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Sunday 30 March 2014

पाकीज़ा..




बस्ता खाली कर दिया
कंधे हल्के , वज़न बहुत था
निशां भी  मिटा दिए
हर कहीं से , हर चीज़ के
सिहरन कंपन और जुंबिश
समझा दिया इन्हें भी
करीब मत आना
मै थी ज़रूर
पर अब नहीं
मिलने चली हूँ
उससे मै , अकेले में
मौत “ पाकीज़ा ” है बहुत
दाग धब्बे उसे पसंद नहीं | 



3 comments:

  1. Speechless!!!...getting rid of each & every thing which is related to the materialistic world & enjoy d beautiful feeling..(Rest In Peace)...ahhhh!!!

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  2. बस्ता खाली कर दिया

    कंधे हो गए हल्के
    उफ्फ्फ वज़न बहुत था

    निशां भी मिटा दिए
    हर कहीं से , हर चीज़ के

    सिहरन/ कंपन/ जुंबिश
    समझा दिया इन्हें भी--------
    करीब मत आना

    पहले थी जैसी
    अब नहीं रही वैसी

    मिलने चली हूँ
    उससे मै , अकेले में

    मौत “ पाकीज़ा ” है बहुत
    दाग धब्बे कहाँ पसंद उसे ?

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  3. Thank you..Ratinaath Ji..

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