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Monday 13 June 2016

१-एक क्राइस्ट था ..

गाँव में हर साल , क्रिसमस के नाटक में
वो ही क्राइस्ट बनता था ..
नाटक करते हुएँ धीरें धीरें
अचेतन उसका चेतन बनता जाता था
हर अन्याय पर अवाज़ उठाता वो  
ककंड पत्थर से मारा जाता था
फिर.. एक दिन उसे कोई मिला
जिसने उसे पहचान लिया
भीतर बाहर सब जान लिया
दफ़न करते वक़्त वो बोला
आज इसका नाम बर्फ़ पर लिखा है
पर ये बर्फ़ पिघलती जायेगी
और वो दिन भी आएगा
ये जब नदी बन जाएगा |
एक क्राइस्ट था....

2- एक जुगनी थी 
एक जुगनी थी ...
वो मीठे पान खाती थी
लाहौरी सूट पहनती थी
फुर्तीली बिल्ली जैसी थी
कूदा फांदा करती थी
एक जुगनी थी ...
निडर निर्भीक बच्ची थी
कमली थी दीवानी थी
बारिश जैसी दिखती थी
घूम घूम कर चलती थी
बस नाचा गया करती थी
एक जुगनी थी ...
पाक़ साफ़ सी बच्ची थी
पतंग जैसी उड़ती थी
डोरी रब को थमाती थी
नशे में उड़ती फिरती थी
रब की राज दुलारी थी
एक जुगनी थी ...
पीपल जैसी लगती थी
न बोया किसी ने
न फसल किसी की
मर्ज़ी से उगती फिरती थी
एक जुगनी थी ...







एक ..

जुदाई नहीं होती प्यार में
जुदा नहीं करता ये कभी
कर ही नहीं सकता
बांधता है बस .. बाँध बनाता है
हिम्मत ताक़त और...
और भी ज़्यादा पानी देकर
बहना सिखाता है नदी को
अकेले ....
फिर छोड़ देता है
जुदा नहीं करता ये कभी
कर ही नहीं सकता ....

दो ..
बरसते हुए एक दफ़ा
बारिश की एक बूँद ने
चमेली से कहा " प्रिय
मुझे अपने ह्रदय में बसा लो"
वो कुछ कहती इसके पहले ही
बूँद बरस गयी।
चमेली तो बस सोच में पड़ गयी
वो कहती भी तो क्या ?
जबकि वो जानती थी
बूँद को आगे बढ़ना होगा
मरना होगा बरसना होगा
उधर वो बूँद बगैर जवाब ही
बरस गयी ....
वो भी तो जान चुकी थी कि
फ़ना होकर भी एक रास्ता है
पौधें की जड़ में समाकर
पहुँच भी गयी
और अब वही रहती है
चमेली के ह्रदय में....

तीन ..

तकलीफ़ में नहीं देख पाता था
किसी को भी वो ...
दुखी लोगो की आंखों में देखकर
उनके आँसू खींच लिया करता था
आसुओं को अंजुरी में भरकर फिर
एक तालाब में फेंक देता था
रोज़ाना जाने कितने आसूँ
भरता था उस तालाब में
शाम को आकर आंसुओं के इस
तालाब किनारें बैठ जाता था
गौर से देखा करता था
एक एक आसूँ को
बंद आँखों से महसूस कर उन्हें
वो सबके आसूँ रोता था ...
तालाब जब सूख जाता था
वो फिर निकल जाता था
कोई फ़कीर पीर बाबा होगा
एक कहानी में पढ़ा था |

Inspired by Sufi Saint Jalaaluddin Mevlana Rumi ..

क्या कहती है ये बाँसुरी सुनो इसको
कि मैं बस विरह की कहानी हूँ
काट कर क्यों ले आये हो मुझको
जुदा करके मुझे मेरी जड़ से
अब कौन सा गीत निकालोगे?
पूरी छिली पड़ी हूँ
जाने कितने सुराख़ मुझमे
कैसे समझोगे तुम पीड़ा मेरी ?तुम नहीं समझ पाओगे
फिर कैसे मुझे बजाओगे सबको कैसे बतलाओगे
हवा की दरकार नहीं मै आग के ज़रिये बजती हूँ
जो खुद भी जला हो राख भी हुआ हो
उसी को ढूंढती फिरती हूँ वही समझ पायेगा
आवाज़ जो निकालेगा वो ...
जंगल जंगल गूँज जायेगी
मुझे मेरी शाख तक ले जायेगी



कविता ...

ईश्वर .. वो तो बस एक इशारा है
एक संकेत
एक शब्द
जिसे मानते है लोग
पर शायद जानते नहीं
कोई अनुभव नहीं मुझको
ईश्वर का
कभी उसने करवाया ही नहीं
ऐसा क्यूँ लगता है
सत्य सिर्फ़ दो है ..
एक प्रेम है
जिसको जाना है बहुतों ने
किया है दिलोजान से
और दूसरी मृत्यु
जिसको सब जानते है
जो सबकी अपनी है
पर डर मुझे दोनो से लगता है
मरना दोनो में पड़ता है
फिर भी मृत्यु पहले आए प्रेम से
तो बहतर हो शायद
कि प्रेम की कुछ सीमायें है
ख़त्म भी हो सकता है कभी
मृत्यु अगाध है अबाध है
अनंत है
वो कभी नहीं मरती ...

Sunday 12 June 2016

तस्वीरें और उनकी बातें और एक सफ़रनामा ... ख़ुशी का ,प्रेम का ,हम्पी का ...


सफ़रनामा ....ख़ुशी का ,मोहब्बत का ,हम्पी का .........वैसे तो ये तस्वीर आख़िरी पड़ाव की है पर मेरी ख़ुशी को इससे बेहतर दूसरी कोई तस्वीर बयां नहीं करती ....इसलिए यहाँ सबसे पहले ..............

प्रेम का कुछ नशा ही ऐसा है कि इंसान  मजबूर बस  बहुत मजबूर हो जाता है , कृष्ण के मंदिरों में जाना न तो आदत थी मेरी न कोई इच्छा, मजबूरी बस मजबूरी थी ,और है, और रहे ऐसी मेरी प्रार्थना है  । फिर मथुरा वृन्दावन गोकुल ये सब जगह जाना हुआ , इस्कोन के मंदिरों में बहुत गाया  बहुत नाचा करताल मंजीरे सब बजाये बेसुध बेहोश होकर ,फिर लौटकर आने के बाद कृष्ण साहित्य पढ़ते रहे और  कृष्ण की ऊर्जा और प्रेम के साथ अपनी फ्रीक्वेंसी सेट करने में कुछ ऐसा खो गए कि कुछ भी  न लिख पाए, कुछ न कर पाए  ।

पर इस बार सफ़र के बाद एक अजीब सा ख़ालीपन उमड़ा है एक बेचनी .... । सफ़र की यादें दिन रात किसी साये की तरह उठते बैठते पीछे लगी है वो चेहरे वो दोस्त वो पेड़ वो नज़ारे बस ज़हेन की किसी सतह पर दिन रात बरसते रहते है।  मन में जो भी है वो बाहर आये और वैसे ही आये जिस रूप में वो है हृदय में तो जानूंगी कुछ हुआ ...
गुरु फिल्म का  गाना देखकर " बरसो रे मेघा बरसो "  मेरे इस साल का  सफ़र मुझे पिक्चर हॉल में ही दिखने लगा था  | कर्नाटक का सफ़र तय था इस बार पर पूरा कर्नाटक एक साथ घूमना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था इसलिए कुछ जंगलो  कुछ वादियों और हम्पी को हमने चुना और आगे बढे सफ़र पे ...
 लखनऊ से बैंगलोर फिर बैंगलोर में एक दिन रेस्ट करके अपने भाई के यहाँ भाभी और बहन का ढेर सारा प्यार पोटली में भरकर सीधा ऊटी की तरफ निकल गए थें ,ऊटी से एक रिश्ता भी मेरा वहां के आसमां से , कोई बीस साल पहले बड़े भैया गए थें ऊटी और लौटकर आने के बाद हफ्तों तक हमने वहाँ के आसमान की बातें सुनी थी कितना नीला कितना साफ़ बादल एकदम  परियों की तरह आते है वहाँ बरसते है चले जाते है , बस यही देखना था यही आसमान हमे भी और  बन्दीपुर के जंगले होते हुए हम निकले थें सुबह सुबह और ऊटी से भी सुन्दर ये रास्ता था जो ऊटी को ले जाता था , पूरे रस्ते आँखें नम बेवजह बस बहे जा रही थी ,ऊपरवाले की बनायीं इस दुनिया को देखकर मन पिघल रहा था गाडी से उतरकर गुल्ल्मोहर के उस  पेड़ को गले लगाने का दिल कर रहा था , आकाश में उड़ जाने को और जब ये सब कुछ न हो पाया तो आँखें बेवजह भरे जा रही थी , दिल चाह रहा था काश में उससे मिल पाती , उसको महसूस कर पाती और उस वक़्त जो गुज़र रहा था मुझपर वो बता पाती कि " ए ईश्वर ये कैसी दुनिया बना दी दिखा दी मुझे ये तो  कितनी ख़ूबसूरत है , ये रास्ता ये मौसम मै कभी नहीं भूलूँगी बस इसी सब का  धन्यवाद दे पाती उसके हाथों को चूम लेती उसके माथे को भी , गले लगा लेती उसको मिलकर बस इतना ही मन था  | बड़ी ईमानदारी और बड़े धन्यवाद के साथ घूमना पसंद है हमे | सबको नसीब नहीं होता है इसलिए उस तक शुक्रिया पहुँचाना सफ़र जितना ज़रूरी मेरे लिए |
गुलमोहर के बड़े बड़े पेड़ो को देखकर उनका रंग  जैसे रूह में उतरता जा रहा था और वो पूरा रास्ता बहुत कमजोर बहुत मजबूत दोनों एक साथ  करे जा रहा था खुद को संभाले हुए मै बस ऊटी के इंतज़ार में और  कुछ ही देर में हम लोग ऊटी पहुँच चुके थें| ऊटी तमिलनाडु का एक हिल स्टेशन  ...गाडी से उतरकर मै सचमुच बाहर आ गयी थी अपने अंदर की उस दुनिया से भी जहाँ दिल उससे मिलने को बेताब था पर एक पैगाम भी था मेरी बनायीं इस दुनिया के कण कण में हूँ मैं बाहर उतरकर देखो तो सब जगह हूँ मैं, मैं अब खुश थी बहुत खुश ...

  मगर हलकी बारिश रस्ते भर से साथ थी और यहाँ भी , कुछ चढ़कर जाना पड़ता है इस जगह चरों तरफ पहाड़ियां और बीच में आप ... शूटिंग  पॉइंट पर जाकर बच्चों को बहुत अच्छा लगा हम सबको को लगा ... हलकी बूंदा बांदी के बीच हमने ढेरो तस्वीरें निकाली .. इसका नाम ही शूटिंग पॉइंट था यहाँ अनगिनत फिल्मों की शूटिंग हो चुकी थी |
शूटिंग पॉइंट पर ...


कुछ वक़्त बिताने के बाद बोटैनिकल गार्डन हमारा अगला स्पॉट था उस दिन वहां फूलों का दिन था नुमाइश थी पूरा गार्डन सजा हुआ दुल्हन की सेज जैसा ...दुनियाँ भर से आये थें ये फूल , फूलों की जंग पहली बार देखी थी यहाँ ..हर फूल यहाँ खुद को बाकियों से बेहतर नहीं साबित कर रहा था , ऐसी कोई कोशिश नहीं थी उनकी बल्की वो सब एक जुटकर होकर हम सबसे कह रहे थें की "देखो न हम बेफिर होकर सबको खुशबू देते है और जब हम ये करते है हमे इसका पता भी नहीं  होता.. देखो न ,हम कभी झगड़ते नहीं कि कौन कितना सुन्दर किसकी कितनी  कीमत है बाज़ार में हमे इन बातों से क्या .. हम  अपने आप में बस अपने होने से खुश है फूलों की रौनक देखकर आखें एक बार फिर उसके सजदे में झुक गयी थी ..


गुलाब से बनी ये ट्रेन ...Add caption



 और अब अगले दिन ऊटी झील में नाव सवारी करके मैसूर के लिए निकलना था | पर सुबह जल्दी जागकर होटल के करीब वाली चाय की दूकान पर जाकर चाय का लुत्फ़ लिया था हमने अकेले ही और ऊटी सबसे ख़ूबसूरत तभी लगी हमे .. ऊटी मशहूर है चाय कॉफ़ी के लिए , चाय का रंग थोडा लाल था और ख़ुशबू भी अलग थी  | तीन cutting बस आखिर ऊटी आये ही थें चाय पीने ...
सागर झीले  तालाब बहुत करीब मेरे दिल को इसलिए नाव सवारी हर बार हर हाल में ज़रूरी .. नीचे पानी ऊपर आसमां मन को रोमांचित कर देता हर बार ...पर ये वो pykara lake नहीं थी ये शेहर के बीच एक छोटी सी लेक  बस ...खूब सवारी की एक डेढ़ घंटे फिर आगे अब मैसूर और वहा की शानो शौक़त ....
ऊटी लेक पर मैं ...

बैंगलोर से ऊटी चार घंटे का रन और अब ऊटी से मैसूर लगभग 150 km . कोई चार घंटे का रस्ता एक बार फिर और ऊटी में भी कई जगहें हमने नहीं देखी थी बहुत से स्पॉट कैंसिल कर दिए थें ... भाग भाग कर स्पॉट कवर कने में मज़ा किरकिरा हो जाता है , कुछ कम ही घुमते है पर उस जगह को पूरा जीते है और वैसे भी हम तो आये ही थें यहाँ का बस आसमां देखने और यहाँ  की लाल चाय पीने | चाय तो लाल ही मिली  पर आसमां अब प्रदुषण के चलते उतना नीला नहीं रहा ..गाड़ी चलती जा रही थी ड्राईवर के कन्नड़ होने की वजह से ज़्यादा बातचीत मुमकिन नहीं वो हर बात का जवाब " हां " ही देता था | मसलन " भैया मैसूर  चार घटे का ड्राइव है न " हा" भैया मैसूर आधे घंटे में आ जायेंगे न " हा" तो ऐसे में क्या बात करे कोई ..
उत्तरी भारत की तरह यहाँ जगह जगह ढाबे नहीं होते | कुछ मिल भी गया तो सिर्फ केले और कटहल वो भी पका , वहां के लोग बड़े चाव से खाते है इसे .. रस्ते मे आने वाले पेड़ो में हर चोथा पेड़ कटहल का और हर पेड़ पर कम से कम 50 से १०० कटहल ..
हम चलते चेले जा रहे थें तभी गाडी रस्ते में रूकती है और कुछ तमिलनाडु के लोग  हमसे मुदुमलाई जंगल घुमाने की बात करते है , पहले तो कुछ डरे लेकिन जंगल का लालच हमे कमज़ोर  कर रहा था फिर आस पास के लोगो से पता करके हम मंज़ूरी देते है और उनकी जंगल डीप सफारी के लिए तैयार हमसब ...और ये था ज़िन्दगी को हिला देने वाला सफ़र एक तो वीरप्पन का एरिया ओपर से तमिलियन ड्राईवर जो हालाकी बाद में दोस्त बन गया |  घने काले हरे जंगल और ये जंगल मशहूर है tigers और elephants के लिए , यहाँ असल में चार जंगलों का मिलन होता है  बन्दीपुर , मुदुमलाई सत्यमंगलम और ऊयांदे |ये लगभग ३२२ square km में फैला है | यहाँ सिल्वर ओक ट्रीज को देखा , बहुत शानदार और ख़ूबसूरत पेड़
ये नीलगिरी के पेड़ 

ये कूदती फांदती जीप हमारी 

शुद्ध हवा का मज़ा लेती मैं 
ये हिरन देखे थे ...Add caption
ये जंगल में गाडी रोककर कुछ रिस्क लेकर कुछ तस्वीरे निकाली 
पूरी सफारी हमने जीप में खड़े रहकर ही की नीलगिरी के पेड़ भी देखे और कई परिंदे भी .. राजेश जिसने हमारी जीप  चलायी शुरू में उसका  रंग रूप देखकर थोडा सा डर लगा पर बाद में पता चला वो तो बहुत खुश मिजाज़ बहुत daring और बोल्ड किस्म का इंसान , कुछ हिरनों का पीछा ऐसा करते करते हम जंगल के बीचोंबीच आ गए .. जीप फुल स्पीड में और  मोड़ में मैं  किसी स्टंट मैन की तरह जान बचाती मगर सफारी का मज़ा लेती .. जगह जगह झाड़ियाँ जीप को छीलती जा रही थी , मेरा खड़ा होना सच में खतरनाक जीप  अचानक गड्ढों में कूद जाती थी कभी यु ही बस एक ज़ोरदार मोड़ सबकुछ किसी फिल्म की तरह था  , यकीनन शानदार बहुत शानदार , राजेश को बहुत शुक्रिया किया कि  उसने इन हसीं जंगलों में इस तरह घुमाया किसतरह घुमाया कोई लफ्ज़ नहीं ...कोई ढाई घंटे की ये सफारी बहुत थ्रिल्लिंग और exciting  थी | जीप  जंगलो से निकलकर मेन रोड पर आ गयी और तमिल गाने पर बैठे बैठे खूब नाचे हम सब ... एकदम तमिलियन स्टाइल में  वहीँ के रंग में ...
ये राजेश है पर इसका नाम पूंछो तो थ्रिल्लिंग राजेश बताता है , सही बोलता है ये , इसीने सफारी करायी वो सच में थ्रिल्लिंग है 
मैसूर अब करीब था और जो सबसे पहले जो देखा वो था मैसूर महल ....
मैसूर महल मन एकदम खुश इसे देखकर उस ज़माने में कितनी कद्र थी शिल्पकारो की चित्रकारों की संगीत की तहज़ीब की कितना सुकून कितना धैर्य था , इसे देखकर लगा , इंडो-सारासेनिक, द्रविडियन, रोमन और ओरिएंटल शैली का वास्तुशिल्प देखने को मिला , कुछ देर को खुद को किसी बादशाह से कम न समझा ,  तीन तल्ले महल के निर्माण में सोने का एक गुम्बद भी है और चारो  तरफ तरह तरह के पेड़ , पर यहाँ महल के अंदर कैमरा की इजाज़त नहीं थी | कृष्णराजा wadiyar iv का हैं ये महल |  कहते है पहले पूरा चन्दन की लकड़ी से बना था पर किसी दुर्घटना के चलते दोबारा बनाना पड़ा  | इसके भीतर तमाम मंदिर भी है और कई पुरानी पेंटिंग्स जिनका हमे ज़्यादा इल्म नहीं पर वो बेशक नायब थी , वहां के आलिशान pillars बस देखते रहने को  दिल किया , एक तस्वीर भी ली छिपकर , बाद में पता चला जगह जगह कैमरे थें पर गुनाह हो चूका था मुझसे और बगैर किसी सजा मैं छिपकर बाहर आ गयी और वो बद्शाहियत जो छायी थी कुछ देर पहले तक उसका खुमार उतर गया | खुद्दारी और सच्चाई की कोई मिसाल नहीं इस दुनिया में मैंने महसूस किया तब| और उन रंग बिरंगी नक्काशी वाली दीवारों ने मेरे मन को फिर से रंग बिरंगा कर दिया ...
महल के बाहर एकतारा बेचने वाले एक सज्जन से दोस्ती की  उनके कई गाने सुने और बीन भी बजायी और तस्वीर भी खिचाई और ये अबतक का दिन भर का सबसे सुंदर वक़्त था ...सड़क पर बैठकर एक अनजान शहर में इतना अपनापन कसम से मज़ा आ गया | 
मैसूर पैलेस के बाहर सारा .Add caption

मैसूर के वृन्दावन गार्डन का बहुत नाम सुना था फूलों की इस दुनिया का ज़िक्र हम उन सबसे  सुनते आये थें जो भी मैसूर घूम कर जाते थें और नाम भी कितना सुन्दर वृन्दावन कृष्ण की याद दिलाता , न जाने की कोई वजह नहीं जबकि ये मैसूर से कोई २५ किलोमीटर दूर भी था शाम के वक़्त घोर ट्रैफिक से गुज़रते हम आखिर पहुंचे , मन में सोचा था आँखें बंद कर कुछ देर बैठेंगे पर वहां की पार्किंग देखकर इस गार्डन का नाम बदलने को दिल किया | इतनी भीड़ तो लखनऊ  के अमीनाबाद में भी नहीं होती | हमने कुछ नहीं देखा वहाँ ..फूलों का लुत्फ़ लेना तो दूर सांस लेना मुश्किल था | बड़ी जल्दी भागे हम वहां से ....

वृन्दावन गार्डन की पार्किंग का एक नज़ारा 
आज सुबह मैसूर ज़ू जाना था , बच्चों की फरमाइश पर , हिंदुस्तान का सबसे खास ज़ू ...हमे जो अच्छा लगा वो ये कि ये किसी जंगल की तरह है सभी जानवर हरियाली से लेस शायद अपने घर को ज़्यादा मिस न करते हो ..वो पशु पक्षी भी दिखे जो दीखते नहीं आमतौर पर ज़ू वगैरह में |
मैसूर ज़ू सारा और चिम्पांजी के साथ मैं भी 
.वापिस होटल आकर अब अगले दिन उस जगह जाना था जिसका नाम हम्पी है और ये इस सफ़र का सबसे लम्बा रन करीबन 9 घंटे गाडी में जगह बदलते इडली डोसा खाते विंड मिल के नज़ारे देखते , तरह तरह के पेड़ देखते (यहाँ कर्नाटक में पीपल को एक आदत है दूसरे पेड़ो को hug करने की | यहाँ बड़ा प्यार हैं हरियाली की कौम में | कई जगह दिखा पर ये पीपल ये तो बस  पीपल ही प्यार देना ही काम इसका धर्म इसका  | कभी आम के करीब ये कभी गुलमोहर के साथ ) 
यहाँ पीपल नीम को hug करता 


यहाँ बोगन वेलिया को Add caption
हम रात देर से अपने होटल पहुंचे | वहा सभी हमारा इंतज़ार कर रहे थें , होटल पहले से ही बुक था | होटल होसपेट में था जो हम्पी से कोई 8 किलोमीटर .. हम्पी आने वालो को होसपेट ही रुकना ही पड़ता है ... हम्पी मेरा सपना था जो अब बस एक रात दूरी पर सुबह उठते ही नहा धोकर हम हम्पी के लिए रवाना .. क्यूकि  ये जगह तमाम हिस्ट्री समेटे थी इसलिए गाइड लाज़मी था , सो पूरे दिन के लिए एक गाइड किया कोई ६०० रूपए में ..यहाँ कर्नाटक में आपको govt approved गाइड्स मिलते है , थोड़े से महँगे पर ठीक होते है 
और हम्पी हमे पहली नज़र में ही एकदम वैसा लगा जैसा सपने में सोचा था | जिस जगह भी हम घूमने जाने वाले होते उसकी दस्तक सपनो में कुछ दिन पहले से आने लगती है ... हम्पी मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगर की राजधानी था जो अब सिर्फ और सिर्फ खँडहर के रूप में मौजूद है  तुंगभद्रा नदी के किनारे पर स्थित यह नगर अब हम्पी (पम्पा से निकली हुई ) के नाम से जाना जाता है। इन्हें देखने  तमाम विदेशी हर साल आते है हिंदुस्तान के भी हर कोने से लोग इसका दीदार करने आते है | किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। और ऐसा भी सुना है जैसा कि गाइड ने बताया कि ये दुनिया का सबसे अमीर साम्राज्य था | यह नगर यूनेस्को द्वारा विश्व के विरासत स्थलों की संख्या में शामिल किया गया है। घाटियों और टीलों के बीच अनगिनत चिन्ह जगह जगह पेंटिंग्स जगह जगह नक्काशी  हैं। इनमें मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष....  इमारतें हैं।बहुत कुछ मेरे बस से बाहर इस जगह का इतिहास ..
वो ( गाइड )हमे सबसे पहले विपुरक्षा मंदिर ले गया , जहाँ शिव जी ने सती  के बाद पाम्पा देवी से शादी की थी | यहीं हवन कुण्ड के किनारे सात फेरे लिए और पूरा विवाह संपन्न हुआ था | पाम्पा देवी का कुछ रिश्ता तुंगभद्रा नदी से भी है |और पाम्पा के नाम से  ही हम्पी आया | 
 पर मंदिर से पहले यहाँ लक्ष्मी का आशीर्वाद ज़रूरी मानते है और ये है भी मजेदार काम | लक्ष्मी एक हाथी  है पिछले कई सालो से यही मंदिर में रहती है | और लक्ष्मी से भी पहले हमने कुछ गजरे ख़रीदे इनसे जो विपुरक्षा मंदिर के सामने बैठती है अपने गजरे लेकर हर रोज़  ...
इनकी  ज़िंदगी बीती बस कुछ यूँ ...गजरे बनाते बेचते हुए 


 लक्ष्मी से आशीर्वाद लेती  हुई ...

हम्पी में विठाला मंदिर है जो सबसे  शानदार स्मारकों में से एक है। इसमें लगे ५६ स्तंभों को थपथपाने पर उनमें से संगीत लहरियाँ निकलती हैं।जिन्हें Britishers ने अपने ज़माने में तोडा भी ये जानने को कि आख़िर  ये आवाज़ आती कहाँ  से है 
जो britishers न कर पाए वो करने की कोशिश में हम ..Add caption
 हॉल के पूर्वी हिस्से में प्रसिद्ध शिला-रथ है जो वास्तव में पत्थर के पहियों से चलता था। जिसे चेरियट मोनुमेंट कहते है ।

जैसे यहाँ के राजाओं को अनाज, सोने और रुपयों से तौला जाता था और उसे गरीब लोगों में बाँट दिया जाता था।और इस बाज़ार का नाम था पान सुपारी बाज़ार .. रानियों के लिए बने स्नानागार मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सजे  होते थे। इसके अलावा कमल महल और जनानखाना भी ऐसे आश्चयों में शामिल हैं।
लोटस मंदिर जिसकी मेहराब कमल की तरह खिलते है
 यहाँ हाथी-खाने के प्रवेश-द्वार और गुंबद मेहराबदार बने हुए हैं यहाँ पर महाराजा के सबसे बेहतरीन हाथी बांधे जाते थें |
१२ ft ऊंची एक पत्थर से निकली गणेश प्रतिमा
यही बांधे जाते थें बेशकीमती हाथी

ये शिव मंदिर जहाँ शिव ने शादी की और angels भी आये तब  ये दुर्लभ है ..

विपुरक्षा शिव मंदिर ..
उग्र नरसिम्हा ...
शिव के प्राचीन जलमग्न मंदिर जिनकी खुदाई अभी भी जारी है 
इनकी उमर ८५ साल ये फूल चुन रहे फिर जल भरेंगे फिर थोड़ी दूर पहाड़ी चढ़कर मंदिर जायेंगे और ऐसा ये रोज़ करते है Add caption
शाम होने को थी और अभी coracle बोटिंग के लिए एक चढ़ाई चढ़कर जाना था | पैर तो कबका बोल चुके थें पर इस दिल का क्या ये सब जगह होना चाहता है , ये सवारी तुंगभद्र नदी में की बाद में डैम भी देखा उसके लिए एक किलोमीटर चढ़ना और फिर उतरना , घूमना सच में जिगर का काम है इसीलिए हाथ पाँव चलते ऐसी जगहें पहले घूम लेनी चाहिए ...

coracle बोटिंग ..



बस यही तक थी ये यात्रा और कल सुबह वापिस बैंगलोर आकर जहाज़ पकड़ना था | मन कुछ दुखी भी था ये सब छूट जो रहा था पर जैसे मृत्य की तरह जन्म शाश्वत है वैसी ही वापिस तो लौटना  ही होता है घर  .....

सुबह बैग बैगेज के साथ नास्ता करके हम सब इनोवा के अंदर एक लम्बे सफ़र के लिए फिर तैयार बैंगलोर तक के लिए ...एक और चीज़ जो बता दूँ आपको कि घुमक्कड़ की ज़िन्दगी में थकने जैसा कोई लफ्ज़ नहीं होता , गर थकावट होती है तो घूमोगे कैसे भई ...नॉर्मली गाडी की लंबी लंबी यात्राओं में ही हम लोग सुस्ता लिया करते थें ...गाडी रफ़्तार से चलती हुई , नेशनल हाईवे संख्या जानने की जिज्ञासा वश गूगल किया तो पता चला जिस रस्ते पर हम है वहां से कुछ दूरी पर चित्रदुर्ग जिला है जिसमे हिंदुस्तान की शान यानी चित्रदुर्गा किला है | किला छोड़ना ज़रा मुश्किल था तो इन्हें मनाने की सब तरकीबे शुरू ...रजामंदी मिल भी गयी ज़्यादा परेशां हुए बगैर | तो ये जो सबसे आख़िरी में घूमा ये बोनस था शुद्ध बोनस ...कहते है हैदर अली इस पर  कई बार अटैक किया पर किला फ़तेह नहीं कर पाया फिर आखिर में कुछ सैनिको को मिलाकर उसने इसे जीत लिया था ....बाद ये टीपू सुलतान के पास था | ये भी विजयनगर साम्राज्य का एक हिस्सा ...
पहाड़ी पर जो दिख रहा पीछे वो हिडिम्बा का मंदिर है Add caption

विशाल किला चित्रदुर्ग 
इस किले मेइअप्को कई जगह दिखेंगे ...

तस्वीरों से थाह लेना नामुमकिन इस किले की और इसकी चट्टानी दीवारों पर जगह जगह चित्र बने है इसी वजह से इसे चित्रदुर्ग किला कहते है | बहुत सोचने पर भी कुछ सूझा नहीं पर ...पर एक नाम जो दिया जा सकता है इसको वो है बब्बर शहर ....सच , किले तो पहले भी देखे राजस्थान में आगरा में पर ये था किलों का बाप एकदम रॉ फॉर्म में  ...ब्याज था ये सफ़र मूल से प्यारा तो होना ही था ......
प्रमोद जिन्होंने पूरा सफ़र कराया अपनी इनोवा  में बिठाकर सफ़र की आख़िरी तस्वीर भी ये