग , कोचिंग में दाखिले अभी हो ही रहे थे . कुछ दस पंद्रह दिनों बाद  इक काली एम्बेसडर क्लास के सामने आकर  रूकती है ,क्या देखते है | एक साधारण  कद कि गोरी, एकदम सफ़ेद , भूरी ,भूरी  आँखों वाली, गोल चेहरा , बीस इक्कीस साल की  लड़की हमारी बगल वाली कुर्सी में आकर बैठ जाती है | जुल्फे उसकी बेमिसाल, काली  नागिन  के  जैसे  जुल्फे  तेरी  काली   काली ..  मन ही मन  गाया  करते थे हम...... ऊपर से कभी  नहीं पहले ही क्या कम नखरीली थी | चमकता था चेहरा ..गालो पर  उसके  मुहासे  थे , पर  अच्छे  लगते थे  उस पर , सिर्फ  उस पर ......मगर  हम .कोई बहुत खुश नहीं थे | अपने से ज्यादा खूबसूरत लड़की अपनी ही क्लास में खैर ... कुछ  कर भी तो नहीं सकते थे .वो  कहते  है  न, जंग  में  जब  हारने  लगो  तो  हाथ  मिला  लो दुश्मन से , ज्यादा लडकियाँ  वैसे भी कहा  थी क्लास में | सो दोस्ती भी करनी पड़ी......वोह भी करी .....,  कुछ एक दिनों में अच्छे , शायद बहुत  अच्छे दोस्त बन गए थे हम तीनो  . एक और वजह भी थी दोस्ती करने कि उसके पापा ब्रिगेडियर थे .इतना काफी था हम लोगो को इम्प्रेस करने के लिए, एक बात और  हैण्ड राइटिंग बहुत अच्छी थी उसकी  . वोह रोज़ अपनी काली , बत्ती वाली शानदार एम्बेसडर  से आती , attitude  उसके खून में था , कुछ और भी था एकदम  अलग , ख़ास , उसका  अपना  अलग  ही एहसास था ,आँखों में देखकर लगता था जेसे सब जानती हो .....सब कुछ , कुछ मिल गया हो उसको जो हम में से किसी  के पास नहीं था  . स्टाइल मारने  में हम दोनों भी कहा कम थे .उस पर रौब झाड़ने के लिए किसी भी हद  तक गिर सकते थे |दिन  बीतते  रहे  , दोस्ती भी गहराईयों  में जड़ जमाने लगी . मगर  अभी भी  उसने" वोह " नहीं बताया था | साथ  साथ  खाना , तरह बेतरह , बेवजह कि बाते करना ,बातो पर बाते ....पूरे पूरे   पुल खड़े कर देते थे ,हाथ  देखना,  झूटी  मूटी तारीफे करना , और भी न जाने  कौन कौन से गड़े मुर्दे उखाड़ उखाड़  कर जिंदा इंसान बना  देते थे |
फिर वोह दिन भी आ गया ....मेरे घर चलो वाला .......लडकियाँ  दोस्ती करे और घर न जाए एक दूसरे के  ये कहा सम्भव है .... .घर इसलिए नहीं जाती  कभी कि घर जाना चाहती है बल्कि ये पता लगाने कि जो  जो  गप्पे मारी है   सच भी है या बस यूं ही | हम नुपुर  और वो  उसी कि गाडी में, कैंट  में घर था उसका दूर था थोडा ,बड़ी मुश्किल से पापा को राज़ी किया था  . अनगिनत सवाल पापा के ...... घर कहा है ? घर  में  कौन  कौन  है ? भाई  तो  नहीं  है ???? पापा क्या करते है? जाने  कि वजह ?  आने  का समय? सच्ची झूटी  खिचड़ी  पकाकर खिला दी थी  उन्हें .....और  खुद  उसके  घर पहुच  चुके थे , बड़ा आलिशान पुराने  किस्म का ,थोडा  डरावना भी,  ऊँची ची छत , ऊंची चे लोग, ऊंची ची पसंद जैसा ..... आखिरकार ब्रिगेडीअर थे उसके पापा... रसूक वाले | घर में था कोई भी नहीं अकेली वो और उसके अनगिनत नौकर..... गेट से कमरे तक जाने कितनो  ने सलाम ठोका था .......याद भी नहीं अब तो .......सेनापति जैसे फीलिंग आ रही थी |दोपहर के खाने पर गए थे  ,भव्य डायनिंग हॉल , सारे के  सारे बर्तन  कांच  के  , अजीबोगरीब खाना , टेढ़े मेढ़े नाम ,   देसी खाने वाले हम ! मगर  खूब  ऊट पटांग  तारीफ  करी , फिर  हम लोग तो खिसकने कि तैयारी में थे.... उसकी जिद ने हमे कुछ और देर  बैठने  को मजबूर किया , वोह भी उसके बेड रूम में . बड़ा  कमरा , धूप  भी और परदे भी .......मोमबत्तिया , तस्वीरे , सोफा  था एक  किनारे , बीच में सजा हुआ उसका बेड , बेड कवर भारी  भरकम ,तकिये कुशन और गिर्दो  में जंग ,बाज़ी  हमने  मारी  जम गए बिस्तर पर सबको इधर उधर करके ......फिर  शुरू होने  जा  रहा था ....  वोही  जो  होता  आया  है  सदियों से ,महिलाओं का  महान प्रपंच | अगउई  हमी करते  थे , इस  बार उसने मौका  नहीं दिया  हमे ... यू तो  ज्यादा  बातूनी नहीं थी  वोह, मगर उस दिन  कुछ  चल  रहा था  दिमाग  में उसके ....बताना  चाहती  थी कुछ ...शायद  वोह , जो  अब तक  नहीं बताया  था .......

यू तो  पहले  भी  एक  आध बार  ज़िक्र  हुआ  था  उसके  बॉय फ्रेंड का .....कभी  समझ  ही  नहीं  पाए उसे....हवा में सैर  किया  करते थे , उसके दिल कि धडकनों को कभी नहीं  जान पाए , जब तक  उसने  खुद  अपना  मुँह   नहीं  खोला ,ये  तो  जानते  थे पहले  से कि  अरमान , सेना में था , कैप्टन था ......स्कूल  के  दिनों  कि दोस्ती  थी उनकी , किसी आर्मी स्कूल में पढ़ते थे दोनों , जमती थी खूब उनकीं ......स्कूल के  बाद वोह तो सेना में चला  गया... ये  यही  थी | मगर  एक  बात है , रोमांस था उनका  हाई क्लास , अरमान,..... कद... कुछ  ख़ास नहीं ...... लेकिन कद  को  किनारे  लगा दे अगर .....फिर  सब कुछ  खासमखास........थोडा  चौकोर चेहरा , बड़ी  बड़ी नीमकश  आखे ,चढ़ा रखी हो जैसे... ,घनी काली  पलके कुछ  घूमी हुई  ,नाक  भी  बढ़िया  , ठीक से याद नहीं ....चौड़े कंधे , हष्ट पुष्ट ,वाइट शर्ट और ब्लू जीन्स  , जैकेट  कंधे पर  सिर्फ  स्टाइल  के  लिए लटका  रखी थी |आत्म  विश्वास का सुनामी .....हंसी उसका  दाया हाथ , और  बाए  हाथ  में वोह  .....मेरी  दोस्त........ऐसी फोटो  दिखाई  थी  उसने .....फिर  बताने  लगी.......जब वोह दोनों किसी पार्टी में गए थे ....कोई फंक्शन था जिसमे दोनों ने डांस  किया था साथ  साथ ......ड्रेस भी  गज़ब थी , समुंदरी हलके हरे रंग की ,झालरदार , तोपखाने बाज़ार से सिलवाई थी ,साटन कि लेस लगी थी हर एक  झालर पर , मोतियों कि माला  भी,  बैग भी ,बालो  में  लगाने वाला  सजावटी  सामान भी , सब दिखाया था उसने ......बहुत खुश थी बहुत ज्यादा ,वोह  तोहफे  भी दिखाए   जो अरमान ने जब कब दिए थे .सगाई होने जा रही थी उनकी  कुछ  दिनों में ,अरमान के पापा भी तो  आर्मी में ही थे ,वोह दोनों एक दुसरे को पसंद करते थे और उनके पेरेंट्स भी , कही कोई विलन नहीं बस  प्यार  ही  प्यार , हम और नुपुर भी गोते लगा रहे थे उसके इश्क के समुन्दर में | आज उसी का दिन था लगातार बोल रही थी .....उसका वोह बर्थडे ,अरमान का अचानक आना मगर खाली हाथ ,वैलेंटाइन्स डे , फ्रेंडशिप डे , ऱोजडे , कॉफ़ी डे ,चाय बिस्किट नमकीन डे , जितने भी दिन हो सकते है वोह सब... और उसके अनोखे अलबेले अनुभव उन सब दिनों के .....उसकी फैशनेबल बाते  सुन-सुन कर हम लोग बस लार ही  घूट रहे थे | उसकी कम सुन रहे थे अपनी ज्यादा बुन रहे थे | क्लास में  भी कभी कभी अपने कैंडल लाइट डिनर और अपनी लुका छिपी के कुछ दिलचस्प  किस्से सुनाया करती थी , लेकिन आज ज़रा ज्यादा फ़िदा थी अपने अरमान पर.......कोचिंग क्लासेज में इतना वक़्त भी कहा होता था ....फिर हम चुप होते तो  ही दूसरा बोल पाता.....आज तो  हम भी सन्नाटा मारे सिर्फ सुन रहे थे .....दिल से बोल रही थी बंदी  औ आँखों से भी , होठो से भी, जुबा से भी शायद | चाय तो बनती ही थी अब ....आ भी गयी ....नुपुर  का  एक  सवाल ? कब से नहीं  आया अरमान ?“  क्या मतलब ?...आता रहता  है अक्सर , मगर अब घूमना  कम ही होता है मन नहीं करता बाहर  जाने का और आस पास कोई रंगीन जगह भी तो नहीं ,लखनऊ में इतना कुछ कहा है |इसलिए   इसी कमरे में बैठकर गप्पे लड़ाते है . अपनी भी सुनाता है ,मेरी भी सुनता है सारी..... दिन भर कि , हफ्ते भर कि ,जैसा भी वक़्त होता है उसके पास... calligraphy  सिखा रहा आजकल हमे  ...., तुम दोनों को भी जानता है नाम से ......तैयारी कैसे  चल रही है रिटेन एग्जाम के बारे में भी  पूछता रहता है ..........अक्सर ......टिप्स भी देता है  एग्जाम  पास करने के ” ....... आगे  बोली ..बस एक बार कैप्टेन बन जाऊ फिर तो 24/7 का साथ.. मै और मेरा अरमान , बहती हवा सा , उडती पतंग सा है वोह .......किसी गाव जैसा किसी छाया जैसा भी और हरियाली जैसा भी |

 अपनी  रेशमी,  मखमली बातो के बीच उसने अपनी उस सहरी और पूर्णिमा कि यादे भी ताज़ा की.... किसी ट्रेनिंग के दौरान दोनों ने  गरम गुब्बारे में सैर भी कि थी ,पाराशूट कि वोह हवाई यात्रा बहुत पसंद  आई थी उसे .....अब देर बहुत हो गयी थी हमे वापिस आना था , शाम मजेदार थी, अच्छा लगा उसके अरमान से मिलकर हम दोनों को भी  , अगले दिन से फिर वोही काम  काज .....वोही सुबह जागना ,फिर कोचिंग, यूनिवर्सिटी ,वापिस घर ,मम्मी कि यादे .....और पापा कि देखभाल ,ज़िन्दगी समय से चलती जा रही थी .एसएससी का रिटेन एग्जाम नजदीक था , पढाई जोरो पर थी ,कोचिंग भी ख़त्म होने वाली थी .....लेकिन कोचिंग ख़तम होने से दस पंद्रह दिनों पहले से ही उसका आना बंद हो गया , ताज्जुब में थे हम दोनों करनल से भी पूछा.....उन्हें भी कुछ खबर  नहीं थी ......फ़ोन मिलाया उसके घर , पता चला सख्त बीमार है .....इलाज चल  रहा है , डिप्रेशन कि मरीज़ थी ....कमाल है कभी बताया नहीं उसने और हम दोनों बुद्धू  जान भी नहीं पाए ........जानते भी कैसे लगा  ही नहीं  कभी .....
फ़ोन पर होश उड़ाने वाली एक और बात पता चली  कि , उसका  अपना   अरमान .....अब  सिर्फ  अरमान ही  था  .  कारगिल  की लड़ाई में मारा गया था..... ,अफ़सोस ....... एक  साल पहले ही .....जानती  सब थी  बस मानती  नहीं  थी .....दिल  गवारा  नहीं  करता होगा उसका ,लाश... अरमान की देखने  से इनकार  कर दिया था उसने...... फ़ोन पर  ये जानकार  दिल टूट गया हमारा , चाख्नाचूर  हो गया ....उसका चेहरा , अरमान का चेहरा  , मम्मी भी ,सब आस पास घुमने लगे | एक बात भी याद आई हमेशा कहा करती थी... आत्मा होती है वोह कभी नहीं मरती...अपनों  के इर्द गिर्द ही रहती है ......हमेशा .....ये सब तो हम जानते नहीं.... ,पर  शादी  उसने तब तक नहीं कि थी जब कुछ समय पहले बात कि थी उससे .......  साल  हो  गए  अब तो ......  रहती है अकेली.... अपने अरमान के साथ .....आर्मी  में भी अरमान के चलते ही जाना चाहती थी ......कप्तान ही बनना चाहती थी........ कमाल है  ये  ज़िन्दगी , कैसे कैसे लोग है यहाँ पर   ... कुछ भी करते रहते है .....इतनी मुह्हब्बत ,इतना इश्क, इतना प्यार कैसे कर सकता है कोई ,......प्रेम स्नेह, अनुराग.. सच में होता है इस दुनिया में .और  प्रेम जब सीमाए तोड़ देता है तो भक्ति बन जाता है शायद , मुह्हब्बत,  इबादत बन जाती होगी  , इश्क, दुआ बन जाती है और जोड़ देती है हमे उस अनदेखे , अनजाने से , ये दुआए ज़ंजीर बनकर जकड लेती है हम सब को उसके करीब  कर देती है फिर  वोह  जो  भी रास्ता दिखाता जाता है हम चलते जाते  आंखे बंद करके ..

आज के इस दौर में... जब प्यार कि परिभाषा ही बदल गयी है .  ......कुछ  ऐसे लोग भी होते है जो चुपचाप ख़ामोशी से जिए चले जाते है ......यादे और उनका एहसास इतना ...काफी  होता  है उनकी अधूरी  कहानियो  को पूरा करने के लिए..................अनामिका नाम था उसका ............  

4 comments:

  1. bahut emotional kar deti ho app bas kuch kahne sunane ki jarorat nai basssssssssssss padte hi jao uf kya lekhani hai ultimate........one of the best

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  2. Ma'am... bht khoobsurti se ek zindgi aur kaiii feelings se introduce kra dia...
    Beautifully written..

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  3. Bahot khoob likh dia hai aapne didi ji......there is a life in your stories that I live while reading......woh jo live shows hote hain na...aisa bhi mehsus hota hai....padte hue sab pictures khud b khud aankhon ke ird gird ghumti dikhai padti hain.....this is the success of story writing. ..'.congrats on this' aur haa.....pyar jab adhoora reh jata hai toh use kisi bhi tarah poora karne ya jo kami aa gai hoti hai use poora karne ka junoon aur bhi gehraa ho jata hai......koi jaane ya na jaane bsss khud me hi mashgool ho jate hain is udhed bun me ki bss pyaar jinda rahe....kya hua woh sath nahi toh.......pyar kabhi rukta nahi....kabhi dhundhla nahi padta.....jo log pyar ko jindagi me ghol ke jeete paate hain...wahi pyar ka meetha ras pee paate hain......khair kuch jyada hi bhav vibhor ho gae hum,shayad yeh aapki kahani ka asar hai......thankx for sharing. ...

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