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Sunday, 18 May 2014

एक मैं हूँ ...



एक मैं हूँ , जो मैं हूँ
एक मैं हूँ , जो होना चाहती हूँ
पर एक और भी हूँ मैं
जो जताती हूँ दूसरों कों
कुछ वक़्त पहले तक
दोस्त थे हम तीनों
मददगार भी थे
निगहबान भी एक दूसरे के
फिर जाने कब ? क्यूँ ?
चुपके से एक बग़ावत ने
जन्म लिया
हम तीनों ने मार गिराया 
एक दुसरे को
अब सिर्फ मैं बची हूँ
और मैं बिलकुल अकेली हूँ !


1 comment:

  1. nice didi ji....long time back u posted something beautiful as usual.....i was eager to see now wish accomplished....
    Na akeli hain aap, naa akeli thi kabhi bhi,
    jine maar giraya, wo parchaii hi hai abhi bhi...

    Preeti :-)

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