कल एक कविता को पढ़कर एक कविता लिखने का मन किया , पहले तो कुछ अस्त व्यस्त लगी फिर ....
गुज़रना जब तुम ...
गुज़रोगे जब शहर से मेरे
गोमती को पार करके
एक पुराना पुल मिलेगा
उतर लेना उस पुल से फिर
आ पहुंचना गलियों में मेरी
वही जहां में रहती थी
दुकाने सभी ,पेड़ भी सारे
सब तुम्हे पहचान लेंगे
मिलना मेरा शायद ही हो
मै गुमशुदा हूँ कई दिनों
से
अच्छे लिबास में सज सवंर के यही कविता ऐसी हो गयी ....
गुजरोगे
जब शहर से मेरे ....
गुज़रोगे
जब शहर से मेरे
यादों
के कुछ लिए सवेरे
सड़क
रास्ते और तन्हाई
कत्थई
आँखों सी शरमाई
फिर
उभरेगा चेहरा एक
जिसके
संग गुज़रे पल अनेक
क्या
जानते हो मुझको? तंग कसेंगे
सीढ़ी
पुल की भी पूछेगी
कहाँ
हूँ मै ? ये प्रश्न करेगी
रहती
नहीं हूँ अब मै वहाँ
खो
गयी हूँ जाने कहाँ कहाँ
बाहर
भीतर और भी भीतर
मै
गुमशुदा हूँ कई दिनों से
really nice one.
ReplyDeletepahle vali ki last four lines umda hai
ReplyDelete\
thankyou anu...
ReplyDeletelo hamne bhi ek nayaa libas pahna diya ...
ReplyDeleteसुनी है एक खबर मैंने..
तुम्हारे आने की..सच में तुम्हारे आने की..
बिलकुल भी विश्वास नहीं होता ..
तुम आओगे मेरे शहर में..
मेरे मकान वाली गली में..
तुम्हे पहचान लेंगे सभी मकान
और गली के पेड़ सारे..
आदत हो गयी है इनको भी ..
साथ मेरे..
बाट जोहने की ...तुम्हारी
तुम्हे भी आज करने होगा ..इंतज़ार
मुझे अपनी चूनर खोज कर पहननी है......ख्वाहिशो की
कहीं खो गयी है वोह
इंतज़ार कहीं लंबा न हो जाये..
आज मरम्मत भी तो करवानी है
अपने सारे गहनो की ......अरमानो की
टूट गए हैं वोह
डर भी लग रहा है..
कहीं ऐसा न हो मैं तुमसे मिल ही न पाऊँ
टीका ही लगाती रह जाऊं ..
अपने माथे पर......वज़ूद का
बिलकुल मिट गया है वोह
अरे... देखो नाराज़ मत हो ..
बिलकुल नाराज़ मत हो
तुम भी तो जानते हो..
जानती हूँ मैं भी..
और तो और ये मकान
और पेड़ भी जानते हैं..
हम मिल नहीं पाएंगे..
वजह मैं नहीं...ये खबर है..
बिलकुल झूठी है..
तुम नहीं आओगे......कभी...कभी... नहीं आओगे.
kahin bahut bheetar tak chhoo gayi apki ye kavita, bahut der tak aisi hi kinhi galiyon me vicharti rahi, bahut umda,hriday ko andolit karne wali, bahut waqt laga khud ko samanya karne me ise padhne ke baad,........... thanx for this master peice.
Deleteshukriya bhaiya
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