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Friday 18 October 2013

मेरे घर में चोरी हो गयी

मेरे घर में चोरी हो गयी
सब चला गया
पैसे कपडे गहने
घर का कीमती सामान
सालो साल का जमाया
सब गायब..
गहरी नींद में सोये थे जब
रात ताला तोडकर
ख़ुशी आई ,दबे पाँव
सब उड़ा ले गयी

मेरे घर में चोरी हो गयी
                       श्रुति  

खाली भरी शाम .....

                      
आसमान अलग था ...
सिर्फ एक चाँद , सिर्फ एक तारा
खाली भरी शाम जैसे 
खाली कि, सिर्फ एक चाँद
और सिर्फ एक तारा
भरी भी इसीलिए ...
एक चाँद से सटा एक तारा
चाँद , बुदबुदाता शायर
फलक के कोने कोने से नज़्मे लेता
तारे को पेश किये जाये
शुरु में कुछ फीका फीका तारा
नज़्म दर नज़्म ,चमकता जाये
चाँद की उधारी शायरी,
 रौब ज़माने लगी थी
कुछ ही देर में पूरा आसमान
 तारो से भर गया   
वो एक तारा कही गुम गया ...



                          श्रुति 

Thursday 17 October 2013

पत्तों का शहर

                              
उड़े हुए पत्तो का
एक शहर होगा
पुरानी बस्ती होगी बहुत
सूखे, पीले पत्तो की
दूर सफ़र करके , आते होंगे सब
हाल खबर लेकर , किस्सों की गठरी
सर पर ढ़ोकर लाये जो
खुलती होगी , निकलती होंगी
लंबी छोटी बाते.........
भौरों की दोपहर ,जुगनू की राते 
पतझड़ की बाते  , बहार की बाते  
सावन की बाते  , भोले की बाते   
शाखों की बाते   , महुओं की बाते
ओस का गिरना  , फूलों पर मरना
कउओ के भाषण , बयां के गाने
मोम का बचपन, जवानी की ऐठन 
मौसम बदलना , झुर्री की बाते  
उमर का ढलना , मसों की बाते  
कीड़ो की आहट , फिर गुमसुम गुमसुम  
शाखों से जुदाई , आंधी की बाते  
उड़ना उड़ाना, वो डेरा बदलना
एक बुज़ुर्ग पत्ते ने
बताया सब , आज शाम
चेहरे पर उसके ...
पैरो के निशान थे
                                                                          श्रुति    


Tuesday 15 October 2013

बहुत शांत मन


आज मन शांत है
बहुत शांत...
ख़ुशी भी कैसे कैसे
भेस बदल कर आती है
नाचने को दिल करता
कभी बस झूमने को
गाने को बजाने को
सुनने को सुनाने को
हँसने को तो कभी शोर करने को
पर आज ..
शोर है उमंग तरंग कोई
आँख बन्द करके बैठने को दिल करता
आज मन शांत है
शांत बस
बस शांत



तेरा हूँ मैं


इसाई नहीं यहूदी नहीं
हिन्दू मुस्लिम सूफी ज़ेन
इनमें से कुछ नहीं
पूरब का नहीं पश्चिम से नहीं
समुन्दर का जन्मा हूँ
ज़मीन से पैदा हूँ
क़ुदरत का नहीं कायनात का नहीं
आदम से कोई रिश्ता नहीं
मेरा घर कोई घर नहीं
मेरे निशान बेनिशान हैं
जिस्म मेरा रूह कोई
पीछें नहीं कुछ आगे नहीं
कुछ नहीं कुछ भी नहीं
ज़र्रा तक नहीं
आखिर करूँ क्या
जब नहीं जानता
कौन हूँ ?
प्यार किया है तुमसे
मैं बस तुम हूँ
तेरा हूँ !!


Sunday 13 October 2013

बदला कहाँ कुछ .......


सुबह जब आइना देखा ,
फेसबुक का वो कमेंट भी दिख गया
“क्या हो गया आपको, बदल गयी है “
हुआ क्या ? वैसा ही सबकुछ ,था जो पहले  


चीर कर परदे का सीना
धूप  तो वक़्त पर आती है
और नल में पानी भी
समय पर, शुरू होती है
समय से ,टग ऑफ़ वॉर भी


पहले से लटकी, लिफ्ट में लटकना
दफ्तर पहुचकर ......
ऐठ के बैठना या टेढ़े टेढ़े चलना


साबुन, तेल ,नमक , जूते  का नाप
वज़न मेरा , बदला कहा कुछ
मिलती है रोज़ वोही
रखते है जहां.... दोपहर मेरी

शामे, आदतन व्यस्त .......
आसमान की कोलंबस राइड ,फिर  
“इवनिंग वाक” के आठ चक्कर
पहले सात , सोमवार से रविवार
आठवा ,फरवरी की २९ तारीख ....
कभी कभी , ही होता है


रात रोजाना , एक तारे के ब्याह में जाना
फिर दो ख्वाब , तकिये संग लेकर सो जाना
कुछ भी बदलता , तो बात और ही होती !
बदला कहा कुछ ......

सिवाय , हत्थे वाली पुरानी कुर्सी,
ज्यादा अच्छी लगती है
 स्याही जो जम गयी थी पेन में
चलने लग गयी है अब ...........
                         
                             श्रुति












Saturday 12 October 2013

घास का मैदान ......


यहाँ से बहुत दूर .....
सही गलत से आगे
“एक घास का मैदान है “
जहाँ पर धूप और बारिश
दोनों साथ होती है


सूर्य ,चंद्रमा  साथ चमकते ,
दिन होता न रात होती  है
मौसम हरदम लवली लवली
लवली सारी बात होती है

नदी और पहाड़, शरारती दोनों
खेलते है २४ घंटे “बर्फ़-पानी “
नदी ने किया पहाड़ को “बर्फ “
जम गया वही पर ....
पहाड़ ने नदी को “पानी “
 बहे जा रही है तबसे

बादल और कोहरा , दो लफंगे
एक ही बाइक पर सवार
ठण्ड का मफलर लपेटे
निकल पड़ते है, आँखे सेकने
उधर से बिजली और आंधी
तड़कती, भड़कती ,कड़कती
चली आती है ..हवा खाने
यही , “इसी घास के मैदान” पर
 है तो बहुत दूर ,पर जाना है ज़रूर 
                                श्रुति