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Monday 21 October 2013

याद है न तुम्हे .....



याद है न तुम्हे .....
 वो ज़ीरो फिगर वाली शाम
कैसी चर्बी चढ़ाई थी उस पर ,
मॉलो ,पार्को को दबाकर किनारे
कब्रिस्तान का प्रोग्राम बनाया था
सन्नाटे के बीच , ताबूत बन रहे थे
और रन भी , वो अमलतास के पीछे क्रिकेट
याद है न तुम्हे .....
चक्कर पूरा काटा था वहाँ का
दिया था वक़्त ,एक एक कब्र पर
देखा कैसे था उन सबको
उपन्यास के क़िरदार हो कोई
या फिर ग़ालिब के शेरों हो जैसे
और वो दिलजला पेड़ ,बिना पत्तो वाला ,
काली काली जली भुनी डाले उसकी
सामने वाली नीम्बी को देख
ज़्यादा खुश भी नहीं था
वो कोना , डरा डरा सा, स्याह स्याह
रात पहले पहुची थी जहाँ शाम से
घबरा गयी थी तुम वहाँ ,
याद है न तुम्हे ... मौत का मज़ा
लिया था हमने ...    
                                       श्रुति 






रौशन है तू बहुत मगर

रौशन है तू बहुत मगर
 यू भी बहकना ठीक नहीं
होश गवां बैठी तू सारे
दीवानों सा बर्ताव करे
कैद कर कमरे में तुझको
रक्स कराऊ, भीतर ही भीतर
पर चमक तेरी, गज़ब पर गज़ब ढाए
दुश्वारिया बढ़ाये , छन छन कर बाहर आये
खिड़की से झांकी जाये , जाली से बहती जाये
रोशनदान को मनाकर तूने
चिलमनो को भी बिगाड़ा  है
किवाड़ो को फुसलाकर
 अब क्या दीवारें भी गिराएगी  
बेसब्री तेरी साफ़ दिखे है
सीएफएल में दमकती रहती तू 
ट्यूबलाइट में चमकी जाये रे 
भूल गयी क्या ,रौशन नहीं तू खुद से है
उधार “चाँद” से लाती रोज़
छुप छुप कर जाती   ‘ तली भर ले आती
सोच कभी ऐसा भी हो
शरमाई सी पहुचें  तू , चाँद के दरबार में
हाथ फैलाये खड़ी रहे ,रौशनी की दरकार में
      “चाँद रहे मूड में “
पिघल जाये ख़ुद बा ख़ुद
सिमट कर , उतर आये 
सुराही में तेरी , पूरा का पूरा
सोच कभी ऐसा भी हो .....
                                                                          श्रुति 


Saturday 19 October 2013

ज़ोर की बारिश

                         
ज़ोर की बारिश में
यूकेलिप्टस के दो लम्बे ऊचे पेड़
प्यार का कॉन्ट्रैक्ट री–न्यू कर रहे है
झुक झुक कर कानो में मुह डालकर
गुपचुप बाते , चल रही है
नयी नयी शर्ते ,नए समझौते चल रहे है
भाव बढ़ रहे है , नियम बदल रहे है
गहरे समुंदर के ऊपर लहरें चलती है जैसे
सच्ची मुहब्बत के फर्जी रिन्यूअल चल रहे है
प्यार के सभी दांव पेंच चल रहे है

                                                               श्रुति 


वक़्त ज़्यादा ज़्यादा है ...

                 
सुबह का बढ़ रहा वज़न
शामो की लम्बाई
बदली बदली ,तबियत मेरी
बदल गया अंदाज़ मेरा

वॉली बाल का शौक नया
वाक से गहरा नाता है
नींद थोड़ी कम कम है
वक़्त ज़्यादा ज़्यादा है

कवितायेँ सुलझ न पाई जो
कवि खुद सुना कर जाते है
जम्हाई गर आ जाये तो
 फिर चाय भी पिलाते है

क़िताबे सभी भारी भरकम
अलमारी में सुस्ताती थी
पन्ने पलटकर खुद अपने
पास मेरे आ जाती है

मिसरे भी थे, नाराज़ कभी
कुछ ख़ास नहीं कर पाई मै
वक़्त वक़्त की बात है सब
नज्मो संग इश्क लड़ाती हू


विश्व युद्धों में उलझी हू
“चर्चिल” के खत सब बाकी है
“गुलज़ार” बहुत सताते है
“ओशो” से पुराना वादा है
नींद थोड़ी कम कम है
वक़्त ज़्यादा ज़्यादा है

एक खौफ़ घेरे रहता है
एक डर भी डराता है
मुझसे कहता दिन रात यही
“ शौक तेरे टेढ़े मेढ़े सब
तू सनकी होती जाती है
आइना भी देख कभी
तेरी उमर ढलती जाती है
तेरी उमर ढलती जाती है
इतना भी समझ नहीं पाती  है
कि नींद तेरी कम कम क्यों
क्यों वक़्त तेरा ज़्यादा है “
                         श्रुति



Friday 18 October 2013

मेरे घर में चोरी हो गयी

मेरे घर में चोरी हो गयी
सब चला गया
पैसे कपडे गहने
घर का कीमती सामान
सालो साल का जमाया
सब गायब..
गहरी नींद में सोये थे जब
रात ताला तोडकर
ख़ुशी आई ,दबे पाँव
सब उड़ा ले गयी

मेरे घर में चोरी हो गयी
                       श्रुति  

खाली भरी शाम .....

                      
आसमान अलग था ...
सिर्फ एक चाँद , सिर्फ एक तारा
खाली भरी शाम जैसे 
खाली कि, सिर्फ एक चाँद
और सिर्फ एक तारा
भरी भी इसीलिए ...
एक चाँद से सटा एक तारा
चाँद , बुदबुदाता शायर
फलक के कोने कोने से नज़्मे लेता
तारे को पेश किये जाये
शुरु में कुछ फीका फीका तारा
नज़्म दर नज़्म ,चमकता जाये
चाँद की उधारी शायरी,
 रौब ज़माने लगी थी
कुछ ही देर में पूरा आसमान
 तारो से भर गया   
वो एक तारा कही गुम गया ...



                          श्रुति 

Thursday 17 October 2013

पत्तों का शहर

                              
उड़े हुए पत्तो का
एक शहर होगा
पुरानी बस्ती होगी बहुत
सूखे, पीले पत्तो की
दूर सफ़र करके , आते होंगे सब
हाल खबर लेकर , किस्सों की गठरी
सर पर ढ़ोकर लाये जो
खुलती होगी , निकलती होंगी
लंबी छोटी बाते.........
भौरों की दोपहर ,जुगनू की राते 
पतझड़ की बाते  , बहार की बाते  
सावन की बाते  , भोले की बाते   
शाखों की बाते   , महुओं की बाते
ओस का गिरना  , फूलों पर मरना
कउओ के भाषण , बयां के गाने
मोम का बचपन, जवानी की ऐठन 
मौसम बदलना , झुर्री की बाते  
उमर का ढलना , मसों की बाते  
कीड़ो की आहट , फिर गुमसुम गुमसुम  
शाखों से जुदाई , आंधी की बाते  
उड़ना उड़ाना, वो डेरा बदलना
एक बुज़ुर्ग पत्ते ने
बताया सब , आज शाम
चेहरे पर उसके ...
पैरो के निशान थे
                                                                          श्रुति