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Saturday, 19 April 2014

Take Care ...



Take care ....

ख़राश हो गर ज़रा सी भी
मै ग़रारे तुरंत कर लेता हूँ
बे-वक़्त का सोना जागना
लाज़िम नहीं मेरे लिए
कमीज़ पहनता हूँ तो स्त्री करके
काटता हूँ नाखून हर दो दिन में  
साग़ सब्ज़ियां लेता हूँ
चिकना छोड़ दिया मैंने
अच्छा सोचता हूँ
अच्छा बोलता हूँ
अच्छा ही होना चाहता हूँ
और चलता हूँ रोड़ पर
पूरे अहतियात से
पहले नहीं था ऐसा मै
वो मिली थी ना
जब आखिरी बार ...
कहा था उसने ...
बड़ा ज़ोर देकर
“ अपना ध्यान रखना “

Sunday, 30 March 2014

पाकीज़ा..




बस्ता खाली कर दिया
कंधे हल्के , वज़न बहुत था
निशां भी  मिटा दिए
हर कहीं से , हर चीज़ के
सिहरन कंपन और जुंबिश
समझा दिया इन्हें भी
करीब मत आना
मै थी ज़रूर
पर अब नहीं
मिलने चली हूँ
उससे मै , अकेले में
मौत “ पाकीज़ा ” है बहुत
दाग धब्बे उसे पसंद नहीं | 



Wednesday, 26 March 2014

क्रांति....



कुछ मिला है कहां
मर्ज़ी से कभी ...
विरासत में मिलता है
सबकुछ यहाँ ...
नाम ,ज़ात , माँ बाप
रूप रंग कद
वगैरह वगैरह ...
सोचती हूँ.. सब उलट पुलट दूँ
कुछ तो करूं
जिसे क्रांति कहते है ..
अपना नाम बदल दूँ
वजह पूछेगा जब कोई
तब कह देंगे ...
पुराना .. सड़ा हुआ था !

Sunday, 23 March 2014

सुनी है इसकी ...




सुनी है इसकी , हमेशा मैंने और
यकीन भी किया है , इस दिल पर  
गोल गोल घुमाकर ...इसने
आसमानों में उड़ाया है 
हवाओं को पकड़कर  
एक पैर पर चलकर
दूसरी तीसरी सातवी दुनिया
जाने कहाँ कहाँ घुमाया है ?
“पानी के छपाक” जैसे
जीना भी सिखाया है
ऊंची उड़ाने  भरने वाला
आसमान में भेजकर मुझे
खुद ज़मीन में ज़जीरे
तलाश रहा है...?
कैद होना चाहता है ?... कम्बखत
हैरान हूँ मै ..इसकी इस हरक़त पर
मै सचमुच हैरान हूँ !!!
                     श्रुति त्रिवेदी सिंह