सुनी है इसकी , हमेशा मैंने
और
यकीन भी किया है , इस दिल
पर
गोल गोल घुमाकर ...इसने
आसमानों में उड़ाया है
हवाओं को पकड़कर
एक पैर पर चलकर
दूसरी तीसरी सातवी दुनिया
जाने कहाँ कहाँ घुमाया है ?
“पानी के छपाक” जैसे
जीना भी सिखाया है
ऊंची उड़ाने भरने वाला
आसमान में भेजकर मुझे
खुद ज़मीन में ज़जीरे
तलाश रहा है...?
कैद होना चाहता है ?... कम्बखत
हैरान हूँ मै ..इसकी इस
हरक़त पर
मै सचमुच हैरान हूँ !!!
श्रुति त्रिवेदी सिंह
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