This poem is for the hero of my novella , who speaks less and an introvert , while writing story , it was done ..
किस
मिटटी के बने हो
गुस्सा
आने पर भी चुप
गुस्सा
जाने पर भी चुप
ये
चुप्पी कभी टूटती ही नहीं
दम
नहीं घुटता तुम्हारा
और
ये कैसा प्यार करते हो तुम
जो
कभी कुछ बोलता ही नहीं
कुछ
मांगता भी नहीं
देता
भी है तो चुपचाप
कितने
राज़ दफ़न कर के रखे है ?
बताओगे
नहीं कुछ क्या?
चुप
रहना और सहना ,आदत है तुम्हारी
या
बस आदत है तुम्हारी
तुमको
जिंदा करते करते
ज़िन्दगी
जी उठी है
यु
क्यों लगता है ,कभी किसी रोज़
पीछे
से आवाज़ दोगे ,कहोगे फिर
पूछिए
अब ,क्या पूछना चाहती है ?
lovely!! tumne kabhi mauka diya bolne ka...ya fir tumko bhi aadat ho gayi hai khamoshi ki zuban padhne ki :-)
ReplyDeleteare haan yaar , ab dhyaan rakhenge , mouka to sabko milna chahiye
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