माफ़ कर दे मुझे तू नहीं
समझ पाया मैं तुझे
कहते कुछ हो करते कुछ
सोचते कुछ और ही हो तुम
कितनी हवाएं दी मैंने
तुमको
कितनी बारिशे कितनी ख़ुशबू
कितना झूला है तू मेरी
बाहों में
धंधकता रहा तेरे हवन
कुण्ड में मैं
जिस्म की छाल तक उतार दी
कि तेरे ज़ख्मों पर मलहम
बन जाऊ
कैसे भी बस मैं तेरे काम
आऊ
पर एक आरी चलाकर तू तो
पूरा रिश्ता ही जड़ से काट
देता है
और ये क्या फिर मुझ पर ही
मन्नतों के सब धागे भी
बाँध देता हैं
ईश्वर बनाकर मेरी आराधना करता
है
नहीं चाहिए कुछ मुझे
न तेरा प्यार न तेरा वार
खोल दे ये सब रिहा करदे मुझे
नहीं समझ पाया मैं तेरे
मन को ....