मैं सागर के भीतर हूँ।
गहरे बहुत नीचे कहीं
तैर नहीं रही
चुपचाप लेटी हूँ
और ये पानी कितना अजीब है !
न चढ़ता है नाक पर
न दिमाग सुन्न करता है
न फसता है साँसों में
न बेचैन ही करता है
कोई बुलबुला कहीं नहीं
हलचल भी नही
मेरा दम भी नहीं घुटता
जबकि मैं पूरी इसके भीतर हूँ
और इसका पानी...
इसका पानी कितना अजीब है !
गहरे बहुत नीचे कहीं
तैर नहीं रही
चुपचाप लेटी हूँ
और ये पानी कितना अजीब है !
न चढ़ता है नाक पर
न दिमाग सुन्न करता है
न फसता है साँसों में
न बेचैन ही करता है
कोई बुलबुला कहीं नहीं
हलचल भी नही
मेरा दम भी नहीं घुटता
जबकि मैं पूरी इसके भीतर हूँ
और इसका पानी...
इसका पानी कितना अजीब है !