सुबह जब आइना देखा ,
फेसबुक का वो कमेंट भी दिख
गया
“क्या हो गया आपको, बदल गयी
है “
हुआ क्या ? वैसा ही सबकुछ
,था जो पहले
चीर कर परदे का सीना
धूप तो वक़्त पर आती है
और नल में पानी भी
समय पर, शुरू होती है
समय से ,टग ऑफ़ वॉर भी
पहले से लटकी, लिफ्ट में
लटकना
दफ्तर पहुचकर ......
ऐठ के बैठना या टेढ़े टेढ़े
चलना
साबुन, तेल ,नमक ,
जूते का नाप
वज़न मेरा , बदला कहा कुछ
मिलती है रोज़ वोही
रखते है जहां.... दोपहर मेरी
शामे, आदतन व्यस्त .......
आसमान की कोलंबस राइड
,फिर
“इवनिंग वाक” के आठ चक्कर
पहले सात , सोमवार से
रविवार
आठवा ,फरवरी की २९ तारीख
....
कभी कभी , ही होता है
रात रोजाना , एक तारे के
ब्याह में जाना
फिर दो ख्वाब , तकिये संग
लेकर सो जाना
कुछ भी बदलता , तो बात और
ही होती !
बदला कहा कुछ ......
सिवाय , हत्थे वाली पुरानी
कुर्सी,
ज्यादा अच्छी लगती है
स्याही जो जम गयी थी पेन में
चलने लग गयी है अब
...........
श्रुति
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