याद है न तुम्हे .....
वो ज़ीरो फिगर वाली शाम
कैसी चर्बी चढ़ाई थी उस पर ,
मॉलो ,पार्को को दबाकर
किनारे
कब्रिस्तान का प्रोग्राम
बनाया था
सन्नाटे के बीच , ताबूत बन
रहे थे
और रन भी , वो अमलतास के
पीछे क्रिकेट
याद है न तुम्हे .....
चक्कर पूरा काटा था वहाँ का
दिया था वक़्त ,एक एक कब्र
पर
देखा कैसे था उन सबको
उपन्यास के क़िरदार हो कोई
या फिर ग़ालिब के शेरों हो
जैसे
और वो दिलजला पेड़ ,बिना
पत्तो वाला ,
काली काली जली भुनी डाले
उसकी
सामने वाली नीम्बी को देख
ज़्यादा खुश भी नहीं था
वो कोना , डरा डरा सा,
स्याह स्याह
रात पहले पहुची थी जहाँ शाम
से
घबरा गयी थी तुम वहाँ ,
याद है न तुम्हे ... मौत का मज़ा
लिया था हमने ...
श्रुति
NEETU , tell me how do you like it ?
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