एक बूढ़े शहर का ट्रैफिक जैम
सड़के आज भी जहाँ “मूल “
पर गाड़िया चक्रवधि ब्याज
फसी थी मै भी एक जैम में
मगर किसी शहर के नहीं..
आधी पूरी नज्मो का उलझा
यातायात
कच्चे पक्के ख़याल ,टेढ़े
मेढ़े मिसरे
6 लेन पर भागती गाडियों जैसे
हार्न
बजाती ,लाइट जलाती
एक
साथ दौड़ लगाती
कौन
सी पकडू ,कौन सी छोड़ू ,कश्मकश
बमुश्किल
,दो तीन ही संभली
बाकी
सरक ली दूर बहुत
इंतज़ार
पकड़ कर हाथों में
मै
तो आज भी वोही हूँ
पर
उचक्के मन ने मेरे
लंबी
छलांग मारी है
पंहुचा
है अब कर्फ्यू में कही
जहां
दूर दूर तक न तो कोई
नज़्म
दिखाई पड़ती है
न
ही कोई हार्न सुनाइ पड़ता है
श्रुति