एक राह पर चलते चलते ,एक
राह ने पुकारा
अजीब सी आवाज़ में , अलग सा
इशारा
जाना नहीं पहले कभी ,बोला
करती है राहे भी
ऐसा पहली बार हुआ था मै हैरां एकदम हैरां थी
सोच रुक ही जाती हु , सुने
है लोग बहुत पहले
आज इसको सुन लेती हु ,बोली
फिर मै तैयार हूँ अब
सुना , मुझे क्या सुनाती है
, बोली फिर वोह
“राह नहीं मै गाँव हूँ ,
जामुना की ठंडी छाँव हूँ
खेत हूँ ,खलिहान हूँ ,देहरी
,देहलीज़ दालान हूँ
गाये ,भैंस ,बैलगाड़ी हूँ
,कन्डो पर रखी दुधांडी हूँ
भट्टी पर चढ़ा गन्ने का रस
,चकिया में पिसा पिसान हूँ
मेड़ो पर जगा बथुआ ,छपरे पर
चढ़ा कुमढा हूँ
ताल में पड़ा सिंघाड़ा हूँ
भीट में उगाया पान हूँ मै
शिवाला हूँ ,मज़ार हूँ ,चाक
पर बैठा कुम्हार हूँ
चूल्हा रंगती बहु भी हूँ
,धुप में तपता किसान हूँ मै
पर वक़्त चलता चला गया ,गाँव
सिमटता गया
राह चौड़ी होती रही ,मै छुप
छुप कर रोती रही
आत्मा हूँ उस गाँव की ,यही
कही मै रहती हूँ
तुमसे मै ये कहती हूँ ....
राह नहीं मै गाँव हूँ
,जामुना की ठंडी छाँव हूँ मै “
shruti
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