.....अभी कुछ देर पहले एक ख़ूबसूरत हवा का झोंका आया था ....और फिर ये कविता....
चिलमने,
बारिशों की भी
छिपा
कहाँ पाती तुमको
दिख
ही जाते हो दूर कहीं
बड़ी
दूर खड़े ...
ज़रा
सहमे से ,कुछ डरे डरे
कभी
बादलो की आड़ में
कभी
कोहरे के पीछे
शक
है मुझे ,
तुम
वोही तो नहीं
जो
नज़रे चुराता है मुझसे
सामने आओ कभी...
बैठकर
बातें करते है
ये
छुपन छुपाई क्यों ?
श्रुति त्रिवेदी सिंह
बारिशो की चिलमनें भी
ReplyDeleteकाम ना आएँगी पता था
ये न पता था कोहरे की
आड़ से भी बुला लोगी
छुपन- छुपाई भी ना खेलें
तो भला हम क्या करें?
पास जो आया बिठा कर
कोई कविता सुना दोगी
Vah !! aap dono ustaad ho sach me ... :)
ReplyDeleteDil me chipaa logi...toh kahin aur naa chip paaenge.....
ReplyDeletetum yaad krna humko....hum.zamaana chod kar aaenge...
preeti