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Sunday 9 February 2014

शुक्रिया

जिंदगी में शुक्रिया कहने के मौके कभी नहीं छोड़ने चाहिए , जब मन करें बस कह देना चाहिए ...आज भी कहना है शशांक प्रभाकर जी को ...वो एक अच्छे कवि भी है और उससे भी अच्छे इंसान ...
इस कविता का नाम है “मेरी फ़िक्र करो ना तुम “ और ये हमने आज सुबह लिखी है ...गुलज़ार की एक कविता से प्रभावित होकर ...

मेरी फ़िक्र करो ना तुम
मै तो हूँ बस ठीक ठाक
शोर नहीं है , मौन है भीतर
अब तो नहीं है मुझको डर
धूप छाँव सी भाग दौड़
मेरे बस की बात नहीं
मै हूँ मै हूँ बस मै हूँ
कोई मेरे साथ नहीं
मेरे जैसे “लॉन” की मेरी
घास अब तो  सूख गयी
प्यास कहीं अंदर मेरे
बिन पानी के टूट गयी 
दफना दिए है मैंने अब तो
सारे ख़ुशी और सारे गम

मेरी फ़िक्र करो न तुम 

                      श्रुति त्रिवेदी सिंह 

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर कविता है ये

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  2. जिंदगी में शुक्रिया कहने के मौके कभी नहीं छोड़ने चाहिए , जब मन करें बस कह देना चाहिए ..
    While reading ur lines in start I felt that these are my fundamentals for life....n you writing. ...caught me to read so speedily the rest....

    Meri yaad me tum yun reh reh, gam ke ghoont na piya karo.....
    Mai tanha khush thi aur rahu.....bemaani fikr naa kiya karo.....
    Preeti......(wrote in my sorrows)

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