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Tuesday 14 January 2014

ये शाम ...

पहाड़ों के पीछे , ढ़लान के पास
एक किनारे पर , “शाम” का घर है
हर रोज़ उतर कर आती है पहाड़ों से
मिलती ज़रूर होगी , सूरज से ... रास्तें में
दुआं सलाम करके ,बातों ही बातों में
सुनहरे पीलें रंग मांग भी लेती होगी ,उससे  
और वो हस के दे भी देता होगा
रंग भरकर निकलती होगी आगे फिर
रात भी मिलती होगी राहों में आगे
सितारों की झिलमिल
बिन मांगे ही मिल जाती होगी
मोहब्बत करती है ये , दोनों से शायद ...
दिन को छोड़ नहीं पाती
रात को रोकना नामुमकिन  
फ़ना हो जाती है , दोनों के बीच में
पर अपनी मोहब्बत का जादू  
छोड़ जाती है पूरे आसमान में
कभी शुक्रियां बनकर आती है
तो कभी हौंसला
पूरे दिन का इनाम होती है
ये शाम ...
हर रोज़ शाम को आती है
अब जब आये
ज़रा गौर से देखना ...

                      shruti

1 comment:

  1. ye sham hi to hai jiska intajar har kisi ko chai ke sath hota hai.
    gud one

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