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Friday, 3 January 2014

मैं एक कहानी हूँ ...


मैं  एक कहानी हूँ ... ठीक ठीक तो नहीं कह सकता पर एक बुलबुला जैसा था, पानी का नहीं सिर्फ रौशनी का ,रौशनी के बारें में कुछ भी बता पाना मुमकिन ही नहीं बस इतना ही कह सकते है की कुछ ऐसी रौशनी जो पहले कभी कही ना देखी गयी हो, सोची भी ना गयी हो, जो सूरज जैसी चमकती हो पर चाँद जैसी शांत हो जिसको देर तक देख सके, और  जिसको लगातार देखने से भी आँखें ना दुखे ,ऐसी ही रौशनी के कुछ बुलबुले अपनी पसंद से कुछ और बुलबुलों के साथ आपस में  मिल जाते थे एक गुच्छे में , फिर इधर उधर पूरे कायनात में तैरा करते थे , उड़ा करते थे  जिस्मों के कोई वज़न नहीं होते वहाँ और भावनाओं के वजूद भी नहीं, बातें बिना कहे ही हो जाती थी  ,और सिर्फ एक ही एहसास था ,उड़ान का, परवाज़ का, आज़ादी का ,जब दिल करता था तो हम रूहें लंबी नींदों में चली जाया करती थी ,नींद भर सोने के बाद, मर्ज़ी से गर वापसी करनी हो तो उस लंबी काली सुरंग को पार करके नीचे आना पड़ता है ,ज़्यादातर रूहें दोबारा भी अपनी सरज़मीं के आस पास ही आना पसंद करती थी और मैंने भी वैसा हीं किया. यूं तो हम अपनी मर्ज़ी से अपनी माँ के आस पास थोडा पहले से भी टहलना शुरू कर देते है पर हममे से कुछ गर्भ के दौरान ही आते है, पर मैंने तो अपनी पसंद के माँ पापा चुने थे उनके घर में चुपचाप जाकर रहने लगा था , कुछ दिनों बाद ही माँ जान पाई थी मै उनका होने वाला हूँ और उनके पास आ चूका हूँ . माँ की हंसी बहुत अच्छी है और पापा मेरे, बोलते वक़्त एक होंठ तिरछा कर लेते है और बात बात पर ताली बजाते है तब और भी प्यारे लगते है ,ये घर भी अच्छा है खुला खुला सा है , इसीलिए यहाँ आया हूँ ...
पिछली बार क्या हुआ था याद है, मुझे लिवाने मेरी दादी आई थी फिर मुझे लेकर निकल गयी थी बड़े ऊपर , पहले हमने वो गहरी काली सुरंग पार की थी उसके ख़तम होते ही नूर की तो जैसे बरसात ही शुरू हो गयी थी , दूधियाँ एकदम  उजली, पिघले पारे जैसी रौशनी थी हर कहीं ,उसको अब भी बता नहीं पा रहा हूँ मै ,वो कैसी जगह थी खुशी और गम इन सबसे बहुत ऊपर   ,वहाँ कई दिनों तक रहा , रहने के बाद अब वापिस आया हूँ धरती पर , और फिर से उन नौ महीनो की यात्रा शुरू हो चुकी है मेरी , आजकल माँ के अन्दर ही दुबका पड़ा रहता हूँ मेरा जिस्म बनने लगा है और दिल में धड़कन भी आ गयी है ,पर पेट में पड़ें पड़ें अब भी याद  भी किया करता हूँ अपनी  उस दुनिया को , उन रूहों को, उस रौशनी को, उस आजादी को भी .
कुछ दिनों की बात है फिर बाहर भी आ जाऊंगा , और वैसे भी ज़ोर शोर से तैयारियां चल रही है , मोज़ो से लेकर टोपो तक कुछ बचा नहीं है , गाडी झूला गद्दे तकिये बोतल खिलोने सब आ चूके  है बस मुझे ही आना बाकी है , आते ही उलझ जाऊंगा इन सब में, इतना सख्त इंतज़ाम है जो है मुझे गुमराह करने का ,धीरे धीरे करके सब भूलता जाऊँगा , वो सब जो याद है अभी तो मै सब कुछ देख  सकता हूँ उस खुदा को भी उसके नूर को भी , जिंदगी को भी मौत को भी उन रूहों को भी जो हमे मरते वक़्त लेने आती है कभी कभी कुछ चेहरे पहनकर कभी तो सिर्फ एहसास बनकर ,पर वक़्त के साथ ये सब मेरे अंदर ही दफ़न होता जाएगा और वक़्त की आंधी इन्हें धूल की सौ परतें के भीतर जमा देगी , मै भूल जाऊंगा ये सारे राज़ ,पर मै भूलना नहीं चाहता और कोशिश ज़रूर करूँगा याद रखने की.
पर करूँ भी तो क्या ? ये तो हमेशा से होते आया है , और आगे भी होता रहेगा , मै चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता , और अब मै बन चूका हूँ, आँखें मेरी , बाल मेरे, नाख़ून भी आ गए है ,सभी पुर्ज़े तैयार है अब मुझे जाना होगा , बड़े ज़ोर का झटका लगता है इस दुनिया में कदम रखते ही ,ये झटका , मौत के झटके से भी कहीं ज़्यादा होता है .
कल पूरी रात तंग किया माँ को ,आज मै अस्पताल में हूँ ... और अब बाहर , अभी तो जिस्म का कोई एहसास नहीं है मुझे , सर्दी गर्मी भी नहीं लगती , बस कुछ ही समय में सब शुरू हो जाएगा, तीन चार दिनों में अपने घर और फिर वहीँ सब , जो हर जनम में होते आया है , भूलने भुलवाने का रिवाज़ जारी रहेगा ,मगर  मै खुश हूँ ,माँ हंस रही है और पापा भी , मेरी आँखें तो बंद है पर सुन सकता हूँ , माँ की गोंदी का एहसास है और भूंख ने भी हाथ पाँव पटकना शुरू कर दिया है , आस पास की आवाजों ने शान्ति व्यवस्था भंग कर रखी है. सोते जागते वक़्त मेरा हसता रोता चेहरा देखकर घर वाले हैरान है , कोई सपना होगा , चौंका होगा , भगवान् जी आये होंगे , कुछ भी कहते रहते है , हकीक़त तो ये है , मै अभी बीच में हूँ आ गया हूँ यहाँ , पर वहाँ भी हूँ जहां से आया हूँ , अभी कुछ और वक़्त तक चलेगी ये कश्मकश ....
पिछले कई दिनों से अपने घर में हूँ , कुछ महीनो  का हो चूका हूँ , पर याददाश्त अभी तक सलामत है , नूर और नूरानी , रूह और रूहानी सभी बातें ज़हन में है. मरी सेवा में सब कोई लगा रहता है और मै अपनी यादों में खोया रहता हूँ , दिल नहीं लगता अभी मेरा , पर क्यूकी “गु गु गा गा “ शुरू हो चुकी है मेरी तो सबका दिल बहलाने लगा हूँ , महीनो पर महीने चढ़ते जा रहे है और मै दिन पे दिन दुनियाबी होता जा रहा हूँ , मेरी चंचलता देखने लायक है , आस पास मोहल्ले वाले भी आ जाते है , मुझे देखकर अजीब अजीब सी हरकतें करते है , मै उनकी हालत देखकर हसता हूँ वो कुछ और ही समझ बैठते है और लगे रहते है बड़ी देर तलक ... मेरी बहन मुझे प्यारी लगती है , मुझसे ज़्यादा बड़ी नहीं , पर माँ उन्हें मेरे पास अकेले आने नहीं देती , डरती है कहीं वो मुझे कोई तकलीफ न दे दे क्युकी अभी वो भी छोटी है मेरे आने के बाद नुक्सान सिर्फ उन्ही का हुआ है , उनके लाड़ में कमी आ गयी है , पर वो मुझे सच में प्यार करती है , मै जानता हूँ , पर ये सब नहीं समझते क्यूकी ये बहुत बड़े हो गए है उस पर शक करते है .  एक दिन की बात है वो सब से छुपते छुपाते आई थी मेरे कमरें में जब मै सोया था , जगाकर बोली ,” ओ भैया उठ ना , बता ना ,वो ऊपरवाला अब कैसा दिखता है , क्यूकी अब मै भूलने लगी हूँ पर तुम्हे तो याद होगा हैना , तो फिर बताओ न ?”
बात असल में यह है की मेरी आँखों में अभी चमक है और चालाकी मैंने अभी सीखी नहीं, वजह यहीं है की मै अभी तक ऊपरवाले  की निगरानी में ही चल रहा हूँ, उसके साया मुझ पर अब तक है क्युकी मै अभी बच्चा हूँ , भोला हूँ , सादा हूँ सीधा हूँ , हसंता हूँ तो रोता भी हूँ पूरी शिद्दत से ,भूंख लगती है तो मांग लेता हूँ अपने तरीके से कोई शर्म नहीं , झूठ नहीं बोल पाता  अभी , लालच भी नहीं आता , क्या पहना है क्या नहीं कोई फ़रक नहीं ,कुछ भी पहनाओगे तो ठीक है , नहीं पहनाओगे तो भी ठीक है , कहाँ जाना है,कहाँ नहीं , कही भी चल दूंगा  ,जो भी नाम दे दोगे ले लूंगा, जो धर्म ज़ात पहना दोगे वो भी पहन लूंगा..
 क्यूकी मै बच्चा हूँ. पर बहुत जल्द मै बदलने वाला हूँ , बड़ा हो जाऊँगा , सब गुन सिख जाऊँगा और भूल भी जाऊँगा वो सब जो याद है मुझे अब तक , की मै उसका हिस्सा हूँ , उसकी रौशनी हूँ ,  ,वो रौशनी कहीं जा नहीं सकती है रहेगी तो मुझमे ही, बस उमर की चादर से  ढँक जायेगी , जिंदगी ,समय का दुशाला ओढ़ कर मेरे बचपन को ,इस रौशनी को कहीं बहुत पीछे फेंक देगी . और मै लाख सर पटक लू , तो भी उस रौशनी को  देख नहीं पाऊंगा ,पर मैंने सुना है की अगर पूरी लगन से कोई इसे दुबारा देखना चाहे उमर के किसी भी पड़ाव पर , तो ऐसा हो भी सकता है ..
पर वक़्त तो आंधी से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ता है , मै बड़ा हो गया हूँ , अब मुझे कुछ याद भी नहीं , जिंदगी के समुन्दर में आती जाती लहरों के थपेड़ो ने मुझे सभी इल्म सिखा दिए है , उलझ के रह गया हूँ किसी उन के गोले की तरह ,पर जब बहुत थक जाता हूँ तो समुन्दर की ऊपरी लहरों से बचकर उसकी गहराई में जाकर कुछ वक़्त को पनाह ले लेता हूँ , पर लाख  कोशिश करने पर भी मुझे याद कुछ भी नहीं आता , अपनी छोटी सी बच्ची की आँखों में भी झाँका करता हूँ , शायद कोई सुराग  मिल जाए पर कभी कुछ मिला नहीं उसके टूटे फूटे शब्दों में कुछ अर्थ मिल जाए , कहीं तो कोई बात बन जाए , पर कुछ हुआ हीं नहीं , घर दफ्तर बस इन्ही का हो के रह गया हूँ .जब से होश संभाला है या होश गवायाँ है बस जिंदगानी की हर एक ख्वाहिश को पूरा करता आया हूँ ,  इस कोशिश में की शायद मुझे वो मिल जाए जो अब तक नहीं मिला , बच्चे से बड़ा हो गया पर दिल में एक खाना ख़ाली था , फिर शादी बच्चे सब हुआ पर तब भी वो खाना खाली ही था , कुछ चाहिए था मुझे शुरू से ,एक तृप्ति की चाहत की थी, पर वो कहीं मिली नहीं .   
मगर अब सावन भादव सब देख चूका हूँ और पतझड़ के दिन भी आ गए है , और बढती उमर में अपनो के बीच बड़ा अच्छा लगता है , सुकून तो है पर एक खोज भी पता नहीं किस चीज़ की और एक दिन यू हीं ,अचानक रात में सोते वक़्त , दिल में कुछ घबराहट और फिर से वही सुरंग , फिर से वही बुलबुला , पहुँच गया वही पर , जहां पर एक ही एहसास है , उड़ान का , परवाज़ का , आज़ादी का .....


     

                                                   श्रुति त्रिवेदी सिंह 

4 comments:

  1. udddddddddan freedom everybody has right.umda

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  2. isko padh kar khushi is baat ki hai ki shayad hum me abhi bhi ek bachcha baki hain........

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  3. Thankx for sharing such an awestruck story that is out of this world.....I feel that while writing this ur mind was too soaring in paradise...like I felt while reading....n my special comment on this is :
    Rooho ki bheed bhad me..meri bhi ek rooh shamil thi.
    jo insaano me aane se pehle..har nek kaam ke kaabil thi...
    kyu bhula diya us jannat ka noor..jo chod me aayi, mere janm ki bhor...
    kuch katraa mujhko yaad saa hai..
    mera mann usi udaan me azad sa hai. .......
    Preeti with respect :)

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