रात थी ...सुनसान थी 
एक चिराग़ था , जला बुझा सा 
नीम अँधेरा ..नीम उजाला 
सोयी नहीं ... मैं जागी थी
एक दस्तक पर खोला दरवाज़ा 
बस रात की आवाज़ थी 
“बाहर निकल कर देखो ज़रा 
आसमान है , एक चाँद है 
कुछ तारें है , मदहोशी है 
सन्नाटा है ... सब सोये हैं
..
कहीं दूर घूमने जाते हैं 
प्लूटो ढूंढ कर लाते हैं 
मै उड़ती रही ... रात भर
आँख खुली तो  जाना फिर 
एक सपना था ...टूट गया 
एक और रात ... निकल गयी 
मेरी ज़िन्दगी की जेब से
.... 
                     श्रुति त्रिवेदी सिंह 
very nice.. :)
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