टन टन टन टन टन्न्नन्न ....... छुट्टी की घंटी बजी और कक्षा में चारों ओर हलचल बढ़ गयी ,विद्यार्थियों
में स्फूर्ति की लहर दौड़ पड़ी , अपना अपना बैग कंधो पर टांगकर पानी की बोतले हाथों में लेकर , बाय सर जी , बाय सर जी , बाय सर जी ...
बाय बाय प्यारे बच्चों!
और पांच मिनट के अंदर कक्षा के सारे बच्चे ग़ायब , कुछ बचा है, तो धूल की एक झीनी सी चादर और हेमंत बाबू |
चारों ओर एक सरसरी नज़र दौड़ाकर उन्होंने एक और कुर्सी अपनी तरफ खींची, पैर फैलाये और बैठ गए | रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए कुछ इस तरह से बैठे कि एक कुर्सी पर ख़ुद रहे और दूसरी पर उनके पाँव |
उनकी आँखें बंद है और पलकें शांत ,सारा ध्यान सिर्फ़ आती जाती सांसों
पर |
एक दो तीन चार ..एक गहरी साँस उन्होंने अंदर ली ... दो सेकंड अंदर रोककर
एक दो तीन चार पांच छ ...वही साँस बाहर छोड़ दी | गहरी साँस अंदर और धीमे से
बाहर , अंदर बाहर ,अंदर बाहर ......इधर चपरासी ने पीपल के पेड़ से घंटा उतारा और विद्यालय के स्टोर रूम में रख दिया | इधर उधर फैली कॉपी क़िताबे भी
सुरक्षित कर दी | प्लास्टिक की कुर्सियाँ भी उठाकर अंदर कर दी ,जो अध्यापकों ने बाहर ही छोड़ दी थी और छुट्टी की बजते ही
बच्चों से पहले विद्यालय से भाग खड़े हुए | कमरों को सफाई करवाकर , ताला मारकर ...
‘मास्टर साहब अब यहाँ सफाई करनी है ‘
हेमंत बाबू चौक कर उठे तो देखा दीनदयाल झाड़ू लिए उनके सामने खड़ा है
‘हाँ हाँ! तुम करो अपना काम मैं भी निकलूँ अब “ झोला अपने कंधे पर डाला और कक्षा से बाहर निकल गए | पूर्व माध्यमिक विद्यालय , सरईयाँ, बख्शी का तालाब , में
अब न तो कोई छात्र है न ही शिक्षक , बस दीनदयाल है , झाड़ू लगा रहा है |
रास्ते में शरद दिखा तो हेमंत बाबू ने तुरंत रिक्शा छोड़ कर
उतर गए और ...
“ कैसे हो शरद ? ’
“ ठीक “
“बस ठीक? ये कैसा जवाब है ? सच में ठीक हो न ?
“छोड़ो यार! अपना काम करो , मैं जल्दी में हूँ ‘
आज कितने दिनों बाद मिला शरद , लेकिन उसके चेहरे पर हेमंत
को देखकर न तो कोई ख़ुशी थी, न ही उत्साह , बल्कि हेमंत का हाथ झटककर बेरुखी से दो मिनट में
वहां से निकल भी गया | शरद के इस व्यवहार से हेमंत बाबू को धक्का तो ज़रूर लगा
पर सोचा “ कोई परेशानी ही होगी वरना शरद ऐसा तो नहीं है ,
क्या पता किस मुश्किल से गुज़र रहा हो ? मैं भी कितनी जल्दी निर्णय देने लगता हूँ ,
नहीं देना चाहिए | कब सुधरूंगा मैं आखिर ? क्या अर्थ है इस ध्यान का जब अपने बचपन के यार को भी न समझ सकूँ !! मन हल्का होगा ख़ुद ही फ़ोन करेगा | ईश्वर सब अच्छा करे उसे सद्बुद्धि दे , हर
मुश्किल का सामना करने की हिम्मत दे , रोड पर चलते चलते हेमंत बाबू ने आंख बंद की
शरद की छवि अपने मन में उभारी और खूब सारी रौशनी उसके ऊपर डाल दी और वैसे ही चलते
रहे | अब वो काफी अच्छा महसूस कर रहे है |
घर पहुँचकर
ताला खोला तो मन ख़ुशी से गदगद हो गया , एक सफ़ेद कबूतर उनकी पढ़ने की मेज़ पर बैठा है
, एक चित्ती भी नहीं किसी और रंग की , ख़ालिस सफ़ेद , टुकुर टुकुर उन्ही को देख रहा
है , वो तो चौखट पर खड़े हक्के बक्के कबूतर ही देखते ही रह गए , फिर एक गहरी सांस ली
और जब बाहर छोड़ी तो परमात्मा को ढेर सारा
धन्यवाद् भी भेज दिया , इस श्वेत पक्षी को उनके घर भेजने के लिए | पर अंदर क़दम रखते
ही वो फुर्र्र्रर्र्र से उड़ कर खिड़की से बाहर चला गया और पीछे अपनी बीट छोड़ गया
जिसे देखकर हेमंत बाबू कुछ मुस्कुराएँ ,काग़ज़ से साफ करके फ़ेंक दिया |
“आज बहुत देर हो गयी , भोजन के लिए यह उचित समय नहीं | फ्रिज से दूध निकाला और एक गिलास गरमाकर पी लिया
, कुछ देर आँख बंद करके बिस्तर पर शवासन में लेट गए .....पूरे शरीर को ढीला छोड़
दिया |
बिस्तर से जुड़ा एक स्टूल पड़ा है ,जहाँ कुछ अध्यात्मिक
क़िताबे , दो तीन चश्में , पेन पेंसिल मार्कर , ज़ंडू बाम , कुछ दवाइयाँ और एक
रुद्राक्ष की माला पड़ी है | आज का अखबार और कुछ सादे काग़ज़, पेपर वेट के अस्तित्व
से बिलकुल बेख़बर पंखे की हवा में उन्मुक्त
फडफडा रहे है | बिस्तर के नीचे चप्पल जूते और किनारे एक जोड़ी खडाऊं रखी है |
हमेशा की तरह कमरें की खिड़की खुली हुई है और अंदर आती हल्की
बयार से गमले में लगा पीपल का पौधा झूम रहा है और हवन कुंड में परसों किये गए हवन
की बची कुची राख़ भी आज ऊँचाई छूना चाहती है |
लकड़ी की एक छोटी सी अलमारी में ज्ञान का कितना सारा बोझ है
|
“आत्म सिद्धि क्या है”
यम नियम संयम”
“ध्यान की विधियाँ”
“ अभिनव मनुष्य कैसा हो ”
“त्राटक क्या है ?”
“ सन्यास यात्रा “
मौन की गूँज “
दुःख का मूल “
इतनी क़िताबे और साथ में गीता कुरान बाइबल वेद पुराण रामायण तक सब पढ़ लेने के बाद भी इतना बेचैन क्यूँ रहते है हेमंत बाबू ? कुछ करना है कुछ बाक़ी है , क्या करे ये कि इनकी आत्मा को शांति मिले ... किताबी ज्ञान कंधो पर ढोते ढोते अब थक गए है , कंधे हल्के कर , सब भूल कर परमात्मा के सिवा अब कोई और नहीं इनके जीवन में |
चालीस साल के हेमंत बाबू , झक्की तो पहले से थें, पर पत्नी के गुज़र जाने के बाद तो अब विचित्र ही
हो गए है | आठ साल से अकेले रहते रहते अकेलेपन के इतने अभ्यस्त हो चुके है कि
सामाजिकता क्या होती है ? पड़ोसी के रिश्ते कैसे निभाए ? कितना बोले क्या छुपाये ?
इन सवालो के कोई जवाब नहीं | कोई कहने
सुनने वाला भी नहीं ,जो दिल किया वही शुरू ...कभी आधी रात में हवन तो कभी स्कूल से छुट्टी
लेकर मौन व्रत धारण | दिन दिन भर आँखें
बंद ....ऊपरवाले की लौ में दार्शनिक चेहरा लिए दिन रात सुलगा करते है |
बस एक ही धुन , एक ही दिशा
“ शरीर शांत, सांसे शांत, विचार शांत क्यूंकि शांत शरीर में ही परमात्मा का
वास है | दिन रात यही करते करते पता नहीं कब
इसकी आदत पड़ गयी कि मौका मिलते ही बस शरीर शांत सांसे शांत, विचार शांत और हेमंत
बाबू अपनी भीतर की दुनिया में , तीन बार गहरी सांस और हर सांस के साथ गहरे उतरना
है और फिर उसी साँस के साथ बाहर आना है | प्रेम अंदर लेना है धन्यवाद बाहर छोड़ना
है | आनंद भीतर और तकलीफ़ बाहर | हर साँस
के साथ भीतर जाना है और वापिस आती हुई उसी साँस के साथ बाहर भी आना है | और जब
विचार शांत होते नहीं दिखते तो भगवान् कृष्ण का वही वाक्य “विचारों को रोकना उतना
ही कठिन है जितना वायु के प्रवाह को रोकना | याद रख मनुष्य , निसंदेह यह कठिन
कार्य है पर निरंतर अभ्यास से यह संभव है | “ यही निरंतर अभ्यास जीवन की शैली बन
गया है |
एक ही प्रश्न , “जीवन क्या है” ? एक ही लक्ष्य “आत्म साक्षात्कार”
|
अभी इनके विचारों और सांसो की तरह , यह कमरा भी निरा शांत
है | कहीं कोई क्रिया नहीं अगर कुछ क्रियान्वित है तो सिर्फ हेमंत बाबू का पेट जो
हर अंदर आती साँस में भरपूर फूलता है और बाहर छोड़ते वक़्त पिचक जाता है | रीढ़ की
हड्डी से चिपक जाता है |
शांति व्यवस्था तो
तब भंग हुई जब दरवाज़े पर तीन चार बार
लगातार घंटी बजी , हेमंत बाबू योग निद्रा
से उठे , दरवाज़ा खोला तो
“अंकल नमस्ते , मैथ्स का एक सवाल पूछना है , पापा ने कहा मै
बिज़ी हूँ | अंकल से जाकर पूछ लो , अंदर आ जाऊं ?
हाँ हाँ आओ , बैठो , दिखाओ अपना सवाल ?
हम्म , देखो जब सिक्स एक्स को तुम सेवेन वाई के साथ प्लस
करोगे तो उत्तर ज़ीरो आएगा , पूछो क्यूँ?
क्यूँ अंकल ?
क्यूंकि सिक्स और सेवेन के वेरिएबल्स अलग है | पर अगर सेवेन
का वेरिएबल एक्स होता तो उत्तर 13 एक्स होता | अब पूछो क्यूँ ? क्यूँ अंकल
क्यूंकि इस बार सिक्स और सेवेन के वेरिएबल सेम है | समझे ?
पापा बताते है तो नहीं आता , जब आप समझाते है तब मुझे सब
समझ आता है |
अच्छा , मैथ्स में रूचि है तुम्हारी ?
मुझे
तो जी.के. अच्छी लगती है पर पापा कहते है , मैथ्स पढने से ही अच्छी नौकरी मिलेगी |
अभी तुम छोटे हो , खूब दिल लगाकर पढो और देखो कि तुम्हारी
अभिरुचि किस विषय में है फिर जो तुम्हे
अच्छा लगे उसी दिशा में आगे बढ़ना सिर्फ़ अच्छी नौकरी के लिए मत पढना | यह चिंता अभी
से ठीक नहीं बच्चे |
ओके अंकल! गुड नाईट
रसोई में- सब्ज़ी पक
रही है और हेमंत बाबू के दोनों हाथ आटे में सने है और मन में ....
“शुद्ध सात्विक भोजन अगर स्वयं अपने हाथों से बनाया जाये तो
भोजन से मिलने वाली ताकत दो गुनी हो जाती है | और भोजन यदि प्रेम से बनाया जाये तो
विचार शुद्ध और पवित्र होते जाते है | खानें की थाली को हाथ में लेकर अब फिर से
उनकी आँखे बंद ....
उस किसान को मेरा हार्दिक धन्यवाद जिसके अथक प्रयत्न ने इस अनाज
इन सब्ज़ियो को पैदा किया | इस धरती को,
सूर्य को, जल को ,मिट्टी को भी शत शत धन्यवाद , जिनके कारन ही यह उत्पादन संभव
हुआ | उस परमात्मा को कोटि कोटि नमन जिसने
मुझे इसे ग्रहण करने का अवसर दिया .... “ तब कहीं जाकर निवाला हलक से नीचे उतरा और
खाने के बाद अब वक़्त हो चला है छत पर टेहेलने
का खुली हवा में साँस लेने का .... कि फ़ोन
की घटी बजी ,
“आप किस तरह के शिक्षक है ? क्या सीख दे रहे है एक छोटे
बच्चे को ? ख़ुद तो सरकारी नौकरी लिए बैठे है और मोहल्ले के बच्चों का भविष्य
बर्बाद कर रहे है | मैथ्स मत पढ़ो , नौकरी की चिंता छोड़ो! आइन्दा ऐसा हुआ तो ठीक
नहीं होगा हेमंत बाबू |अपने काम से काम रखिये तो ही अच्छा होगा| “ ...... फ़ोन कट
गया | हेमंत बाबू ने पूरी बात सुनी समझी और एक गहरी लम्बी खींची और सांस बाहर
छोड़ते वक़्त सारा विषाद भी निकाल दिया , छत की सीढ़िया चढ़ गए |
“ ऊपर आकर सब भूल गए , मन तृप्त हो गया चाँद देखकर ...” आज पूर्णिमा है | आज पृथ्वी
सूर्य और चन्द्रमा के बीच होती है और तीनो एक सीधी रेखा में होंगे | चारों तरफ
चांदनी ही चांदनी बिखरी है , पूरी फिजा में घुली गयी है | चंद्रमा और अध्यात्मिक क्रियाओं का गहरा
संबंध है | पूनम की रात को किया गया ध्यान काफ़ी गहरा और सार्थक होता है | मन ही मन
बुदबुदाते हुए हेमंत बाबू पूरब दिशा की ओर बैठ गए और अपनी आँखें बंद कर ली | शरीर
शांत , साँसे शांत और विचार शांत ........दिन भर जिन जिन लोगों से मिले उन सभी पर
चांदनी की शीतलता छिटकी और जो भी खट्टा मीठा अनुभव रहा वो सब स्वीकार किया | सबको
माफ़ किया | हेमंत बाबू ने ख़ुद को परमपिता परमात्मा के अंश के रूप में देखने का
प्रयत्न किया और एक मंत्र मन ही मन बोलते रहे
“ ध्यान सफल हो , मैं अपने वास्तविक रूप को उपलब्ध होऊं , ॐ ॐ ॐ म्मम्मम्म “
ध्यान अब गहराई की ओर उन्मुख है .... भीतर की दुनिया में एक ख़ूबसूरत बादल हेमंत
बाबू के सिर के ठीक ऊपर है , सिल्वर लाइट से भरा हुआ ....चमकीला बादल , यह सिल्वर
लाइट अब धीमे धीमे सिर से होते हुए माथा आँखे चेहरा गर्दन ह्रदय और फिर हर एक सेल
में भर रही है | ये प्रकाश शरीर के भीतर हर कोशिका हर अंग से नकरात्मक घटकों को
दूर करता जा रहा है और अंदर के प्रकाश को जो अब तक छिपा है उसे उजागर कर रहा है |
आखें बंद पलकें शांत , विचार शून्य होकर इस चमकीले प्रकाश के बादल में लिपटे हेमंत
बाबू एकदम शांत बैठे है शांत ...शांत
मच्छर न होते तो शायद सारी रात यूँ ही बीत जाती ....पर इतने
अच्छे ध्यान के बाद यह कैसा अजीब सा सपना
देखा आज रात, एक बहुत विशाल जीव उनके भीतर
है , दर्द से छटपटा रहा है , वैसा जीव कभी पहले नहीं देखा , करवटे लेता है तो एक
चीख़ सी निकलती है ... अपनी अंतिम सांसे ले रहा है |
ये कैसा सपना देखा आज ? दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा है | ये
कैसा इशारा है परमात्मा का? किससे पूछू अब
? अधीर , बेचैन, कुछ देर इधर उधर फडफडाते रहे
फिर जब कुछ न सूझा तो चुपचाप बैठ गए ऊपरवाले से प्रार्थना करने लगे , कुछ तो राह
दिखाओ ....तभी वो किताब याद आयी ...क्या नाम है उसका ?
न खाना बनाया न ही कुछ और काम किया , एक टक किताब में नज़रें
गड़ाये “ कभी कभी ऐसा महसूस होता जैसे हमारे भीतर एक बड़ा सा जानवर बैठा है | यह कुछ
और नहीं हमारी “पेन बॉडी” है | जन्मों से दबाया हुआ गुस्सा , कुंठा , जलन , अहम् जैसे
भाव हमारे भीतर लगातार इकट्ठा होते रहते है | वो हमारी पेन बॉडी के रूप में हमारे
अंदर ही रहते है | जब हम किसी पर गुस्सा, जलन , नफरत इत्यादि करते है , तब वो कुछ
और नहीं हमारी पेन बॉडी की अभिव्यक्ति ही होती है | लेकिन क्रोध आने पर इसे अगर पूरे होश में देखा जाये तो यह पिघलने लगती है
और सो जाती है , दोबारा फिर नकरात्मक भाव
जन्मते ही यह पेन बॉडी क्रियान्वित होकर फिर से अभिव्यक्ति चाहती | हर बार इसे होश
में रहकर सुलाया जा सकता है | पर जो आत्माएं सतत आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर उन्हें
यह जल्द ही छोड़ देती है | इसके शरीर से जाने के बाद बड़े अनूठे अनुभव घटते है ,सातों
चक्र खुल जाते है | बड़ी शांति उतरती है , वरदान की वर्षा होती है सब तरफ कमल ही
कमल खिल जाते है ”
हेमंत बाबू ने फिर से वो सपना अपने मन में दोहराया कि वो
जीव अपनी अंतिम सांसे ले रहा है ...इसका मतलब जल्द ही वो इन भावो से ऊपर निकल
जायेंगे ....वरदान की वर्षा ...कमल ही कमल ....कब आएगा वो दिन ? अब कहीं जाकर
हेमंत बाबू को चैन मिला, झोला उठाया , सीधा
स्कूल चल दिए |
विश्राम....सावधान ....प्रार्थना ...अब सारे बच्चे सामूहिक
रूप से गुड मोर्निंग बोलेंगे |
कक्षा में ...
सर जी आज पढ़ाइये मत , आज सबका खेलने का मन कर रहा है | कुछ
खेल खिलवाइए, प्लीज |
“अच्छी बात है, सब लोग सीधी पंक्ति में खड़े हो जाओ और मेरे
साथ बाहर आओ ...
“ अपने अपने जूते चप्पल
खोल दो और दूर दूर खड़े हो जाओ , अब खूब ऊंचा उछलो , कूदो , दायें भागो बाएँ
भागो ,जॉगिंग करो , अपनी जगह पर खड़े खड़े कदम ताल करो ...... जिस वक़्त थक जाना , तुरंत बुत बनकर धरती
पर जड़े जमाकर वहीँ खड़े हो जाना और महसूस करना कि तुम्हारे पैरों से कोई चीज़ धरती
में जा रही है और धरती से कोई चीज़ तुम्हारे पैरों में प्रवेश कर रही है | अपने
पैरों और मिट्टी के बीच तरंग महसूस करना , तैयार हो बच्चो चलो शुरू हो जाओ ....मैं
भी तुम लोगों का साथ दूँगा “ ठीक है सर
जी! सब बच्चे एक साथ हवा में ऊंचा उछल पड़े!
“ आज तो सूरज पच्छिम से निकला है , हेमंत बाबू स्कूल समोसा
खा रहे है , क्या बात! क्या बात! “ इंटरवल में जैन बाबू ने तीखा व्यंग किया
“ आज वक़्त नहीं मिला बनाने का ” जवाब में हेमंत बाबू ने कहा
‘तो भूखे रह जाते , ध्यानी पुरुष को समोसा शोभा नहीं देता ,
कुछ तो गरिमा रखिये “ पीछे से नरेश बाबू ने
भी मज़े लिए
“ अच्छा ये सब छोडिये , एक समस्या हल कीजिये हमारी , रात
में नींद नहीं आती , दिन भर स्कूल की थकान
और उसपर पार्टी का भी कुछ कार्यभार सँभालते है ,पर भी रात में अगर दो कुत्ते भी भौंक
दे तो नींद खुल जाती है , फिर दोबारा नहीं आती | इस जैनमुनि का भी कुछ कल्याण
करिए, ध्यान की कोई विधि बताइए प्रभु “
जैन बाबू ने नरेश बाबू को देखा , आँख दबाते हुए हेमंत बाबू से कहा | हेमंत बाबू ने
कोई जवाब नहीं दिया |
समोसा खाया , सीधा अपनी कक्षा लेने चल दिए पर कुछ सोचकर मुड़े
और बोले “अशांति का बीज बोकर शांति का फल कैसे मिल सकता है ? बबूल होकर आम का फल चाहते
है | यह पद प्रतिष्ठा आकांक्षा यही अशांति की जड़ है| आपको शांति पानी है तो राजनीती
छोड़ दीजिये , ध्यान कीजिये , शांति अपने आप आएगी और नींद भी “ हेमंत बाबू ने एक
लम्बी सांस बाहर छोड़ी और साँस के साथ सारा गुस्सा फ़ेंककर आगे बढ़ गए |
शाम को पेड़ो में पानी देते वक़्त भी गहरी गहरी सांसे चल रही
है | हर एक पत्ते ,हर एक पेड़ को छूकर उनकी तरंगे महसूस कर रहे है | पेड़ो का
आशीर्वाद ले रहे है | एक पेड़ के तने से गले लगकर तो खो ही गए | एक हो गए दोनों! ऐसे
मगन है जैसे साक्षात् परमात्मा को ही आगोश में भर लिया हो ...... और तभी “ यह भीनी भीनी सुगंध कहाँ से आ रही है , इतनी शीतल
और पवित्र सुगंध और उनकी आखों से बरबस आसूँ बह पड़े ....मन ही मन “अगर किसी पेड़ के आसपास कोई पवित्र आत्मा का
वास हो तो वहां एक ख़ुशबू अपनेआप पैदा हो जाती है और आत्मतेज से भरे लोग उसे महसूस
कर सकते है”
बगल वाले घर की छत से मिश्र जी खड़े यह सब देख रहे है जब ख़ुद
को रोक न पाए “ क्या कर रहे हो हेमंत बाबू
?
‘ कुछ नहीं , पेड़ से छटक कर वो दूर खड़े हो गए | फिर कुछ
सोचकर “ मिश्रा जी क्या आप यहाँ आ सकते है
? हेमंत बाबू ने कहा
“आते है”
‘मिश्रा जी क्या आपको इस जगह कोई ख़ुशबू आ रही है ?
यहाँ से ? पेड़ से चिपककर मिश्रा जी “ख़ुशबू ... नहीं तो”
“मुझे तो आ रही है , कहते है पवित्र आत्माएं अपनी उपस्थिति
ऐसी खुश्बुओं से ही ज़ाहिर करती है | ज़रूर आसपास कोई दिव्य आत्मा है |
अरे! ये ख़ुशबू .... ये तो हम अभी घर में अगरबत्ती जलाकर आये
है , उसी की है | हवा से उड़कर यहाँ आ गयी , तो इसमें कौन सी ताज्जुब की बात है | यह
क्या कह दिया मिश्रा जी ने! हेमंत बाबू की
अध्यात्मिक उडान के पर ही कट गए |
“ समोसे की खट्टी डकारें अभी तक आ रही है , आज के रात्रि
ध्यान में ये इतनी बड़ी बाधा बन जाएँगी , पहले पता होता तो समोसे की आफ़त कभी मोल न
लेता ” |
ध्यान की अनेक विधियों के बाद भी जब रात्रि ध्यान नहीं सधा
तो हेमंत बाबू सो गए | नींद बेवक्त खुल गयी ... घड़ी देखी “ अभी तो देढ ही बजे है | पर नींद
स्वयं खुल जाये तो और सोने का कोई औचित्य ही नहीं , आलास त्यागा और तुरंत बिस्तर
पर कमर सीधी करके बैठ गए ..... आखें बंद पलकें शांत , पूरा ध्यान सिर्फ़ आती जाती
सांसो पर |
एक दो तीन चार एक गहरी साँस भीतर ली .... दो मिनट रोककर एक
दो तीन चार पांच छ , वही साँस बाहर छोड़ दी ......अंदर बाहर अंदर बाहर ... पूरे
ब्रह्मांड से शक्तियों को अपनी ओर खींचा और फिर साँस बाहर छोड़ते वक़्त ढेर सारा
प्रेम पूरे विश्व में लुटा दिया .....अंदर बाहर अंदर बाहर “ गेरुलाल के घर रोटी
भेजो “ एक गहरी साँस अंदर खींची फिर वही साँस बाहर , अंदर बाहर “ गेरू लाल के घर
रोटी भेजो “ हेमंत बाबू ने अचानक अपनी आँख खोल दी.... ये कैसी अजीब सी आवाज़ सुनायी
दे रही है | कहाँ से आ रही है ? चारों ओर देखा तो वहां कोई नहीं है , कहीं कोई नहीं है .....फिर वैसे ही बैठ गए ,
आंखें बंद पलकें शांत ....आवाज़ पर ध्यान न देकर ध्यान पर ध्यान देना ज़्यादा उचित
होगा और फिर वही ....एक गहरी लम्बी साँस भीतर को खींची और आहिस्ते से छोड़ दी अंदर
बाहर... अंदर बाहर.. लेकिन थोड़ी देर बाद फिर वही “ गेरू लाल के घर रोटी भेजो हेमंत
‘ तब भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया ....चौथी बार आवाज़ बहुत ज़ोर से आई और उन्हें एक ज़ोर का झटका लगा “ उठो
हेमंत , गेरुलाल के यहाँ रोटी भेजो “ ........
मन में एक आकस्मिक वेग उत्पन्न हुआ और वो तुरंत उठकर बैठ गए
| कुरता पहना और नुक्कड़ वाली चाय की दुकान पहुँचे , जो रात भर खुली रहती है , बन
और डबलरोटी के पैकेट ख़रीदे और पांच रूपए देकर छोटू से कहा “ ये ले जाकर गेरुलाल की
झोपड़ी के बाहर रख दो “
कहाँ रहता है गेरुलाल ? छोटू ने पूछा
“वो ख़ाली प्लाट में जो झोपड़ी है , जहाँ एक रिक्शा खड़ा है ,
वहीँ दे देना “
रोटी भिजवाकर हेमंत बाबू घर आ गए और पर उनका मन स्थिर न
हुआ , अगले दिन स्कूल से वापिस आते वक़्त
“ नमस्ते मास्टर बाबू “ पीछे मुड़कर देखा तो गेरुलाल है | उसे देखकर हेमंत
बाबू के माथे पर पसीने की कुछ बूँदें उतर आई , |
नमस्ते |
मास्टर बाबू , आपको
याद है ?एक बार आपने कहा था , कि पूरे मन से कुछ मांगो तो ऊपरवाला सुनता है | बाबू
, कल रात खाने को एक दाना भी नहीं था , दो तीन से हम बुखार में पड़े है, रिक्शा
लेकर निकले नहीं तो घर में कुछ पका भी नहीं | पूरा परिवार भूखा सो गया , पर छोटी बिटिया भूख
से बिलख बिलख कर रोती रही , देखा न गया तो लेटे लेटे भगवन से एक ही गुहार लगाते
रहे “या तो पेट भर दो भगवन या हम सबको उठा
लो”
कुछ देर बाद आहट सी लगी तो देखा बाहर, डबलरोटी के पैकेट रखे
है ‘ ऊपरवाले ने सुन ली बाबू | ....
हाँ हाँ ..... कहकर हेमन्त बाबू ने माथे से पसीने की बूँदें
पोछी और तेज़ कदमो से अपने घर को चल पड़े .....
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