कितनी
अच्छी लगती है
ये
कोहरे वाली सुबह
लगता
है , कोई कविता लिखवायेगी
सुबह
सुबह जब आँख खुली
तो
सुबह कही ना थी
बस
कोहरा ही कोहरा
कोहरा ही कोहरा
घाना
कोहरा छाया था
मगर
शीशे से चिपकी
ओंस
की बूँद से , सुबह ने
संदेसा
ज़रूर भिजवाया था
“
सूरज के साथ दुबकी पड़ी हूँ
आज
ठंड बहुत है
मै
ज़रा देर से आउंगी”
श्रुति
wakai bahut khoobsurat hoti hai ye kohre wali subah. aur uss kohre me lipte huye kuch rahasya .... aise rahasya jo kheenchte hain apni taraf khud me kho jane ke liye
ReplyDelete