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Wednesday, 27 November 2013

कांच का घर

कांच का घर है मेरा
रहती हूँ जिसमे
दीवारे सारी कांच की है
छत भी
और फर्श भी कांच की है
संभल संभल के कदम रखती हूँ
एक डर रहता है हमेशा
हाथ से कहीं चाभी का गुच्छा न गिर जाए
गिर न जाए कहीं अलमारी में रखी चीज़े , जल्दी में
भारी भरकम जूते पहनकर
 कोई तेज़ क़दमों से चलकर
न आ जाये मेरी तरफ
चिटका दे मेरे घर को
ख्वाबो में बसर करना
सबके बस की बात थोड़े ही है


                          shruti 

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