Tears, when
they come… out of emptiness, vacuum, void, carry more meaning , they express “The zero zone” which exists , beyond
all pleasures and pains…I like this poem …
एक
दुआँ,
उस
ऊपरवाले से, कि
जब
तक भी ये सांस चले
मेरी
रूह को आवाज़ मिले
तू
रहम मुझपर बरसा देना
कहा
नहीं जो अब तक कभी
इन आँखों से कहला देना
आँसू
बने ज़बान मेरी
तू
जी भर के रुला देना
एक
और दुआँ है तुझसे मेरी
वजह
ना मुझसे पूंछे कोई
बता
नहीं मै पाउंगी
सुखदुःख
से ऊपर कोई समझेगा नहीं
नीचे
उससे, समझा नहीं मै पाउंगी
आँसू
ये मेरे ...
सुख
के नहीं
दुःख के नहीं
मेरी
जिंदगी का पैगाम है
बेवजह
, बेलगाम है
रिहाई
की जो चाह है
उसका
ये अंजाम है
चैन है ,करार है
दे
दिया है जो तूने
बस
उसका इज़हार है
रोको
मत इन्हें, बहने दो
मै
खुश हूँ बहुत
मुझे
रोने दो ...
श्रुति त्रिवेदी सिंह
No comments:
Post a Comment