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Monday 30 June 2014

सफरनामा … बाली से



ठीक से याद हैं  कि बस अचानक ही हुआ था सबकुछ , कनाडा का वीसा फॉर्म भरते भरते ये “बाली” ने बीच में सेंध लगा दी थी | और सिर्फ वहाँ का नीला समुन्दर ही वजह नहीं था कुछ दोष तो एलिज़ाबेथ गिल्बर्ट के उस उपन्यास का भी हैं जहां पर मिले थें “बाली” से पहली बार और वो ही था लव ऐट फर्स्ट साईट का शुभारंभ भी | फिर तो बस आशिकी को अंजाम देने के लिए १४ जून की तारीख़ मुकर्रर की थी ट्रेवल एजेंट ने और हम सब ने उस पर आँख बंद करके मुहर भी लगा दी थी | तैयार थें हम सब जाने को, मैं , मेरी दो बेटियां और उनके पापा , पहले लखनऊ से कोलकाता फिर कोलकाता से सिंगापुर और वहां से “बाली“ | जाने से पहले थोडा सा पढ़ा भी था बाली के बारें में पर ज़्यादा नहीं इस बार , क्यूंकि ज़रूरत से ज़्यादा जानकारी अगर पहले हीं हाथ लग जायें तो लिखी पढ़ी बातों को ढूँढने लगती हैं आँखें और घूमने की असली मस्ती खो जाती हैं गुम जाती हैं कहीं |
मगर फिर भी पढ़ी हुई बातों में जो सबसे पसंद आयीं थी और जो याद भी थी वो ये की “बाली “ द्वीप है प्रेम का , रहस्य का , ईश्वर का , शांति और सुकून का | और बस यही अनुभव करना था , मन में एक छिपी हुईं चाह भी थी कहीं की रात के पहर में समुन्दर किनारें एकांत में कुछ देर को बैठेंगे सिर्फ अपने साथ और सोचेंगे कुछ भी जो भी दिल करेगा उस वक़्त |
 “बाली“ इंडोनेशिया के 13,466 islands और 33 प्रान्तों में से एक , दुनिया की सुबह कहीं जाने वाली ये जगह सच में बेमिसाल हैं | बेमिसाल कहने के पीछे कुछ वजह हैं  सबसे पहले तो ये की यहाँ के लोग खुशमिजाज़ हैं बहुत  और आपको देखकर प्यार से मुस्कुराएंगे ज़रूर और ताज्जुब की बात तो ये है की नाम जब आप पूछिएगा किसी से वहाँ पर, और बताया उसने युधिष्ठिर आप क्या सोचेंगे यहीं न कि हिन्दू होगा , नहीं ऐसा नहीं हैं वो मुसलमान भी हो सकता हैं और कोई सलीम नाम का हिन्दू भी मिल सकता है आपको |  हिन्दू और मुसलमान का इतना प्यारा और अनोखा संगम एक साथ सिर्फ बाली में हीं देखा था | दुनिया में मुश्किल से हीं मिलेगी ऐसी प्यारी ज़मीन ऐसा प्यारा समुन्दर  | मज़हब को समझते वाले ये बाली के लोग अपने मज़हब  से सच्चा इश्क़ करते हैं शायद यहीं वजह हैं की हर मज़हब से उतनी हीं मोहब्बत करते हैं|
अपनी यात्रा के तीसरे दिन हीं पहुंचे थें हम लोग बाली , पहला दिन कोलकाता में दूसरा, हवाई अड्डों की सुरक्षा जांच और जहाजों को अदलने बदलने में निकल गया था , दोपहर का कोई १ बजा होगा जब हमारे बड़े भारी विमान ने बाली के दरवाजों को बड़े आहिस्तें से खटखटाया था और समुन्दर की लहरों से उसने (बाली ने ) संदेसा भी भिजवाया था कि “ थक गए होगे तुम सब  आराम कर को कुछ देर को फिर शाम को आ जाना वहीँ समुन्दर किनारें वहीँ मिलेंगे  जी भर के | Mr. पुत्रा तो हमे लेने हवाई अड्डे पर अपने पारंपरिक लिबास में पहले से मौजूद थे , बाली की संस्कृति वहां की ख़ास टोपी को अपने सिर पर पहने थें और मुस्कराहट अपने होंटों पर पहने , बड़े तरीके से मिले थे | फिर कुछ हीं वक़्त में होटल, कुछ आराम , और फिर वो पहली शाम सागर के नाम , समुन्दर के इस किनारें को “कूटा बीच” के नाम से जानते है  होटल से बस दो मिनट की दूरी पर था ये किनारा | लोग तो कम हीं थें यहाँ पर, कुछ रंग बिरंगी नावें और एक सूर्यास्त बस यहीं हाथ लगा था | बेटियों ने ककंड पत्थर सीपी मोती बटोरना शुरू कर दिया था, और उनके पापा ने वहां पड़ी एक कुर्सी को अपना बना लिया पर आवारगी मेरी बेचैन थी बहुत , कुछ देर टहलने के बाद मन इस सोच से जकड क्यों गया था की आखिर ये आंखें देखना क्या चाहती हैं ? कौन सी उम्मीदें बाँध रखी हैं इस किनारे से ? क्या पाना क्या चाहते हैं इस मंज़र से , आने के कई पहले से लहरों के भव्य दर्शन से मोक्ष मिल जाने तक के सपने सजा रखे थें पर शायद चाहत में जो ताकत है पा लेने में नहीं या फिर ये भी सकता हैं की इतनी गहराई से चाहा होगा कि पा लिया होगा तभी...एक उदास दिल , एक उदास शाम ,सुस्त समुन्दर, भूरी मोती दानेदार रेत इतना हीं था उस दिन  | कुछ हीं देर में किनारे पर बने एक रेस्टोरेंट से गिटार की धुन सुनकर अंदर जाने को दिल किया फिर डिनर भी वहीँ किया था |  

अगले दिन सुबह अपने होटल में कुछ गिना चुना नास्ता करके ( शाकाहारियों के लिए ज़रा मुश्किल साबित हो सकती है ये जगह बाली जिसका नाम हैं  ) पाण्डव वाटर पार्क जाना था , ये भी समुन्दर का एक कोना हीं था पर रेत यहाँ की सफ़ेद एकदम और पानी नीला एकदम नीला था , बड़ी भारी पतंगों से आसमान पूरा भरा पड़ा था | मछली वाली गरुड़ वाली झंडो वाली तरह तरह की पतंगे थी |पैरासेलिंग , वाटर स्पोर्ट्स के सभी इंतज़ाम थें यहाँ  , पैरासेलिंग के लिए हम लोग भी आगे बढे पर मन में कई सवाल थें वज़न ज़्यादा हैं? हिम्मत कमज़ोर ?और रस्सियाँ उन पैराशूटों की कुछ पतली पतली सिमटी सी | मन में सोच रहे थें कि नंबर आएगा जब बतादेंगे इसको मतलब उसको जो रस्सियाँ बांध बांध कर भेज रहा था सबको ऊपर आसमान में , वो कुछ कुछ हिप्पी जैसा दिख रहा था बॉब मारले की टीशर्ट पहने और मेरी जिंदगी की डोर अपने हाथों में लिए था ,इसके पहले कि हम हिन्दुस्तानी स्टाइल में कुछ समझते समझाते ,मन पक्का करते , वो हमें मुक्त कर चुका था, और हम ऊपर बहुत ऊपर , डरने का वक़्त हीं नहीं दिया उसने ... दो चार पल के बाद जब आखें खोली ऊपर,  तो अपनी हीं कविताओं की पंक्तियाँ याद आने लगी “ हाँ मैं उड़ना चाहती हूँ , पर दो परवाज़ दो , परिंदा हूँ मैं  , आसमान को छूना हैं मुझे जी भर के जीना हैं , हवा संग बहना हैं “ और भी जाने क्या क्या बकवास की थी , ऊपरवाले ने सब एक साथ ही क़ुबूल कर ली थी | परिन्दागिरी करके ज़मीन पर क़दम रखे थें जब ये जान चुके थें की मज़ा बहुत आया था फिर शिप से हम सब लोग टर्टल आइलैंड चले गए थें ,वहाँ पर 70 साल के बुजुर्गवार कछुएं से मिली , अजगर , चमगादड़ और भी कुछ अजूबे जानवरों से | मरने का भूत चढ़ा था उस दिन शायद कि अजगर को गले में डालकर एक और गुस्ताखी कर ली थी | फिर वापिस होटल आकर उल्लावुतु मंदिर जाना था | ये मंदिर ऊंचाई पर था जिसे देखने के लिए विदेशियों का हुजूम उमड़ा था | ये परेशानी हमेशा ही होती हैं मशहूर जगहों के साथ की भीड़ उन्हें घेरे रहती हैं | यहाँ पर भी समुन्दर साथ था और समुन्दर किनारे एक पहाड़ जमा था जिसपर बसा था ये मंदिर और यहाँ का चक चक डांस काफी दिलचस्प था , राम सीता रावन हनुमान बाली सुग्रीव लगभग सभी का दीदार हुआ था इस नृत्य में , संगीत के साजो सामान के बिना ही नाचा जाने वाला ये नाच , बाली की पूरी संस्कृति को सामने लाकर खड़ा  कर दिया था | होटल पहुँचते पहुँचते बहुत रात हो गयी थी , होटल पहुंचकर हमलोग दिनभर की खींची सारी तस्वीरें देखा करते थें और अगले दिन अब कैसे कैसे खींचनी हैं ,ये नीति भी तय किया करते थें |
तीसरा दिन , आज बाली को पूरा पार करते हुए उत्तर की दिशा में जाना था , किन्तामनी वो जगह है जहां ज्वालामुखी फटे थें 1974 में , और रास्ते में धान  की खेतीं ,संतरे के बाग़ , बाटिक पेंटिंग का कारखाना और चांदी की चीज़े बनती हैं जहां वो जगह भी देखनी थी | पर इन सबसे पहले एकदम सुबह सुबह समुन्दर किनारे जाने का मन था सो वैसा ही किया| न जाने क्या बात हैं “सी बीच” में कुछ हैं तो ज़रूर , फिर अगर देखा जायें तो रेत पर बनते बिगड़ते ये पैटर्न जिंदगी और मौत के करीब होते हैं बहुत , पैरों के निशां जो बनते हैं हर बार , लहरें बहा ले जाती हैं उस पार, पर वो फिर भी बनते हैं भूलकर कि बस अभी हीं तो मिटे थें  और पैरों के नीचे से रेत सरकती हैं जब , अस्तित्व डगमगा जाता हैं, ईमान बह जाता हैं सारा| खुद के करीब आने अच्छे मौके देता हैं समुन्दर वो भी बड़ी खूबसूरती से |  और खुद कुछ भी नहीं लेता डाल दो कुछ भी सब वापिस लाकर फेंक देगा किनारों पर , बेनियाज़ है एकदम खुदा की तरह | बहुत वक़्त बिताया था आज यहाँ, फिर होटल जाकर निकल पड़े थें किन्तामानी के लिए , रास्ता लम्बा था पर सुंदर , घरों को लाल रंग से पेंट करते हैं ये बाली वाले , इनका मानना हैं ऐसा करने से सकरात्मक उर्जा का संचार होता हैं , और फीफा का प्रकोप पूरे बाली में दिखा , बैडमिंटन और फुटबॉल के शौकीन ये लोग मुर्गों की लड़ाई में तो बाज़ीगर बन जाते है , क्रिकेट कुछ खास नहीं | आम केले कटहल और गेंदे वहाँ भी फलते फूलते हैं ,एक दस मीटर की पतंग दिखी थी आस्मां में और बांस के छोटे छोटे घर फूल पत्तियों नारियल की छाल से सजे पड़े थें दुकानों और मकानों के बाहर ऐसे ही आराधना करते हैं ये ”बालीनीस “
 पहुँच चुके थें अब वहाँ और अच्छी, शांत जगह थी “किन्तामानी” इतनी ज्वाला इतनी आग इतनी राख और दर्द के बाद हर शय को शांत होना ही होता हैं  और वो पहाड़ ज्वालामुखी वाला बड़ी दूर से देखने को मिला था कुछ स्याह स्याह सा धुंए में लिपटा जैसे आज भी आंच और अंगारे की यादों से झुलसता हुआ पर शांत | मौसम अच्छा था उस वक़्त बादल और थोड़ी सी बारिश दोनों एक साथ थें | 
और अब चौथा दिन  “ तनाह लॉट “जाना था , एक मंदिर हैं जो और “पांडव बीच “ समुन्दर का एक पवित्र किनारा ,सेक्रेड बीच कहतें हैं इसे | इन्ही दो जगहों पर जाना था , तनाह लॉट में हाई टाइड के वजह से जाने को नहीं मिला पर समुन्दर के बीचोबीच बने इस मंदिर को बाहर से देखा था |वहाँ के लोगो से पूँछा जब इसके बारें में तो बताया उन्होंने की नाग हैं बहुत सारे जो बिछे है गहरे पानी के नीचे , वो हीं सुरक्षा करते हैं इस मंदिर की ये सुनकर मन में एक सवाल जगा कि ईश्वर को भी सुरक्षा की ज़रूरत पड़ती हैं कहीं ? आस्था और अंधविश्वास के मामले में बाली हिंदुस्तान के बहुत करीब हैं | जबरदस्त आर्किटेक्चर और रहस्यों में समाया ये मंदिर बहुत खूब था और अब इस यात्रा का आखिरी छोर , पांडव बीच पहुँच चुके थें | युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल सहदेव की बड़ी बड़ी मूर्तियाँ बनी थी एक किनारे पर और खूब समुन्दर देख चुके थें अब तक और ये वाला भी वैसा हीं था जैसे बाकी थें |
 समुन्दर और उसके किनारे हमेशा एक से हीं होते है जगह बेशक बदल सकती हैं और एक खोज होती हैं जो घुमाती रहती हैं यहाँ वहाँ की शायद जो यहाँ नहीं मिला कहीं और मिल जाएगा उसी को ढूढ़ा करते हैं ताउम्र पर जिस दिन आँखें अपने अंदर मौजूद समुन्दर और उसकी लहरों की आवाज़ सुन लेंगी , आवारागर्दी को नयी मानी मिल जायेगी |
वापिस भी उसी रास्तें आये थें, गए थें जैसे , बाली से सिंगापुर , सिंगापुर से कोलकाता और फिर वहाँ से लखनऊ |  
       















 

3 comments:

  1. Karnika Bhardwaj30 June 2014 at 01:58

    This indeed is remarkable and marvellous Ma'am. It makes the reader actually visit Bali in the five minute span of reading the article. At a time it makes the reader feel the true sense of reading a professional reportage or travel diary, and at another, it gives a feel of the thrill, excitement, contemplation moments and serenity that you felt during the whole experience. I think it deserves to be given a new name of style of writing, rather than an article or Blog entry, it should be called an 'Experience writing', as it leaves the reader with the feeling of Déjà Vu. I hope you keep writing like this and keep inspiring people to write. May u get to visit many such beautiful places so that readers like me get to read such beautiful experiences.

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  2. Padha nhi jee bhi liya ek ek pal...laga jaise hum wahi kahin the aapke saath.. bohot saral sahaj aur saras vyakhya..."Behtareen"!!

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  3. जो यहाँ नहीं मिला कहीं और मिल जाएगा उसी को ढूढ़ा करते हैं ताउम्र पर जिस दिन आँखें अपने अंदर मौजूद समुन्दर और उसकी लहरों की आवाज़ सुन लेंगी , आवारागर्दी को नयी मानी मिल जायेगी ---मेरे मन की बात /बहुत खुद श्रुति जी

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