निकलते है जब उस सड़क से
बायीं तरफ जिसके शमशान है
तो ड्राईवर गाने की आवाज़
कम कर देता है हर बार
वही, जहां मौत का पहरा है ...
और सन्नाटे का शोर
आवाज़ें बेदम , आसूँ हर ओर
जब रूह भी मिट्टी
और जिस्म भी मिट्टी
फिर मिट्टी से मिलने पर
काहे का रोना , क्यों ये
बिलखना ?
पर ये कायदें है शमशान के
इन्हें मानते है सब
मत मानना कुछ भी
जाऊं मै जब ..
मेरी जिंदगी एक उत्सव है
मेरी मौत एक जश्न हो
तोड़ देना सब कायदें
कुछ भी मत करना
जी भर जिया है मैंने
जी भर के मरने देना
प्लीज़ ....
श्रुति त्रिवेदी सिंह