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Sunday 8 June 2014
Monday 26 May 2014
मुनाजात .... a prayer
मुनाजात ....
एक था कांसा बेचारा
एक मेरी फ़ितरत ग़रीब
और बेशुमार थी मांगे
फिर शुरू हुआ सिलसिला
मेरी मांग जाँच का
तू आली है ! तू अकबर है !
अमीर हैं ! तू बसीर है !!
तू देता जा मैं लेती जाऊं
देखो दौलत ज़रूर दे देना
सेहत और जागीर भी
इक़तेदार भी चाहिए मुझे
शोहरत देना तो क़सीदे भी
और हुस्न के साथ मुरीद भी
मांगती रही मैं बेझिझक होकर
तू सुनता रहा खामोश रहकर
पर हसां भी होगा मन ही मन
कि भरकर मेरा पूरा दामन
मेरा कांसा तब भी ख़ाली रहा
दो लफ्ज़ को तेरे मैं तरसा
की
कोई जुनूं मेरी किस्मत न
हुआ
तेरी ख़ामोशी से यह एहसास तो
था
कि ख्वाहिशों की सीढियां
चढ़कर
मै कितना उतर अब आई हूँ
मांगे नहीं हैं अब ज़बान पर
अश्कों ने की फ़रियाद हैं
और ये आख़िरी फ़रियाद है
अब मिटा दे मुझकों मुझसे तू
या मिला दे फिर मुझकों
मुझसे
लगता हैं क्यूँ इस बार मुझे
कि लिया हैं तूने सुन
निदा –ए रब जो आई है
कुन ... फाया कुन
Sunday 18 May 2014
एक मैं हूँ ...
एक मैं हूँ , जो मैं हूँ
एक मैं हूँ , जो होना चाहती
हूँ
पर एक और भी हूँ मैं
जो जताती हूँ दूसरों कों
कुछ वक़्त पहले तक
दोस्त थे हम तीनों
मददगार भी थे
निगहबान भी एक दूसरे के
फिर जाने कब ? क्यूँ ?
चुपके से एक बग़ावत ने
जन्म लिया
हम तीनों ने मार
गिराया
एक दुसरे को
अब सिर्फ मैं बची हूँ
और मैं बिलकुल अकेली हूँ !
Saturday 19 April 2014
Take Care ...
Take care ....
ख़राश
हो गर ज़रा सी भी
मै
ग़रारे तुरंत कर लेता हूँ
बे-वक़्त
का सोना जागना
लाज़िम
नहीं मेरे लिए
कमीज़
पहनता हूँ तो स्त्री करके
काटता
हूँ नाखून हर दो दिन में
साग़
सब्ज़ियां लेता हूँ
चिकना
छोड़ दिया मैंने
अच्छा
सोचता हूँ
अच्छा
बोलता हूँ
अच्छा
ही होना चाहता हूँ
और
चलता हूँ रोड़ पर
पूरे
अहतियात से
पहले
नहीं था ऐसा मै
वो
मिली थी ना
जब
आखिरी बार ...
कहा
था उसने ...
बड़ा
ज़ोर देकर
“
अपना ध्यान रखना “
Sunday 30 March 2014
पाकीज़ा..
बस्ता खाली कर दिया
कंधे हल्के , वज़न बहुत था
निशां भी मिटा दिए
हर कहीं से , हर चीज़ के
सिहरन कंपन और जुंबिश
समझा दिया इन्हें भी
करीब मत आना
मै थी ज़रूर
पर अब नहीं
मिलने चली हूँ
उससे मै , अकेले में
मौत “ पाकीज़ा ” है बहुत
दाग धब्बे उसे पसंद नहीं
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