यहाँ से बहुत दूर .....
सही गलत से आगे
“एक घास का मैदान है “
जहाँ पर धूप और बारिश
दोनों साथ होती है
सूर्य ,चंद्रमा साथ चमकते ,
दिन होता न रात होती है
मौसम हरदम लवली लवली
लवली सारी बात होती है
नदी और पहाड़, शरारती दोनों
खेलते है २४ घंटे
“बर्फ़-पानी “
नदी ने किया पहाड़ को “बर्फ “
जम गया वही पर ....
पहाड़ ने नदी को “पानी “
बहे जा रही है तबसे
बादल और कोहरा , दो लफंगे
एक ही बाइक पर सवार
ठण्ड का मफलर लपेटे
निकल पड़ते है, आँखे सेकने
उधर से बिजली और आंधी
तड़कती, भड़कती ,कड़कती
चली आती है ..हवा खाने
यही , “इसी घास के मैदान”
पर
है तो बहुत दूर ,पर जाना है ज़रूर
श्रुति
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