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Monday 13 June 2016


                               माफ़ कर दे मुझे तू नहीं समझ पाया मैं तुझे
                                        कहते कुछ हो करते कुछ
                                           सोचते कुछ और ही हो तुम
                                       कितनी हवाएं दी मैंने तुमको
                                       कितनी बारिशे कितनी ख़ुशबू
                                       कितना झूला है तू मेरी बाहों में
                                      धंधकता रहा तेरे हवन कुण्ड में मैं
                                        जिस्म की छाल तक उतार दी
                                     कि तेरे ज़ख्मों पर मलहम बन जाऊ
                                         कैसे भी बस मैं तेरे काम आऊ
                                           पर एक आरी चलाकर तू तो
                                    पूरा रिश्ता ही जड़ से काट देता है
                                     और ये क्या फिर मुझ पर ही
                                        मन्नतों के सब धागे भी बाँध देता हैं 
                                      ईश्वर बनाकर मेरी आराधना करता है
                                        नहीं चाहिए कुछ मुझे
                                         न तेरा प्यार न तेरा वार  
                                     खोल दे ये सब  रिहा करदे मुझे
                                  नहीं समझ पाया मैं तेरे मन को ....




एक बेचैन चील ..

एक चील को देखा है कई बार
तनहा थोड़ा बुज़ुर्ग सा
रोज़ सुबह घर के पास  
सूरज की पहली किरन के साथ
खुद भी चला आता है
ऊंची ऊंची इमारतों के बीच
कोनो कोने में झांकता घंटो उड़ा करता है
ऊपर से नीचे नीचे से ऊपर
कभी गोल गोल , कुछ खोजता हुआ
पंख के टुकड़े बिखराता यहाँ वहाँ
परेशां सा बस उड़ा करता है
सुनते भी है यहाँ पहले जंगल था
बहुत परिंदे थे बहुत चील भी थे
जंगल कटा तो सब उड़ गए
कोई चला गया इसका भी शायद  
जो वापिस नहीं आया
यूं हीं बेवजह उड़ा करता है
बेचैन चील ....




वृन्दावन मेरा मन ..

एक वृन्दावन होता है हर किसी के मन में 
पेड़ो से परिंदों से भरा मधुबन होता है ये
जामुन आम पीपल कीकर चन्दन
बरगद कोयल चातक मयूर सब होते है यहाँ
नीला गहरा नीला आकाश भी है
मोरपंख के रस में ढला
नीला नीला एकदम नीला   
ऊंचा बहुत ऊंचा पहाड़ भी है
इंद्र पर्वत जैसा एकदम वैसा
झरने बहते है नदिया बहती है
और सूरज की रश्मियों में नहाकर
नदियों में तरी लगाकर
लोग रूह निहाल करते है अपनी  
थककर जीवन की आपा धापी से
हैरान होकर सब यहीं आते है
अपने मन के वृन्दावन में ...




प्रेम जो मृत्यु से परे है ...

प्रेम ...

मानव हृदय प्रेम का अथाह सागर है 
और अनहद प्रेम जब थमता नहीं मन में
तो छलक छलक जाता है 
विवश होकर आकार लेता है 
जटाजूटधारी कभी धनुर्धारी
कभी मोरपंख लगाकर बस 
बाँसुरी बजाता है ... 
कभी घुंगरू पहनकर
कभी चुनरी पहनकर
चार हाथ कभी आठ हाथ 
वीणा मृदंग करताल 
कभी तो बस इकतारा बजाता है 
ईश्वर तो निराकार है 
ये प्रेम ही तो है जो 
सबकुछ साकार कर देता है ..
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1- 
रोते मत रहना
वही खड़े होकर
मैँ वहाँ नहीं हूँ
दफ़न नहीं रहूंगी देर तक
हवा हूँ उड़ जाऊँगी
बरफ़ के पहाड़ों पर जाकर बैठूंगी
मन हुआ तो फिर और ऊपर
बादलों के साथ परिन्दों के साथ
उड़ती रहूँगी रात तक
तारा बन जाऊँगी
देख लेना तुम
रोना मत बस
वहीँ खड़े रहना
वहाँ नहीं हूँ
मैं मरी नहीं हूँ।
2- 

बड़े चुपके से कहा था उसनें   
कानों में मेरे .. बनाया था जब
“ तेरा है ये सब ... सब तेरा है
करीब है तू बहुत मेरे दिल के
ख़ास है .. सबसे ख़ास
बनाया तुझे सबसे प्यार से “
बस तबसे मैं ऐसी ही हूँ
सीधी नहीं चलती कभी
ये पाँव उड़ते है सदा
चाँद संग संग चलता है मेरे
सूरज हर रोज़ जगाता है
ज़मीन ये दरख़्त ये कोह ये काह
बस मेरे हैं सब मेरे बस
यकीन तो पूरा है उसपर
फिर शक क्यों होता है अक्सर
कहीं ये बात उसने
सबके कानों में तो नहीं कह दी ....


1- Tress my first love ..
ये गुस्सा नहीं करते कभी !
दुखी नहीं होते ! ख़ुश भी नहीं होते !
बस शांत होते हैं , शांत बस
और आंधियाँ जब चलती हैं
तो उड़ते हैं तिरछा होकर
बरसातों में चुपचाप भीगा करते हैं
धूप तेज़ हो , तो सूख तक जाते हैं
पाला मार जाता है , कड़ाके की सर्दी में इन्हें
पर बगैर किसी उफ़ के ! सब जी लेते हैं
ख़ुदा की दी हर चीज़ से मोहब्बत करते हैं
मैं विस्मय से भर जाती हूँ , देखकर इन पेड़ों को
शोर जो मेरे भीतर है , शांत सब हो जाता है
और जी करता है कि श्रुति होती मैं भी काश
कोई पेड़ ही होती ... कोई भी !

2- अलका 
बच्चों को गाँव छोड़कर
घर पर काम करती है मेरे  
अपनी तस्वीर देख कर बोली
“ बहुत अच्छी आ गई ये फोटो 
एक भी नहीं मेरे पास मेरी
मोबाइल से निकालकर दे दीजिये
हम धुलवा लेंगे ..
बेटा जब बड़ा हो जाएगा
और याद करेगा हमें
जाने के बाद 
बोलेगा ज़रूर देखकर फोटो
देखो यही मेरी मम्मी थीं “ 
१- फ़रिश्ते..
छोटे से फ़रिश्ते देखे  
सपने में एक दिन
कानों पर बैठकर मेरे
पर्दे बदल रहे थें
नसों में कुछ खींचतान
पुर्ज़े पुर्ज़े चेक कर रहे थे
पूँछा तो  बोले ...
“ तुम सुनती क्यों नहीं
कचनार के पेड़ देखतो हो
हर रोज़ अपने रस्ते पर
पिकप बिल्डिंग वाले  
कितने प्यारे हैं वो सारे   
कुछ कहना चाहते हैं
बतियाना है उनको     
बातें करती क्यों नहीं ?
तुम कुछ सुनती क्यों नहीं ? 

 2- बारिश 
 बारिश जब होती थी
कॉपी से पन्ने फाड़कर
नावें बनाते थें हम लोग
डाल देते थें एक निशान भी
नांव के किसी कोने पर
कि ये मेरी है , वो तेरी है
घर के पास वाली गली में
पानी भर जाता था जहाँ
छोड़ आते थें उनको
फिर कई कई दिनों तक
बस वही एक सोच
कि कहाँ तक पहुंची होगी ?
अटक गयी हो कहीं ?
और रात में बरसता था पानी जब
तो फिकर और भी बढ़ जाती थी
अंधरी रात है जोर की बरसात है
महासागरों से गुज़र रही होगी
रब्बा मेरी नांव को सलामत रखना
नांव दिखी थी आज एक
किसी बच्चे ने तैरायी होगी
तो अपनी नांव याद गयी
कहते हैं बातें जो करीब हो दिल के
कह देनी चाहिए ...
वरना हम उन्हें भूल जाते हैं |