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Monday 13 June 2016

पारिजात ...


एक बार की बात है , एक बड़ा पुराना घना जंगल  था , जहां पर पेड़ इतने ज़्यादा थे की धूप ज़मीं तक पहुँच नहीं पाती थी बड़ा अँधेरा अँधेरा सा रहता था जैसे बारिश के दिनों की रातें होती है  , धूप देखने के लिए बड़ी दूर पैदल चलकर  जाना पड़ता था और रास्ते में तमाम चीज़े दिखती थी घने घने बड़े पेड़ तो थे  ही साथ में छोटे छोटे झुरमुट भी दिख जाते थे और जब हरे हरे  पेड़ों  की छाया से धूप कभी कभी नीचे उतरती थी छन छन कर बिखरती थी तो जैसे छोटे ,गोल पुराने सिक्कों की परछायी पड़ती हो . कुछ गिल्हेरियाँ भी थी, इधर उधर आती जाती दिख जाती थी दौड़ लगाती मिटटी पर अपने होने के निशान छोड़ देती थी  , रात में जुगनू बजते थे और चमकते भी थे ,चमकता तो चाँद भी था आसमान में और दिन में सूरज  भी , पर यहाँ दीखता ज़रा कम था , हमेशा ग्रहण सा लगा रहता था ,एक चमकीला ग्रहण .
  एक किनारे पर पेड़ ज़रा कम थे ,पर वो दूर था बहुत. वहां एक नदी भी थी पतली एकदम ,पतली इतनी थी की बड़े बड़े पत्थरों को पार नहीं कर पाती थी बगल से निकल जाती थी, पर बहती हमेशा थी पूरे साल , सालो साल से बहती ही जा रही थी किसी को भी पता नहीं था की वो बह कबसे रही है और पानी आता कहाँ से है उसमे , मिटटी वहाँ की थोड़ी सर्द रहा करती थी , नर्म भी थी ,जाड़ों में ठंडी ,गर्मियों में सीली और बारिशो में भीग जाया करती थी, जिन थोड़ी जगहों पर धूप आ जाती थी वो सख्त किसी तखत के जैसी हो जाती थी, जिसमे दरारे भी होती थी , ऊपर से ये मिटटी थी तो सख्त पर दरारों से जो मिटटी भीतर से पुकार लगाती थी बाहर  वो, वो जिंदा हुआ करती थी किसी गीली लकड़ी की तरह मुलायम और सोंधी .
इस घनेरे जंगल में इंसान नहीं बसते थे, ज़रूर डरते होंगे क्यूकी इंसानों को तो बस्तियां पसंद है और ये था बियाबां जंगल ,यहाँ भला कोई क्यों बसता , खुद के साथ रहना इतना आसान भी नहीं होता इंसानों की भी किस्मे होती है , कुछ भीड़ में अकेले रहते है , कुछ अकेले में अकेले रहते है जबकि कुछ भीड़ में भीड़ होते है, उससे ज़्यादा कुछ भी नहीं  .
वहाँ पर एक छोटी बच्ची दिखा करती थी , अकेलेपन में अकेली, बिरली सी , अलबेली , प्यारी सी परी जैसी थी वो ये भी उस नदी की तरह ही थी ,कहाँ से आई थी कोई नहीं जानता  , इसमें तो कोई शक ही नहीं, की डरती बिलकुल नहीं थी वो , अकेले ही रहती होगी , अपने उस जंगल में  , उलझे उलझे सुनहरे  बाल लेकर घूमती रहती थी यहाँ वहाँ पूरे जंगले में , कभी धूप खानी हो तो किनारे आ जाती थी वरना वही उस अँधेरे जंगल में खोयी रहती थी ,पेड़ो की छाया में , यहाँ का रोशन अन्धकार  उसकी जिंदगी को सभी रंगों से भर रहा था , खुद से बात करना , जंगली जानवरों और पेड़ पौंधो से मोहब्बत करना बस यही उसकी जिंदगी थी और बेहद खुश थी वो .
और इसी जंगल के बीचो बीच एक बड़ा पुराना पारिजात का पेड़ भी था ,कई सौ साल पुराना शायद किसी इच्छाधारी नाग की तरह “जाग्रत”, जिसके बारे में ये भी कहा जाता था , की इसमें खिलने वाले सफेद रंग के बड़े बड़े फूल , बेहद हसीं होते है और किस्मत वाले ही उनका दीदार कर पाते है, इन फूलों का तिलिस्म रूहों को जगाने वाला होता है  , सालो साल में एक बार ही खिलते है और अगर खिल जाए तो महीनो तक लदे रहते है पेड़ पर और पिछले कई सालों से नहीं आये है इस पारिजात पर , ये बच्ची  वही इसी पेड़  की छाया में ज़्यादातर वक़्त बिताती थी . एक पतली डंडी से , पेड़ के चारो तरफ एक लकीर खींच कर , उसी लकीर को पकड़कर दौड़ा करती थी थक जाए अगर तो छाया में सहता लेती थी फिर से उठकर सिक्कडी खेलने लगती  थी .
अपनी बकरियां और भेड़े लेकर निकल पड़ती थी सबेरे सबेरे , दिन भर घुमाती थी उन्हें  इधर उधर साँझ तक  . बीन कर लाती थीं जो लकडियाँ उसी से चूल्हा जलाती थी , और रात में अक्सर उस पतली सी  नदी के किनारे पर जाकर बैठी रहती थी , पानी पर तारो की छाया देखते रहना  उसकी ख़ूबसूरती को और भी बढ़ा रहा था  . उस हिलती डूलती पानी की धारा में चाँद जब दिख जाता था, चादर में पड़ी सिलवटों की तरह , तो उसके होंठों के किसी किनारे पर हँसी चुपके से आ जाती थी और उससे अकेलेपन में बतियाने लगती थी और बहते पानी का संगीत उसके कानो को छूकर जब निकलता था तो चेहरे पर ऐसे भाव आते थे की उसकी इबादत करने का दिल करता था , नदी किनारे वो पीपल का पुराना पेड़ उसकी हर हरकत पर नज़र रखता था और ज़रूरत पड़ने पर उसकी मदद भी कर  देता था . रात की चांदनी, उसे चांदी जैसा रंग भी रही थी .सूरज से ऊर्जा लेकर  वो बच्ची बादलो ने मस्तानी चाल चलना सीखती थी , हवाओ ने गति और ठहराव बताया , ऊंचे ऊंचे पेड़ो ने उस बच्ची को “देना” सिखाया था और झुकना  भी . जानवरों ने सारी ज़ुबाने और फूलों ने सारे गीत . जंगल की इस बच्ची की आँखों में गज़ब का उछाल था , जीती जागती प्रकृति लगती थी . उसका जीवन किसी सितार से निकली हुई बेहतरीन धुन था . अपने तरीके से उसने क्या कुछ नहीं जान लिया था . इंसानों से कोसो दूर थी वो और खुदा की बनायीं क़ुदरत से बेहद करीब .

अब जाड़ो का सर्द मौसम शुरू हो चूका था और वो बच्ची अब बड़ी हो गयी थी, वक़्त आ चला था क़ुदरत को शुक्रिया करने का और घने कोहरे में एक दिन अचानक वो गायब हो गयी पर अगले दिन सुबह “पारिजात” के सीने में एक गहरी चाक थी और पेड़ के नीचे पैरों के चंद निशाँ भी पर  ऊपर जब देखा , पूरा का पूरा पेड़ सफेद जादुई  फूलों से भरा पड़ा था .....     

I make music

Because I can’t sleep
I make music at night
I keep making you
Make your face
Make your hands
Make your heart
Make your soul
I keep making you
At times I get troubled
By your sad look
I change your hair do
Give new clothing
Try new colors, oh yes !
 Brown looks good
Green suits you
Now you look much happy
Now I play my flute
Because I can‘t sleep
I make music at night
I keep making you

  
Diwali special ... Inspired by Langston Hughes

ये सपनें कहाँ जाते होंगे सब ?
रात बीतने के बाद
उड़ जाते हैं शायद
कुछ भूल जाते हैं
डूब जाते होंगे गंगा में
पर पूरे भी होते हैं कुछ
कभी पिचक भी जाते हैं
कुछ किशमिश की तरह
एकअटका पड़ा हैं जाने कबसे
दगेगा किसी दिन
बम की तरह ..

मैं और सागर ...

मैं सागर के भीतर हूँ।
गहरे बहुत नीचे कहीं
तैर नहीं रही
चुपचाप लेटी हूँ
और ये पानी कितना अजीब है !
चढ़ता है नाक पर
दिमाग सुन्न करता है
फसता है साँसों में
बेचैन ही करता है
कोई बुलबुला कहीं नहीं
हलचल भी नही
मेरा दम भी नहीं घुटता
जबकि मैं पूरी इसके भीतर हूँ
और इसका पानी...
इसका पानी कितना अजीब है !
१- 
तारीफ़ करती थीं जब
कहती थीं वो अक्सर
सागर हूँ मैं
शांत और गंभीर
जान नहीं पायी कभी
बवण्डर था बस
हवा का खदेड़ा हुआ
भागता हाँफता
आंधी लिए भीतर
टकराता यहाँ वहाँ
तोड़ फोड़ करता
ग़म का सबब
कुछ देर चलकर
थक जाता था
शांत हो जाता था फिर
पर तारीफ़ के लायक तेरी
मैं कभी नहीं था ..

पीपल का पेड़

१- 
मेरे रोज़ के रस्ते पर
एक आम का पेड़ पड़ता है
तो ऊँचा है चौड़ा ही
कमज़ोर सा मालूम पड़ता है
पीछे से लोग भी
तरह तरह की बातें करते है
" कम्बख़त बाँझ है
बस जगह घेरे खड़ा है
किसी ने एक बौर तक देखी
आजतक चलो कटवा देते है "
पर ये क्या ? ये कैसे हुआ !!
शाख़ की दरार से इसकी
एक नन्हा पीपल जन्मा है
और कहते है ..
पीपल में कृष्ण का वास होता है।
Does the Sun even know that there is a Moon in the world ?


सूरज बड़ा है बहुत ! गम्भीर भी
तेजवान ! प्रतापवान ! सब है वो
और ये चाँद अपना शर्मीला सा
बस उसी पर वारा जाता है
दिन दिन भर दीदार करता
शाम से इंतज़ार में उसके ...
बेख़बर इस बात से है कि
रोशन है अब ये भी बहुत
सोहबत में इबादत में उसकी
क्या क्या सोचता होगा ??
" मिलूँगा उनसे कभी बताऊँगा फिर
मैं चाँद हूँ ... दीवाना हूँ आपका "
फिर डर से हया से बात अटक जाती होगी
हर बार ...
उधर सूरज क्या उसे भी कुछ पता होगा ?
कि कोई चाँद है इस दुनिया में
जो बस
उसी पर वारा जाता है ...