Search This Blog

Monday 13 June 2016

१- love story एक पेड़ की ...

खेत से सटा एक पेड़ होता था गाँव में
थोड़ा सा वो रस्ते पर आने लगा था
फिर जाने कब एक नया पेड़ चुपके से
ठीक इसके सामने आकर खड़ा हो गया
दोनों की आपस में क्या बात हुई
गांववाले नहीं जानते ... कोई नहीं जानता
दोनों ख़ामोशी से पलते रहे मगर
पर कुछ सालो बाद ...
उस बुज़ुर्ग पेड़ को काट दिया गया था
रस्ते में अड़चन जो पैदा करने लगा था
लोग कहतें है , पर वो दूसरा वाला पेड़
वो भी बस कुछ हफ़्ते ही चला
इसके जाने के बाद , बुझा बुझा रहने लगा था
फिर एक दिन आंधी में गिर गया
पूरा गाँव पहुंचा था इसे देखने
कोई जड़ ही नहीं थी इसकी अपनी
उस बुज़ुर्ग पेड़ की जड़े गहराई में इस तक पहुंची थी
ये उसी का पानी पीता था उसी का खाना खाता था
उसी के लिए आया था बस ...
पेड़ भी कमाल करते है !!
कैसे कैसे रिश्ते बना लेते है !!


 2-Inspired by Siraj Aurangabadi ...when neither you exist nor I exist ...

अब कोई "जूनून" नहीं रहता वहाँ
ही कोई "परी" ....
अब जो बचा है वोकुछ नहींहै
ख़ाली है सब ... मगर कहते है
एक बार इबादत परवान चढ़ी थी
इतनी चढ़ी कि ऊपर पहुँच गयी
ख़ुदा की रज़ा से फिर ...
एक हवा बह चली थीं
बह गया था सब उसमें
वजूद ज़हेन अक्ल इल्म
सब बह गया
और अब ...
जुनूं रहा परी रही
तो तू रहा मै रही ......

१-एक क्राइस्ट था ..

गाँव में हर साल , क्रिसमस के नाटक में
वो ही क्राइस्ट बनता था ..
नाटक करते हुएँ धीरें धीरें
अचेतन उसका चेतन बनता जाता था
हर अन्याय पर अवाज़ उठाता वो  
ककंड पत्थर से मारा जाता था
फिर.. एक दिन उसे कोई मिला
जिसने उसे पहचान लिया
भीतर बाहर सब जान लिया
दफ़न करते वक़्त वो बोला
आज इसका नाम बर्फ़ पर लिखा है
पर ये बर्फ़ पिघलती जायेगी
और वो दिन भी आएगा
ये जब नदी बन जाएगा |
एक क्राइस्ट था....

2- एक जुगनी थी 
एक जुगनी थी ...
वो मीठे पान खाती थी
लाहौरी सूट पहनती थी
फुर्तीली बिल्ली जैसी थी
कूदा फांदा करती थी
एक जुगनी थी ...
निडर निर्भीक बच्ची थी
कमली थी दीवानी थी
बारिश जैसी दिखती थी
घूम घूम कर चलती थी
बस नाचा गया करती थी
एक जुगनी थी ...
पाक़ साफ़ सी बच्ची थी
पतंग जैसी उड़ती थी
डोरी रब को थमाती थी
नशे में उड़ती फिरती थी
रब की राज दुलारी थी
एक जुगनी थी ...
पीपल जैसी लगती थी
न बोया किसी ने
न फसल किसी की
मर्ज़ी से उगती फिरती थी
एक जुगनी थी ...







एक ..

जुदाई नहीं होती प्यार में
जुदा नहीं करता ये कभी
कर ही नहीं सकता
बांधता है बस .. बाँध बनाता है
हिम्मत ताक़त और...
और भी ज़्यादा पानी देकर
बहना सिखाता है नदी को
अकेले ....
फिर छोड़ देता है
जुदा नहीं करता ये कभी
कर ही नहीं सकता ....

दो ..
बरसते हुए एक दफ़ा
बारिश की एक बूँद ने
चमेली से कहा " प्रिय
मुझे अपने ह्रदय में बसा लो"
वो कुछ कहती इसके पहले ही
बूँद बरस गयी।
चमेली तो बस सोच में पड़ गयी
वो कहती भी तो क्या ?
जबकि वो जानती थी
बूँद को आगे बढ़ना होगा
मरना होगा बरसना होगा
उधर वो बूँद बगैर जवाब ही
बरस गयी ....
वो भी तो जान चुकी थी कि
फ़ना होकर भी एक रास्ता है
पौधें की जड़ में समाकर
पहुँच भी गयी
और अब वही रहती है
चमेली के ह्रदय में....

तीन ..

तकलीफ़ में नहीं देख पाता था
किसी को भी वो ...
दुखी लोगो की आंखों में देखकर
उनके आँसू खींच लिया करता था
आसुओं को अंजुरी में भरकर फिर
एक तालाब में फेंक देता था
रोज़ाना जाने कितने आसूँ
भरता था उस तालाब में
शाम को आकर आंसुओं के इस
तालाब किनारें बैठ जाता था
गौर से देखा करता था
एक एक आसूँ को
बंद आँखों से महसूस कर उन्हें
वो सबके आसूँ रोता था ...
तालाब जब सूख जाता था
वो फिर निकल जाता था
कोई फ़कीर पीर बाबा होगा
एक कहानी में पढ़ा था |

Inspired by Sufi Saint Jalaaluddin Mevlana Rumi ..

क्या कहती है ये बाँसुरी सुनो इसको
कि मैं बस विरह की कहानी हूँ
काट कर क्यों ले आये हो मुझको
जुदा करके मुझे मेरी जड़ से
अब कौन सा गीत निकालोगे?
पूरी छिली पड़ी हूँ
जाने कितने सुराख़ मुझमे
कैसे समझोगे तुम पीड़ा मेरी ?तुम नहीं समझ पाओगे
फिर कैसे मुझे बजाओगे सबको कैसे बतलाओगे
हवा की दरकार नहीं मै आग के ज़रिये बजती हूँ
जो खुद भी जला हो राख भी हुआ हो
उसी को ढूंढती फिरती हूँ वही समझ पायेगा
आवाज़ जो निकालेगा वो ...
जंगल जंगल गूँज जायेगी
मुझे मेरी शाख तक ले जायेगी



कविता ...

ईश्वर .. वो तो बस एक इशारा है
एक संकेत
एक शब्द
जिसे मानते है लोग
पर शायद जानते नहीं
कोई अनुभव नहीं मुझको
ईश्वर का
कभी उसने करवाया ही नहीं
ऐसा क्यूँ लगता है
सत्य सिर्फ़ दो है ..
एक प्रेम है
जिसको जाना है बहुतों ने
किया है दिलोजान से
और दूसरी मृत्यु
जिसको सब जानते है
जो सबकी अपनी है
पर डर मुझे दोनो से लगता है
मरना दोनो में पड़ता है
फिर भी मृत्यु पहले आए प्रेम से
तो बहतर हो शायद
कि प्रेम की कुछ सीमायें है
ख़त्म भी हो सकता है कभी
मृत्यु अगाध है अबाध है
अनंत है
वो कभी नहीं मरती ...